सम्पादकीय

मिश्रित टीकाकरण के मायने

Gulabi
12 Aug 2021 3:44 PM GMT
मिश्रित टीकाकरण के मायने
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आईसीएमआर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कोरोना वायरस के दो अलग-अलग टीकों की खुराकें ज्यादा प्रभावशाली हैं

बाय दिव्यहिमाचल। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कोरोना वायरस के दो अलग-अलग टीकों की खुराकें ज्यादा प्रभावशाली हैं। वे बूस्टर डोज़ का काम भी कर सकती हैं। यानी एक खुराक कोविशील्ड की ली जाए और दूसरी खुराक कोवैक्सीन की ली जा सकती है। दावा किया जा रहा है कि मिश्रित खुराक लेने वाले 18 लोगों पर अध्ययन किया गया है। उसके परिणाम सुखद, बेहतर और उत्साहवर्द्धक रहे हैं। मिश्रित टीके व्यक्ति के शरीर में ज्यादा इम्युनिटी पैदा करते हैं, लिहाजा संक्रमण बेअसर साबित होता है। ये एंटीबॉडी शरीर में कब तक मौजूद रहते हैं और वायरस से लड़ने में सक्षम होते हैं, इसका स्पष्ट खुलासा फिलहाल किया जाना है। आईसीएमआर के अध्ययन को ही निष्कर्ष मान लिया जाए अथवा कोरोना विशेषज्ञ समूह और अन्य टास्क फोर्स के कथनों का भी इंतज़ार किया जाए? यह बेहद संवेदनशील सवाल है, क्योंकि आम आदमी का स्वास्थ्य जुड़ा है। अभी तक भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय का भी कोई बयान सार्वजनिक नहीं हुआ है। संसद में कोई लिखित जवाब दिया गया हो, उसकी जानकारी भी सामने नहीं है।

अलबत्ता कुछ चिकित्सकों ने टीवी चैनलों पर मिश्रित टीकाकरण की पैरवी करना जरूर शुरू कर दिया है। मिश्रित खुराक के अध्ययन का डाटा बेहद सीमित है, लिहाजा कई महामारी और संक्रमण विशेषज्ञों के अभिमत सामने आए हैं कि अभी विस्तृत और गहन विश्लेषण और शोध की ज़रूरत है। मिश्रित टीकों की खुराक को रणनीतिक तौर पर भी पेश करना तार्किक नहीं है। विशेषज्ञों का एक वर्ग सावधान कर रहा है, जबकि दो अलग-अलग टीकों की दो खुराकें लेने की स्थापना के पैरोकार मान रहे हैं कि इस तरह का टीकाकरण वायरस के अन्य रूपों के खिलाफ भी असरकारक साबित होगा। एक ही किस्म के दो टीकों की खुराक इतनी इम्युनिटी पैदा नहीं कर सकती, जितनी मिश्रित खुराकों से संभव होगी। अमरीका, ब्रिटेन, यूरोपीय देश और संयुक्त अरब अमीरात आदि देशों ने अपने कोरोना रोधी टीकों की मिश्रित खुराकों पर प्रयोग किए हैं। उनके निष्कर्ष भी बेहतर बताए जा रहे हैं, लेकिन भारत में यह मिश्रण कोवैक्सीन और कोविशील्ड टीकों का ही किया जा सकता है। दोनों अलग-अलग प्रक्रिया और प्रविधि से बनाए गए टीके हैं। उन पर अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में कोई भी डाटा और शोध नहीं छपे हैं। तो भारत में मिश्रित टीकाकरण को किन आधारों पर स्वीकार कर लिया जाए? यह सवाल सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि जब भारत सरकार के प्रख्यात संस्थान आईसीएमआर के दावेनुमा निष्कर्ष ऐसे हैं, तो उसे देश के भीतर ही लागू क्यों नहीं किया गया है? भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन टीकों का घरेलू उत्पादन सीमित है। स्पूतनिक-वी की 25 करोड़ खुराकें अभी तक आयात नहीं हो सकी हैं।
भारत में उसकी पार्टनर डॉ. रेड्डी लैब संघर्ष कर रही है कि स्पूतनिक का आयात-आर्डर पूरा किया जा सके। इसके अलावा, अमरीका की मॉडर्ना कंपनी के टीके को जून में ही आपात मंज़ूरी दे दी गई थी। अब जॉनसन एंड जॉनसन के सिंगल खुराक टीके को भी भारत सरकार की मंज़ूरी मिल गई है। सवाल है कि हमें ये टीके कब उपलब्ध हो सकेंगे? फाइज़र के साथ सरकार की क्या बातचीत हुई या अंततः वह ठप्प हो गई, हमें कोई जानकारी नहीं है, लेकिन आज तक उसका कोरोना रोधी टीका हमें उपलब्ध नहीं है। यदि टीकों की यही स्थिति रहती है, तो तय है कि 31 दिसंबर तक का टीकाकरण का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकेगा। अभी 11 अगस्त तक हमने करीब 52 करोड़ खुराकें लोगों में दी हैं। बेशक यह आंकड़ा भी कम नहीं है, लेकिन हमारी आबादी करीब 139 करोड़ है। यदि हर्ड इम्युनिटी के मद्देनजर भी 100 करोड़ आबादी में टीकाकरण करना है, तो हमें कमोबेश 200 करोड़ खुराकों की ज़रूरत है। उस आंकड़े से हम अभी बहुत दूर हैं। पूर्ण टीकाकरण तो 10 फीसदी आबादी में भी नहीं किया जा सका है। टीकाकरण की प्रक्रिया अब भी आधी-अधूरी है। लोग कतारों में कई-कई दिन तक प्रतीक्षा करते हैं और टीका नहीं लग पाता। तो भारत कोरोना की संभावित तीसरी लहर से पहले संक्रमण-मुक्त कैसे हो सकेगा? मिश्रित टीकाकरण के जरिए सरकार कहीं आसान रास्ता तो तलाश नहीं कर रही है?


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