सम्पादकीय

माया बीच गहन माया

Subhi
10 April 2022 4:18 AM GMT
माया बीच गहन माया
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मैं तुम्हारी व्यथा खूब समझता हूं बालक, प्रभु बोले। हर प्राणी के दुख का कारण मुझे मालूम है। मेरी प्रभुता इसीलिए बनी हुई है, क्योंकि अभी तक मैं दुख देता हूं और फिर प्राणियों के पर्याप्त अनुयय-विनय के बाद उसको हर लेता हूं।

अश्विनी भटनागर: प्रभु, अचानक प्रकट हो गए?किस चिंता में खोए हुए हो जीव? उन्होंने मुस्करा कर पूछा।प्रभु को अपने सामने साक्षात पाकर मैं कुछ घबरा गया। मैंने हड़बड़ाते हुए उन्हें झुक कर प्रणाम किया और फिर उनके चरणों में बैठ गया।प्रभु ने मेरे सिर पर हाथ फेरा और बोले, क्या फेसबुक पर तुम्हें पर्याप्त लाइक नहीं मिल रहे हैं? ट्विटर पर तुम्हारी पोस्ट रिट्वीट नहीं हो रही है?मैंने उनके पैर पकड़ लिए। आपको कैसे मालूम प्रभु? मैं धन्य हुआ कि आपने मेरी सुन ली।

मैं तुम्हारी व्यथा खूब समझता हूं बालक, प्रभु बोले। हर प्राणी के दुख का कारण मुझे मालूम है। मेरी प्रभुता इसीलिए बनी हुई है, क्योंकि अभी तक मैं दुख देता हूं और फिर प्राणियों के पर्याप्त अनुयय-विनय के बाद उसको हर लेता हूं। प्राणियों को 'ओब्लाइज' करना मेरी प्रवृत्ति है। संसार एक तरह से 'ओब्लाइज' करने का निरंतर चक्र है। इसको कुछ ज्ञानी पुरुष माया भी कहते हैं।

मुझको भी 'ओब्लाइज' करें, मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी प्राब्लम फेसबुक है प्रभु… उसका निदान करें, मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा। मेरा उद्धार करें। प्रभु पास में स्थित एक शिला पर बैठ गए। मैंने उनके चरणों को हाथों में उसी तरह ले लिया जैसे कोई भक्त पावन प्रसाद को अपने हाथों में लेता है।

देखो, प्रभु ने गंभीरता से कहा, यह फेसबुक और ट्विटर का मामला बेहद पेचीदा है। मैंने तो सिर्फ माया उत्पन्न की थी, पर फेसबुक माया में माया है, जिसका लोभ और मोह मानव मात्र को वैदिक लोभ और मोह से विरक्त कर रहा है।

अभी तक तुम जैसे जीव माया के परदे की वजह से पड़ी लकड़ी को सांप और सांप को लकड़ी के भ्रम से ग्रसित हो जाते थे। ज्ञान और भक्ति के जरिए इस भ्रम को तोड़ा जा सकता था और माया के स्वरूप को पहचाना जा सकता था। पर अब मामला…. वे कहते-कहते रुक गए।

मैं घबरा गया। स्पष्ट था, प्रभु स्वयं प्राब्लम में फंसे हुए थे। उनके दिव्य पटल पर चिंता की रेखाएं उभर आई थीं। प्रभु, आप अंतर्यामी हैं। तीनों लोकों के स्वामी हैं। आपसे कुछ भी छिपा नहीं है। आपके पास हर समस्या का हल है। मेरी नैया पार लगा दो प्रभु, मैं आपका सात जन्मों तक ऋणी रहूंगा, हे पालनहार।

उन्होंने एक लंबी सांस छोड़ी। पुत्र, उन्होंने कहा, फेसबुक और ट्विटर का खेल समझना लगभग असंभव है। माया में गहन माया और फिर उसमें अलगोरिथ्म का अदृश्य पासा कहां और कैसे पड़ेगा देवताओं की दिव्य दृष्टि से भी परे है। कौन-सी पोस्ट वायरल हो जाती है- दोपहर के सूर्य की तरह सबको चौंधिया देती है- और कौन-सी तेजस्वी होते हुए भी एफबी के अथाह मटमैले सागर में विलीन हो जाती है, कभी नहीं जाना जा सकता है।

फेसबुक की गणित-माया के छल से सहस्त्रों कोस आगे है। तुम चाहे कितना भी टैग कर दो, प्रमोट कर दो, पर तुम्हारी पोस्ट फेसबुक के अलगोरिथ्म की माया को नहीं भेद पाएगी।

प्रभु की व्याख्या सुन कर मैं रुआंसा हो गया। उनके प्रकट होने पर उम्मीद जगी थी कि विधाता के आशीर्वाद से मैं अपने फेसबुक-ट्विटर संग्राम में विजयी होने का गौरव प्राप्त कर लूंगा। मेरी भक्ति से प्रसन्न होकर वे मुझे जरूर ऐसा रामबाण देंगे, जो कि फेसबुक की नाभि को छिन्न-भिन्न कर देगा।

