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वह चाहे सबसे ऊंचे राजनीतिक पद पर बैठा व्यक्ति हो या कोई धार्मिक संस्था अथवा धर्मगुरु
चंदे के लाइसेंस को उसे अगर नियमों के उल्लंघन के आधार पर फिर से अनुमति नहीं दी गई, तो इस मुद्दे को नियम और प्रक्रियाओं के संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए था। लेकिन भारत सरकार और उसके समर्थकों से बाहर कोई इस घटना को इस रूप में देखने को तैयार नहीं है, तो उसकी वजह एक दूसरा संदर्भ है।
कानून से ऊपर कोई नहीं है। वह चाहे सबसे ऊंचे राजनीतिक पद पर बैठा व्यक्ति हो या कोई धार्मिक संस्था अथवा धर्मगुरु। यह सिद्धांत सब पर लागू होता है, जिसमें मिशनरीज ऑफ चैरिटी भी है, भले इस संस्था से मदर टेरेसा जैसी मशहूर शख्सियत का नाम जुड़ा हो। इसलिए चंदे के लाइसेंस को उसे अगर नियमों के उल्लंघन के आधार पर फिर से अनुमति नहीं दी गई, तो इस मुद्दे को नियम और प्रक्रियाओं के संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए था। लेकिन भारत सरकार और उसकी समर्थक जमातों से बाहर कोई इस घटना को इस रूप में देखने को तैयार नहीं है, तो उसकी वजह एक दूसरा संदर्भ है। वो संदर्भ यह है कि खुद वर्तमान सरकार ने ये धारणा बनने दी है कि भारत में सब पर समान रूप से कानून लागू नहीं होता। जो व्यक्ति या संगठन सत्ता पक्ष से राजनीतिक या वैचारिक रूप से जुड़े हुए हों, कानून की धार उनके सामने भोथड़ी पड़ी नजर आती है। जबकि जो उसके विरोधी या अलग मत की संस्था हों, उनके मामले में ये धार उतनी ही तीखी हो जाती है। इसीलिए भारत के एक बड़े हलके और विश्व मीडिया में मिशनरीज और चैरिटीज के एफसीआरए खाते को फ्रीज करने की घटना को ईसाइयों पर कथित रूप से बढ़ते हमलों से जोड़ कर देखा गया है।
इसके अलावा यह भी सच है कि अतीत में कई बार हिंदुत्ववादी संगठन मदर टेरेसा और उनकी बनाई इस संस्था से नाराजगी दिखा चुके हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी को एफसीआरए लाइसेंस के नवीकरण की अनुमति नहीं दी गई है। लाइसेंस का नवीकरण 31 दिसंबर को होना था। लेकिन मंत्रालय ने कहा कि संस्था के आवेदन पर विचार करते समय कुछ "प्रतिकूल जानकारी" मिली, जिसकी वजह से अनुमति नहीं दी गई। यह संस्था मूल रूप से अंतरराष्ट्रीय कैथोलिक चर्च के तहत चलने वाला एक धार्मिक और सेवा संस्थान है। इसकी स्थापना मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में की थी। धीरे धीरे यह दुनिया भर में फैल गई और आज कई देशों में इसकी शाखाएं हैं। संस्था का दावा है कि उसके रोगियों और पीड़ितों आदि की सेवा की जाती है। मुमकिन है कि कुछ लोग इस सेवा के पीछे धर्म प्रसार की मंशा देखते हों। लेकिन यहां फैसला सरकार का है, जिससे सब पर समान रूप से कानून लागू करने की अपेक्षा रखी जाती है।
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