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'रंगहीन' ड्रग्स की एंट्री के मायने
1970 से 1990 या कह सकते हैं कि 2000 तक के दशक का वो दौर था जब हिंदुस्तान की जनता धमाकेदार और मनोरंजन से लबरेज किसी सुपर-डुपर फिल्म की रिलीज का बेसब्री से इंतजार करती थी. 2000 के दशक के बाद दुनिया बदली तो हिंदुस्तानी अवाम के मनोरंजन के लिए मौजूद रंगमंच की इकलौती रंगीन दुनिया यानि 'बॉलीवुड' के रिवाज और रवायतें भी वक्त के साथ बदलती चली गईं. बॉलीवुड वो दुनिया थी जिसमें ग्लैमर और दाम यानि पैसों की चकाचौंध हमेशा रही.
टी-सीरीज म्यूजिक कंपनी के मालिक गुलशन कुमार (Gulshan Kumar Murder Case) के मुंबई में हुए कत्ल के बाद इस मस्तानी-मनोरंजन की दुनिया में अपराध और अपराधियों की भी घुसपैठ जमाने की नजर में आ गई. गुलशन कुमार को 12 अगस्त सन् 1997 को मुंबई के जुहू स्थित जीत नगर जीतेश्वर महादेव मंदिर के बाहर सुबह-सुबह बदन में 16 गोलियां दाग कर भून डाला गया. गुलशन कुमार हत्याकांड में सबसे पहले नाम उभर कर सामने आया था खतरनाक शार्प शूटर अब्दुल रऊफ मर्चेंट (Abdul Rauf Merchant) का.
वो दौर जब बदलने लगा 'बॉलीवुड'
गुलशन कुमार हत्याकांड की जांच हुई तो पता चला कि उस कत्ल की जड़ में जबरन धन वसूली प्रमुख वजह थी. कुख्यात अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) गुलशन कुमार से 'प्रोटक्शन मनी' के रूप में 10 करोड़ की रकम उगाहने पर अमादा था. जबकि अंडरवर्ल्ड की तासीर से बेखौफ गुलशन कुमार फूटी कौड़ी भी दाऊद को न देने पर अड़े हुए थे. लिहाजा उस जमाने में दाउद के राइट हैंड माने जाने वाले अबू सलेम (Abu Salem) ने अपने शूटर्स से बेकसूर गुलशन कुमार का कत्ल करा डाला.
गुलशन कुमार हत्याकांड के बाद तो मुंबई की मायावी फिल्म नगरी में गजब का बदलाव आने लगा. कालांतर में धीरे-धीरे ही सही मगर बॉलीवुड के तमाम चमकते सितारे खुद की 'हिफाजत' और विरोधी को 'नीचा' दिखाने के लिए खुद-ब-खुद ही 'अंडरवर्ल्ड' सरगनाओं की मांद की ओर रुख करके खिसकने लगे. जिन्होंने इस बुरी रवायत का सहारा लेने से आंखें चुराईं तो उन्हें, साम-दाम-दण्ड-भेद से जैसे भी बन पड़ा, अंडरवर्ल्ड सरगनाओं ने अपने कदमों में जबरिया आकर झुकने के लिए मजबूर कर दिया.
बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड के घुसपैठ की शुरुआत
देखते-देखते वो दिन भी आ गया जो 'अंडरवर्ल्ड' कल तक बॉलीवुड से उगाही करके खाने-कमाने में जुटा था. अब उसी अंडरवर्ल्ड के सरगनाओं-इंटरनेशनल ड्रग-गोल्ड स्मग्लरों ने मुंबईया फिल्मों में अपनी जमा पूंजी 'स्वाह' या कहिए झोंकनी नी शुरू कर दी. इस उम्मीद में कि बंदूक के बलबूते वे सेल्फ-फाइनेंस्ड फिल्म को हिट करवा ही लेंगे. फिल्म हिट होगी तो उसके निर्माण में लगाई गई रकम से मोटा मुनाफा भी मिलना तय था. हुआ भी बिलकुल वही. जैसा अंडरवर्ल्ड ने चाहा और सोचा था. बॉलीवुड में उसने अपनी काली कमाई लगाई तो उससे उसने मोटा मुनाफा भी कमाया.
