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- 'भारत बंद' के अर्थ
आंदोलित किसानों ने 'भारत बंद' का एक बार फिर आह्वान किया था। कृषि के तीन विवादास्पद कानूनों को एक साल पूरा हो चुका है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने उनके क्रियान्वयन पर रोक लगा रखी है, लेकिन किसानों ने उनके प्रतीकात्मक विरोध में 'भारत बंद' की आवाज़ दी थी। करीब 12 विपक्षी दलों-कांग्रेस, एनसीपी, सपा, बसपा, राजद, आप, द्रमुक और वाममोर्चे-ने किसानों के बंद का समर्थन किया था। विपक्ष को तो प्रलाप के लिए कोई न कोई कंधा चाहिए। अलबत्ता यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार के दौरान किसान और खुले बाज़ार की मार्केटिंग पर दसियों साल विमर्श जारी रहा। शरद पवार और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की समितियों ने क्या सिफारिशें की थीं, वे सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है। उन्हें एक बार फिर सार्वजनिक किया जाना चाहिए। बैंक संगठनों और 40 प्रमुख किसान संगठनों ने भी समर्थन की घोषणाएं की थीं, लेकिन 'भारत बंद' बेमानी आह्वान साबित हुआ। दरअसल यह राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है, क्योंकि करोड़ों किसान परिवार एक ही मंच पर लामबंद नहीं हैं। कई संगठन और निजी तौर पर किसान विवादित कानूनों के पक्षधर भी हैं, लेकिन कृषि और किसान से संबंधित सरोकारों पर देश चिंतित जरूर है।