सम्पादकीय

राष्ट्रहित की बात

Subhi
18 Sep 2022 2:11 AM GMT
राष्ट्रहित की बात
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एससीओ शिखर बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहकर अपनी प्राथमिकता स्पष्ट कर दी कि वह भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब में रूपांतरित करना चाहते हैं।

नवभारत टाइम्स; एससीओ शिखर बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहकर अपनी प्राथमिकता स्पष्ट कर दी कि वह भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब में रूपांतरित करना चाहते हैं। जाहिर है, 'मेक इन इंडिया' के विजन से उपजी यह नीति सिर्फ भारत की जरूरत नहीं, अन्य बड़े देशों के लिए अवसर भी है। अमेरिका और पश्चिमी देश आज सप्लाई चेन के लिए चीन पर निर्भरता घटाना चाहते हैं। भारत के पास इसका फायदा उठाने का मौका है। दुनिया की 40 फीसदी आबादी और 30 फीसदी जीडीपी को कवर करने वाले शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन यानी एससीओ शिखर बैठक में की गई इस स्पष्ट घोषणा का मकसद इस मंच की प्राथमिकताएं तय करने में मदद करना भी था। ध्यान देने लायक बात है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण को इतना संक्षिप्त और सटीक रखा कि उसमें आतंकवाद जैसे मुद्दे को भी जगह नहीं मिली, लेकिन फिर भी खाद्य सुरक्षा का मसला उसमें आ गया।

साफ है कि भारत इस मंच को आपसी सहयोग के जरिए क्षेत्रीय और वैश्विक विकास की संभावनाएं मजबूत करने के एकल लक्ष्य पर केंद्रित रखना चाहता है। लेकिन एससीओ देशों की इस दो दिवसीय शिखर बैठक की अहमियत यहां होने वाली घोषणाओं और समझौतों की वजह से ही नहीं, इस मौके पर होने वाली द्विपक्षीय मुलाकातों की वजह से भी थी।

भारत के लिहाज से देखें तो चीनी राष्ट्रपति शी के साथ पीएम मोदी की मुलाकात की आधिकारिक पुष्टि न होने के बावजूद उसकी संभावना लगातार जताई जा रही थी। खासकर इसलिए भी कि इस शिखर बैठक से कुछ ही पहले दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख सीमा पर विवादित हिस्से से सेनाओं की वापसी का न केवल समझौता हुआ बल्कि उस पर अमल भी कर लिया गया। हालांकि दोनों देशों के बीच हालिया विवाद के बाद तनाव इस सीमा तक बढ़ चुके हैं कि चलते-चलते हुई किसी एक मुलाकात से इसमें निर्णायक प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेकिन रिश्तों पर जमी बर्फ ऐसी मुलाकातों की धूप से ही पिघलना भी शुरू होती है।

बहरहाल, मोदी और शी के बीच औपचारिक मुलाकात और बातचीत की पुष्टि नहीं हुई है, मगर इसी शिखर बैठक में हुई पुतिन और मोदी तथा पुतिन और शी की मुलाकात खासा अहम रहीं। पुतिन और मोदी की मुलाकात ने जहां द्विपक्षीय रिश्तों की करीबी को रेखांकित किया वहीं पुतिन और शी की मुलाकात ने दोनों के रिश्तों में आई हलकी सी दरार को। शी ने अपनी तरफ से यूक्रेन मसले का जिक्र तक नहीं किया लेकिन पुतिन ने सार्वजनिक तौर पर माना कि यूक्रेन मसले पर चीन की कुछ असहमतियां हैं। मगर भारत के नजरिए से तो सबसे बड़ी बात यही है कि उसने न सिर्फ एससीओ में अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज की बल्कि रूसी राष्ट्रपति के साथ करीबी बढ़ाने का संकेत देकर अपनी स्वतंत्रता और अपने व्यावसायिक हितों की सर्वोच्चता बरकरार रखी।


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