मतलब बॉलीवुड की चकाचौंध और रातों-रात अंधाधुंध दौलत कमाकर धन्नासेठ बनने की अंधी दौड़ से अंडरवर्ल्ड सरगना भी खुद को दूर नहीं रख सके. एक दिन वो भी आ गया जब तय हो गया कि हिंदुस्तान की इकलौती और सबसे बड़ी मनोरंजन-रंगमंच की दुनिया पर माफिया यानि अंडरवर्ल्ड काबिज हो चुका है. बॉलीवुड पर पर्दे के पीछे से ही सही मगर अंडरवर्ल्ड खुद काबिज हो गया. शुरुआती दौर में (गुलशन कुमार हत्याकांड के बाद) अंडरवर्ल्ड ने खुद हिंदुस्तानी फिल्मी दुनिया में पांव जमाने की कोशिश की. बाद में तमाम लोग छिपते-छिपाते खुद ही अपनी फिल्मों को फाइनेंस कराने के लिए जाने-अनजाने अंडरवर्ल्ड तक जाने लगे. इस तरह की खबरों से मीडिया भरा पड़ा है.
अच्छे-बुरे हर दौर में थे और रहेंगे
यह अलग बात है कि अच्छे, भले, बुरे लोग समाज में सब जगह हैं. लिहाजा ऐसा कहना भी उचित नहीं होगा कि बॉलीवुड का हर फिल्म निर्माता या हर फिल्म अंडरवर्ल्ड की दौलत पर ही निर्भर होकर आगे बढ़ती है. मगर ऐसे उदाहरण या नाम उंगलियों पर गिने जा सकते हैं. जो अंडरवर्ल्ड को अंगूठा दिखाकर अपने दमखम पर बॉलीवुड में जमे रहे. यह अलग बात है कि वह मार्केट में बने रहने के लिए 1990 के दशक में भी जूझते ही दिखाई देते थे और अब तीन दशक बाद भी वे 'स्ट्रगल' का ही सामना करके, जैसे-तैसे बालीवुड में बने रहने के लिए मशक्कत कर रहे हैं.
इन तीन दशक (1990 से 2020) में तमाम ऐसे भी बिरले नाम सामने आए जिन्होंने, बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड की बढ़ती घुसपैठ के साथ समझौता करने के बजाए, खुद को इस मैली हो चुकी मनोरंजन की फिल्मी दुनिया से ही अलग कर लिया. यह सब्र करके कि ना होगा बांस न बजेगी बांसुरी. लिहाजा हिंदुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री से कई पुराने नामी-गिरामी और गैर अंडरवर्ल्ड खेमे के फिल्म निर्माताओं ने अपने पांव पीछे खींचे, तो नए लोगों की 'एंट्री' होने लगी. इन नए लोगों की भीड़ ने ही बॉलीवुड की तमाम रवायतों-रिवाजों को रातों-रात बदल डाला. शुरुआत हुई एक अंधी दौड़ की. उस दौड़ की, जिसकी मंजिल का पता किसी को नहीं था.
भगदड़ में किसी की जीत किसी की हार
ऐसे में जिसको जब जहां जैसे दांव लगा या मौका हाथ आया वो अपने साथ वाले या फिर प्रतिद्वंदी को साम-दाम-दण्ड-भेद से ही सही काटकर, गिराकर और पछाड़कर अंधी दौड़ में खुद को हर कीमत पर आगे बनाए रखने की जद्दोजहद से जूझने लगा. माया-नगरी में मची इस भगदड़ में अगर कुछ ताकतवर कामयाब हुए तो तमाम हारे लोग पर्दे से ही गायब हो गए. यह बात 2000 दशक के शुरुआत की है. मुंबईया फिल्म नगरी की रवायतें-रिवाज बदले तो दर्शकों ने भी अपना रुझान बदल लिया. रातों-रात कम बजट में तैयार हो जाने वाली फिल्में 'मोटे-मुनाफे' को नजर में रखकर बनाई जाने लगीं.
दर्शक भी उसी से मनोरंजन करने लगे, उनके सामने बॉलीवुड जो कुछ बिछाने-परोसने लगा. बदलती हुई रवायतों-रिवाजों वाला आज का मौजूदा बॉलीवुड अब 'भागमभाग' वाला सिर्फ और सिर्फ फिल्मों की 'कमाऊ कंपनी' भर बनकर रह गया है. चाहे जैसे भी कमाओ. चाहे जैसी भी फिल्में परोसकर कमाओ. बस कमाओ और साथ चल रहे अपने ही कमजोर साथियों की भीड़ को धकियाते हुए आगे बढ़ो. अब फिल्म या उसकी स्क्रिप्ट दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ेगी या नहीं. परोसी गई फिल्म कैसी छाप समाज में छोड़ेगी? नए जमाने के बॉलीवुड में इन सब सवालों के जवाब मांगने की हिमाकत करना भी किसी सरासर बेईमानी सा माना जाने लगा है.