मैं गिड़गिड़ा पड़ा, एक दशक से मैं अभिमन्यु की तरह फेसबुक-ट्विटर के चक्रव्यूह में अपनी पोस्टों को रथ के टूटे पहिये की तरह लिए अलगोरिथ्म से युद्ध कर रहा हूं। लोग मेरे साहस की दाद देते-देते थक गए हैं। पर मैं लगा हूं। आप मेरी आखिरी उम्मीद हैं प्रभु। मुझे निराश मत करिएगा।

प्रभु बोले, इस आधुनिक माया का मैं तुझे निदान नहीं दे सकता। अगर मैं निदान दे सकता होता तो मैं सिर्फ प्रभु क्यों रहता, मार्क जुकरबर्ग नहीं बन जाता- सबको लील जाने वाली महामाया का जनक!

प्रभु विचलित हो गए थे। फेसबुक ने विकट प्रतिस्पर्धा प्रस्तुत कर दी थी उनके लिए। तो अब क्या होगा प्रभु? मैंने सहानुभूति भरे स्वर में पूछा।

वत्स, मैं वही कर सकता हूं, जो हमेशा करता आया हूं। मेरा सिस्टम अपग्रेड नहीं हो सकता है। मैं अजर-अमर हूं, सर्वव्यापी हूं, फेसबुक थोड़े ही हूं, जो पलक झपकते ही अपना अलोगेरिथ्म रिसेट कर लूं। मैं निदान नहीं, ज्ञान दे सकता हूं।

मैं हाथ जोड़ कर घुटनों पर बैठ गया। मुझे ज्ञान दें प्रभु, मैंने याचना की।

प्रभु ने अपना मुकुट सिर पर पुन: व्यवस्थित किया और बोले, हे प्राणी, फेसबुक का धंधा तेरे अहंकार पर टिका है। तू प्रसिद्धि चाहता है, पर अगर फेसबुक ने तुझे प्रचुर प्रसिद्धि एक ही बार में दे दी, तो तू उसके वश में नहीं रहेगा। तू अधिक और अधिक लाइक और कमेंट पाने के लिए दिन भर जूझता रहता है, जबकि तुझे अब तक तो यह विदित हो ही चुका है कि तेरे सारे प्रयास अर्थहीन हैं।

फेसबुक का अलगोरिथ्म अपने तरीके से चलता है और उसकी महिमा अपरंपार है। उसके जाल से निकल प्राणी… लाइक पाने की लालसा त्याग दे। कर्म कर, फल की इच्छा मत रख।

पर प्रभु, मैंने पूछा, मैं अपनी पोस्ट में निन्यानबे लोगों को टैग करता हंू, फिर मैसेंजर में जाकर संदेश भेजता हूं कि मेरे दोस्त, मेरे मेहरबान, मैंने पोस्ट डाली है, प्लीज उसको लाइक, कमेंट और शेयर करो… सारा दिन यही काम करता हूं, फिर भी दस-पांच लाइक ही मिलते हैं…

प्रभु हंसे और उदास स्वर में बोले, फेसबुक तेरे संबंधों की नश्वरता दिखाता है पुत्र। जिनको तू अपना समझता है वे वास्तव में तेरे नहीं हैं। उनको तेरी परवाह नहीं है। वे अपनी पोस्ट लगाने में लगे हुए हैं…

पर प्रभु, मैं उनकी बात काटते हुए कहा, करोड़ों लोग और भी हैं फेसबुक पर, जो मेरा हौसला बढ़ा सकते हैं, पर उन तक मेरा संदेश नहीं पहुंचता है। फेसबुक उसे लील जाता है। मैं उसकी भूख से कैसे बचूं?

उन्होंने सिर हिलाया। नहीं बच पाओगे। उसकी लीला मानव हित के लिए नहीं, बल्कि स्वयंहित के लिए है। जो वायरल होते हुए तुम्हें दिख रहे हैं, वे वास्तव में वायरल नहीं हैं। वास्तव में फेसबुक उनका भक्षण करके खुद वायरल हो रहा है। ट्विटर भी वैसा ही है। अगर माया महाठगनी है, तो फेसबुक महाडकैत है।

तुम सब लुट चुके हो और मजे की बात यह है कि सिर्फ फेसबुक ऐसी माया है, जो लुटे को लूट कर भी कुछ न कुछ घर ले जाता है। जब तक मेरा रिसेट बटन क्रिया में नहीं आता है, तब तक विधि का विधान मान कर फेसबुक के प्रति समर्पित रहो। पोस्ट करो, लाइक की इच्छा मत पालो। आज जो जीता है उसके लिए यही मेरा ज्ञान है।


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