सम्पादकीय

बंद के मायने: किसानों की जायज मांगें सुने केंद्र

Gulabi
9 Dec 2020 4:09 AM GMT
बंद के मायने: किसानों की जायज मांगें सुने केंद्र
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पाकिस्तान अपने खतरनाक मंसूबे पूरा करने को हर वक्त ताक में बैठा रहता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। केंद्र सरकार के नये कृषि सुधार कानूनों के विरोध में किसान संगठनों का मंगलवार को आहूत बंद कुल मिलाकर शांतिपूर्ण ही कहा जा सकता है। कांग्रेस समेत दो दर्जन राजनीतिक दल भी इस विरोध के समर्थन में उतरे। वहीं कुछ ट्रेड यूनियनों ने भी बंद का समर्थन किया। महाराष्ट्र, ओडिशा व उत्तर प्रदेश में ट्रेन रोकने की कुछ घटनाओं तथा राष्ट्रीय राजमार्ग-24 को बंद किये जाने के अलावा बंद कमोबेश सामान्य ही रहा।

जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं, वहां बंद का प्रभाव राजनीतिक दलों की सक्रियता से कुछ ज्यादा प्रतीत हुआ। वैसे किसान संगठनों ने चिकित्सा संस्थानों, एंबुलेंस तथा आवश्यक वस्तुओं को बंद से अलग रखने का आह्वान किया था। निस्संदेह, दिल्ली बॉर्डर पर तेरहवें दिन जारी रहे किसान आंदोलन की छठे दौर की बातचीत पर बंद की छाया जरूर रहेगी। पांच दौर की वार्ता की विफलता के बाद आज केंद्र सरकार से आंदोलनकरियों की बातचीत होनी है। अब सवाल उठाया जा रहा है कि भारत बंद के बाद किसानों की रणनीति क्या होगी? क्या सरकार पर बंद से कोई दबाव बढ़ेगा? क्या सरकार का रुख बंद के बाद सख्त होगा या वह कदम पीछे खींचेगी? क्या मोदी सरकार उन किसानों को मनाने में सफल होगी, जो कह रहे हैं कि वे छह माह का राशन लेकर आंदोलन करने आये हैं। यह भी देखना होगा कि कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के किसानों द्वारा आहूत बंद के समर्थन में सड़कों पर उतरने को मोदी सरकार किस तरह लेती है। निस्संदेह, किसान आंदोलन मोदी सरकार के लिये बड़ी चुनौती बना हुआ है। देश में ही नहीं, विदेशों में भी जिस तरह किसान आंदोलन का समर्थन जारी है, वह केंद्र सरकार पर एक दबाव जरूर बनायेगा। वह भी तब जब किसान आंदोलन पंजाब की अस्मिता से जोड़ा जाने लगा है और किसान आंदोलन के समर्थन में सम्मान-पुरस्कार वापसी की मुहिम शुरू हो गई है। दूसरी ओर पंजाब में भाजपा सांसद और नेताओं पर भारी दबाव बनाया जा रहा है।

राजग सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ जारी मुहिम के बीच केंद्र सरकार ने वैकल्पिक रास्ते भी तलाशने शुरू कर दिये हैं। मंगलवार को भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता के अनुसार गृहमंत्री की ओर से अचानक कुछ किसान संगठनों को वार्ता का आमंत्रण मिला है। वहीं बंद के पूर्व और बाद के दौरान केंद्र सरकार के मंत्रियों के तेवरों से तो नहीं लगता है कि सरकार बैकफुट पर है। ऐसे में बुधवार को होने वाली छठे दौर के बातचीत के निष्कर्षों को लेकर मौजूदा हालात में सिर्फ कयास ही लगाये जा सकते हैं क्योंकि तेरह दिन से आंदोलित किसान पीछे हटने को तैयार नहीं दिखते।

वहीं दूसरी ओर बंद के दौरान राजग शासित राज्यों में सरकारों की सख्ती भी सामने आयी है। इसके बावजूद आमतौर पर किसान आंदोलन अनुशासित और शांतिपूर्वक ही रहा है। विपक्षी दलों वाली सरकारों में विरोध के स्वर मुखर रहे। मसलन मुंबई में सबसे बड़ी एपीएमसी मंडी बंद रही तथा किसानों के समर्थन में रैलियां निकाली गईं।

बहरहाल, दिल्ली बॉर्डर पर डटे किसान आरपार की लड़ाई के मूड में नजर आ रहे हैं। केंद्र सरकार से बातचीत अपने पक्ष में करने के मकसद से वे दबाव बनाने का कोई मौका चूकने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि कड़ाके की ठंड और कोरोना महामारी के दौर में भी खेत-खलिहान छोड़कर अग्रिम मोर्चे पर डटे हैं।

वहीं सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि जब केंद्र सरकार से छठे दौर की वार्ता बुधवार को तय थी तो बंद का आह्वान तार्किक था? या फिर किसान संगठन केंद्र से वार्ता को लेकर आश्वस्त नहीं हैं? या सोचते हैं कि बातचीत के ठोस नतीजे दबाव के बाद ही निकल सकते हैं। बहरहाल, केंद्र सरकार को किसानों के जायज मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। पंजाब केवल कृषि प्रधान राज्य ही नहीं है, सीमावर्ती राज्य होने के कारण संवेदनशील राज्य भी है।

वह भी उस वक्त में जब पाकिस्तान अपने खतरनाक मंसूबे पूरा करने को हर वक्त ताक में बैठा रहता है।


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