धन कमाने की अंधी दौड़ ने कहीं का नहीं छोड़ा
आज के जमाने के बदले हुए बॉलीवुड में शुरू हुई धन कमाने की अंधी-दौड़ ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया है. अधिकांश हीरो-हीरोईन एक साथ चार जगह से रकम बटोरने के फेर में, कई शिफ्टों में काम करने लगे हैं. एक इंसानी बदन और तीन-तीन चार-चार शिफ्टों में फिल्मों की शूटिंग. मतलब एक अदद आम इंसान दिल दिमाग मष्तिष्क पर किसी फौलाद सा वजन लाद दिया गया है. अपनी सामर्थ्य से कई गुना ज्यादा इस वजन को नजरंदाज करने या फिर उसे ढोने के लिए रंगीन पर्दे के रुपहले-चमकदार चेहरों (हीरो हीरोईन) ने जो रास्ता अख्तियार किया.
यह रास्ता उनके अपने और अपनों के लिए तो बेहद खतरनाक है ही. साथ-साथ हिंदुस्तानी मनोरंजन की दुनिया यानि 'बॉलीवुड' के माथे पर आए दिन 'कलंक' का टीका लगवाने में भी अहम भूमिका अदा कर रहा है. आज बॉलीवुड सबसे बड़ा कलंक या कहिए बदनामी का जो दंश झेल रहा है वह है ड्रग्स के इस्तेमाल, खरीद-फरोख्त का. सोचिए भला रंगमंच, मनोरंजन की दुनिया का मादक पदार्थों से दूर-दूर का क्या वास्ता. यह दुनिया तो रोते हुए लोगों को हंसाने-गुदगुदाने के लिए है. ना कि इसके लिए कि भागमभाग, भीड़-भाड़ वाली जिंदगी के बोझ से बचने के लिए आप खुद को नशे की जद में फंसा कर तबाह करें सो अलग और ऊपर से बदनामी का दंश जमाने में झेलें सो अलग.
हाल-फिलहाल तो मुंबई की फिल्म नगर इसी नर्क से गुजर रही है. या कहें कि यही नर्क भोग रही है. अगर यह कहा जाए तो कदापि अनुचित नहीं होगा. इसके एक नहीं सैकड़ों उदाहरण बॉलीवुड में मौजूदा वक्त में भरे पड़े हैं. मसलन युवा होनहार अभिनेता सुशांत सिंह की मौत. वो मौत जिसकी गुत्थी अब तक नहीं सुलझी है. पंजाब के एक छोटे से शहर से निकलकर मुंबई पहुंची, फर्श से अर्श पर पहुंचने के लिए मुंबई की भीड़ में लंबे समय तक धक्के खाने वाली गजब की महिला कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिंबाचिया का ड्रग लेने के आरोप में जेल जाना.
खाक में मिलती 'खान' की बादशाहत
दीपिका पादुकोण, रिया चक्रवर्ती, जया शाह, सारा अली खान और न जाने बॉलीवुड की कितनी वो मशहूर हस्तियां जिन्हें, हिंदुस्तानी आवाम बीते कल में सिर्फ और सिर्फ एक बेहतर अदाकार-अदाकारा के रूप में ही जानती-पहचानती थी. आज वही अवाम इन सबको ड्रग मामलों में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के दफ्तरों में धक्के खाते देख सुन रही है. भले ही यह ड्रग लेने-देने, ड्रग खरीदने-बेचने रखने के आरोपी हैं या नहीं हैं. यह बाद में तय होता रहेगा. इन्हें दोषी और निर्दोष साबित करना कराना कोर्ट और जांच एजेंसियों का काम है. मगर ड्रग के मामले में जांच या पूछताछ के लिए ही रुपहले पर्दे के इन कथित महान चेहरों को कानूनी नोटिस देकर बुलवा लिया जाना भी तो कम शर्म की बात नहीं है.
