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![जयशंकर की यात्रा सफल हो ! जयशंकर की यात्रा सफल हो !](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/05/23/1067758--.webp)
आदित्य चोपड़ा | इलाहाबाद, गाजीपुर, उन्नाव के बाद उत्तर प्रदेश में कानपुर के निकट में गंगातट पर रेत में सैकड़ों की तादाद में दबी मिली लाशों से सिद्ध हो रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर से सर्वाधिक प्रभावित ग्रामीण इलाके ही रहे हैं। गांवों को ही 'असली भारत' कहा जाता है अतः निष्कर्ष निकलता है कि इस बार कोरोना ने भारत के ग्रामीण चिकित्सा तन्त्र की 'असलियत' खोल कर रख दी है और असलियत यह है कि गांवों में लोग इस महामारी से इस तरह बेहिसाब तरीके से मर रहे हैं कि उनके आंकड़े किसी सरकारी फाइल में दर्ज नहीं हो रहे हैं। यह वर्तमान समय की सबसे बड़ी त्रासदी है कि मरने के बाद मौत को हम 'सम्मान' नहीं दे पा रहे हैं। भारत में गरीब से गरीब आदमी भी अपने परिवार के मृतक शरीर का अन्तिम संस्कार पूरे आदर और सम्मान के साथ करना चाहता है। परन्तु कोरोना ने वह दिन दिखा दिया है कि श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में लोग कतारें लगा कर अन्त्येष्टि करने की अपनी बारी का इन्तजार कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति का यह विरोधाभास नहीं है बल्कि अन्तिम सत्य 'मृत्यु' का महा-अभिवादन है कि लोग अपने मृत परिजनों को दूसरे लोक की यात्रा पर जाते समय उसके सम्मान में कमी बर्दाश्त नहीं करते। बेशक जीते जी किसी परिवार में वृद्ध व्यक्ति को उपेक्षा का शिकार होना पड़ सकता है मगर उसकी मृत्यु उपेक्षित नहीं रहती। शायद इसी वजह से भारत के गांवों में आज भी यह कहावत प्रचिलित है कि-
![Triveni Triveni](/images/authorplaceholder.jpg?type=1&v=2)