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Written by जनसत्ता; हाल में ऐसी खबरें खूब प्रचारित हुईं कि कई विद्यार्थियों को सौ फीसद अंक आए। फिर भी वे वैसे कई छात्र-छात्रा संतुष्ट नहीं है। मेरा तो मानना है कि ऐसे विद्यार्थियों की कापी को सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि और बच्चे भी इनसे प्रेरित हो सकें। मेरे खयाल से अगर सही तरीके से उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन किया जाए, तो भी केवल बहुविकल्पी उत्तर वाले प्रश्नों के अलावा यह किसी भी सूरत में संभव नहीं कि सौ फीसद अंक हासिल कर लिया जाए। विस्तृत उत्तर वाले प्रश्नों को हल करते हुए भले ही किसी विद्यार्थी के पास दुर्लभ स्मृति क्यों न हो, फिर भी गणित के अलावा किसी विषय में सौ फीसद अंक ला पाना बेहद मुश्किल है।
एक पहलू यह भी है कि परीक्षक इन उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कैसे करते होंगे। देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की कापी के बारे में परीक्षक महोदय को लिखना पड़ा था कि परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है। आजकल तो वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के अलावा विस्तार पूर्वक उत्तर लिखकर भी पूरे अंक मिल रहे हैं। देखा जाए तो ये अट्ठानबे या निन्यानबे या सौ फीसद अंक केवल खुश करने के अभ्यास हैं।
बाद में जब यही बच्चे मेडिकल, इंजीनियरिंग की प्रतियोगिता में बैठकर पास नहीं कर पाते तो माता-पिता को लगता है कि उनके जीनियस पुत्र या पुत्री के साथ अन्याय हो गया। फिर शुरू होता है देश भर में फैले बेहद महंगे कोचिंग संस्थानों में बच्चों को सेट करने का खेल। फिर मां-बाप जमीन, मकान बेच डालते हैं। मोटा कर्ज उठाते हैं, भ्रष्टाचार की गंदी गटर में कूदकर पैसा फेंकते हैं, ताकि येन-केन-प्रकारेण बच्चे को मेडिकल-इंजीनियरिंग करने यूक्रेन, रूस, चीन, बांग्लादेश में दाखिला मिल जाए।