रही सही कसर अब हिंदुस्तानी फिल्मी दुनिया के शहंशाह, सुपरस्टार-मेगास्टार और न जाने किन किन नामों-उपाधियों से संबोधित-सुशोभित कर डाले गए शाहरुख खान के शाहबजादे आर्यन खान (Aryan Khan Arresting) का ही मुद्दा ले लीजिए. आर्यन खान नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की मुंबई जोन की टीम द्वारा शनिवार-रविवार को आधी रात के वक्त रंगे हाथ दबोच लिए गए. आरोप लगा कि वे ड्रग्स सेवन किए हुए थे. ड्रग खरीद और बेच भी रहे थे. आर्यन खान के कब्जे से कोकीन, चरस और मिथाइलेंडीऑक्सी-मेथम्फेटामाइन (एमडीएमए) जैसे घातक प्रतिबंधित ड्रग जब्त किए गए. आर्यन खान के साथ उनके दो अन्य साथियों अरबाज मर्चेंट और मुनमुन धमीचा सहित कुल 8 लोगों को एनसीबी की टीमों ने दबोचा है.
ऑपरेशन 'कॉर्डेला द इम्प्रेस' की हैरतअंगेज कहानी
इन लोगों को 'कॉर्डेला द इम्प्रेस' नाम के क्रूज शिप पर दबोचा गया. यह क्रूज शिप शनिवार की रात मुंबई से गोवा के समुद्री सफर पर निकला था. पहले से ही इस क्रूज शिप की ताड़ में डटी एनसीबी (Narcotics Control Bureau) की टीम खुद भी उस पर सवार थी. इसकी भनक मगर स्टार पुत्र आर्यन खान और उनके साथ गिरफ्तार ड्रग के सौदागरों को कानो-कान नहीं थी. ये सब जब नशे में धुत हुए. नारकोटिक्स ब्यूरो की टीम को लगा कि अब उसके पास आरोपियों के खिलाफ मजबूत सबूत इकट्ठे हो चुके हैं. वैसे ही नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मुंबई जोन के सुपरिंटेंडेंट विश्व विजय सिंह की टीम ने इन सबको घेर कर गिरफ्तार कर लिया. मादक पदार्थों के साथ चूंकि मेगास्टार सुपर स्टार शाहरुख खान के पुत्र आर्यन खान की गिरफ्तारी हुई थी.
लिहाजा मायानगरी से बाकी तमाम जमाने में कोहराम मचना लाजिमी था. रविवार को दिन निकलते ही यह बदनामी वाली बात लाख छिपाने के बाद भी नहीं छिप सकी. यह अलग बात है कि सुपरस्टार के बेटे की ड्रग मामले में गिरफ्तारी की पुष्टि रविवार को दोपहर बाद करीब दो बजे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के 'अरेस्ट मीमो' से ही हो सकी. मगर तब तक जमाने को पता चल चुका था कि रंगमंच-मनोरंजन की दुनिया में हिंदुस्तानी अवाम के चहेते स्टार शाहरुख खान का बेटा ड्रग के सेवन और उसकी खरीद-फरोख्त में गिरफ्तार हो चुका है. वो आर्यन खान जो निकला था आधी रात को अपने कुछ बिगड़ैल दोस्तों के संग मुंबई से गोवा की समुद्री यात्रा पर. उस समुद्री सफर पर जो आधी रात को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के छापे के चलते तमाम उम्र के लिए अब अधूरा ही रह गया.
पीढ़ियां वक्त की हर बात याद रखती हैं
माथे पर लगे बदनामी के इस काले धब्बे के साथ जिसे मिटाने के लिए जमाने में शायद ही कोई 'रिमूवर' कभी ईजाद हो सके. आने वाले वक्त में जब-जब बॉलीवुड की बदनामी के किस्सों का जिक्र होगा, तब-तब सुपरस्टार पुत्र आर्यन खान की ड्रग के साथ गिरफ्तारी के किस्से-कहानियां हमारी आने वाली पीढ़ियां चटखारे ले-लेकर सुनेंगीं. इसमें कोई शक नहीं. और चर्चा हुआ करेगा कि कैसे एक जमाने में राज कपूर की फिल्मों, रफी मुकेश-लता, किशोर के गाए गानों, संतोष आनंद, नीरज, गुलजार, शकील बदायूंनी के लिखे गीतों.
धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा, हेमा मालिनी, रेखा, अमिताभ बच्चन, राजेंद्र कुमार, वैजयंती माला सरीखे हरदिल अजीज कलाकारों की अविस्मरणीय अदायगी के लिए दुनिया में पहचाने जाने वाले बॉलीवुड को कैसे, 2000 के दशक की पीढ़ी ने नशे और बदनामी के दलदल में धकेल दिया था. और चर्चा इसकी भी जरूर हुआ करेगी कि रंगीन बॉलीवुड में, 'रंगहीन' ड्रग्स की एंट्री और बदलती रवायतों ने हिंदुस्तानी मनोरंजन की दुनिया को कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा.
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