सम्पादकीय

'भारत बंद' के अर्थ

Gulabi
28 Sep 2021 5:14 AM GMT
भारत बंद के अर्थ
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आंदोलित किसानों ने ‘भारत बंद’ का एक बार फिर आह्वान किया था

आंदोलित किसानों ने 'भारत बंद' का एक बार फिर आह्वान किया था। कृषि के तीन विवादास्पद कानूनों को एक साल पूरा हो चुका है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने उनके क्रियान्वयन पर रोक लगा रखी है, लेकिन किसानों ने उनके प्रतीकात्मक विरोध में 'भारत बंद' की आवाज़ दी थी। करीब 12 विपक्षी दलों-कांग्रेस, एनसीपी, सपा, बसपा, राजद, आप, द्रमुक और वाममोर्चे-ने किसानों के बंद का समर्थन किया था। विपक्ष को तो प्रलाप के लिए कोई न कोई कंधा चाहिए। अलबत्ता यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार के दौरान किसान और खुले बाज़ार की मार्केटिंग पर दसियों साल विमर्श जारी रहा। शरद पवार और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की समितियों ने क्या सिफारिशें की थीं, वे सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है। उन्हें एक बार फिर सार्वजनिक किया जाना चाहिए। बैंक संगठनों और 40 प्रमुख किसान संगठनों ने भी समर्थन की घोषणाएं की थीं, लेकिन 'भारत बंद' बेमानी आह्वान साबित हुआ। दरअसल यह राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है, क्योंकि करोड़ों किसान परिवार एक ही मंच पर लामबंद नहीं हैं। कई संगठन और निजी तौर पर किसान विवादित कानूनों के पक्षधर भी हैं, लेकिन कृषि और किसान से संबंधित सरोकारों पर देश चिंतित जरूर है।

बुनियादी चिंता किसान की आय की है। हम पहले भी राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय और कृषि विशेषज्ञों के आंकड़ों के जरिए खुलासा करते रहे हैं कि किसान कितनी दुरावस्था में है। आंदोलन के मंच से किसान की गरीबी और आमदनी पर उतनी शिद्दत से चर्चा नहीं की गई, जितनी चिंता फसल की कीमत और तीन कानूनों के प्रति जताई गई है। आंदोलित संयुक्त किसान मोर्चे की जिद कानूनों को खारिज करने तक ही सीमित रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी दर्जा देने की मांग भी किसान पूरी ताकत के साथ करते रहे हैं, लेकिन वे भारत सरकार के आश्वासन से सहमत और संतुष्ट नहीं हैं कि एमएसपी के मुद्देे पर गंभीर विचार जारी है। उप्र सरकार ने गन्ने का खरीद मूल्य 25 रुपए बढ़ाकर अब 350 रुपए प्रति क्विंटल तय कर दिया है, लेकिन आंदोलित किसान 425 रुपए से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं। किसान आंदोलन का उपद्रवी और दंगात्मक अनुभव हमारे सामने है, जब 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के ऐतिहासिक अवसर पर किसानों के एक तबके ने लालकिले पर हमला बोल दिया था। तिरंगा भी अपमानित किया गया था। उस अध्याय की पुनरावृत्ति न हो, लिहाजा दिल्ली से करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला और अंततः अमृतसर तक का राजमार्ग बंद करना पड़ा था। रोहतक राजमार्ग भी बंद किया गया। दिल्ली-गुरुग्राम मार्ग पर किसान सड़क पर ही बैठ गए, नतीजतन वाहनों का लंबा जाम घंटों लगा रहा। राजधानी दिल्ली के आसपास के इलाके ठप करने की कोशिश की गई। अवरुद्ध रास्तों पर किसी की आपातस्थिति हो सकती थी, किसी कोे यथासमय गंतव्य तक पहुंचना जरूरी था।

दिव्यहिमाचल

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