सम्पादकीय

मास्क अब भी जरूरी

Rani Sahu
13 Dec 2021 6:57 PM GMT
मास्क अब भी जरूरी
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भारत सरकार ने मास्क को लेकर एक चेतावनी दी है। यह चेतावनी कोरोना वायरस के ‘ओमिक्रॉन’ स्वरूप के वैश्विक विस्तार और संक्रमण के मद्देनजर खतरे की घंटी के तौर पर सुनी जाए

भारत सरकार ने मास्क को लेकर एक चेतावनी दी है। यह चेतावनी कोरोना वायरस के 'ओमिक्रॉन' स्वरूप के वैश्विक विस्तार और संक्रमण के मद्देनजर खतरे की घंटी के तौर पर सुनी जाए। 'ओमिक्रॉन' के लक्षण फिलहाल अनिश्चित हैं। नए स्वरूप का असर कितना गंभीर और व्यापक है, उसका शोध और साक्ष्य अभी सामने आने हैं। नए वायरस के कारण मृत्यु-दर फिलहाल कम है। भारत में भी 38 मामलों की पुष्टि मात्र 10 दिनों में हो चुकी है। जाहिर है कि संक्रमण ने फैलाव शुरू कर दिया है। ऐसे में नाक और मुंह को ढकने वाला मास्क आपको 70-80 फीसदी तक संक्रमण से बचा सकता है। यह आकलन देश के विशेषज्ञ चिकित्सकों का है। वे टीवी चैनलों और अन्य मीडिया के जरिए बार-बार आग्रह कर रहे हैं कि मास्क जरूर पहनें और कोरोना संक्रमण को दूर रखें। चिंताजनक यह है कि कोरोना की दूसरी लहर के नगण्य होने से पहले ही औसत भारतीय ने मास्क पहनना बेहद कम कर दिया है अथवा मास्क उतार कर जेब में रख लिया है। एक प्रमुख स्वास्थ्य संस्थान और सरकार का आकलन है कि अप्रैल-मई, 2021 की दूसरी लहर के दौरान 80 फीसदी से ज्यादा लोग मास्क पहनते थे, लेकिन अब यह औसत 59 फीसदी तक लुढ़क गया है। भारत को जापान और दक्षिण कोरिया सरीखे देशों से सबक सीखना चाहिए, जहां 92 फीसदी से ज्यादा लोग आज भी मास्क पहनते हैं। नतीजतन वहां कोरोना वायरस के किसी भी स्वरूप का संक्रमण सीमित है। गौरतलब यह है कि जब दुनिया में कोरोना वायरस का वैश्विक महामारी के तौर पर विस्फोट हुआ था, तब मास्क बेहद महंगे बेचे गए। सामान्य मास्क, प्रदूषण रोकने वाले मास्क और कोरोना को काबू करने वाले मास्क में अंतर है, लेकिन आज तो घर-घर में मास्क का उत्पादन किया जाता है। मास्क मात्र 1-2 रुपए में भी मिल जाता है, तो 10-50 रुपए भी कीमत है। कपड़े की एक परत वाला मास्क भी पहनेंगे, तो वह 30-40 फीसदी तक संक्रमण को रोकेगा। सर्जिकल मास्क तो 70-80 फीसदी तक संक्रमण से बचा सकते हैं।

मकसद है कि वायरस हमारी सांस के साथ नाक और मुंह के रास्ते हमारे शरीर के भीतर प्रवेश न कर सके। अभी तो यह शोधात्मक निष्कर्ष भी सामने आना है कि कौन से टीके कोरोना के नए स्वरूप के संदर्भ में भी प्रभावी हैं। हमें सुरक्षा की संजीवनी प्रदान करने में सक्षम हैं। औसतन टीके 60-70 फीसदी ही संक्रमण से बचाव कर पाते हैं। तो कोरोना संक्रमण के नए दौर में भी मास्क का लगातार इस्तेमाल क्यों न किया जाए? ध्यान रहे कि छुट्टियों का मौसम करीब है। देश के पांच राज्यों में चुनाव हैं। सबसे ज्यादा आबादी वाले उप्र में भीड़ और संक्रमण की उपजाऊ स्थितियां बन रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी लगातार जनसभाओं को संबोधित कर रहे हैं। भीड़ के जमावड़े होंगे, पार्टियां भी होंगी, सामाजिक जमावड़े भी हो रहे हैं। न मास्क की परवाह है और आपसी दूरी का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। बाज़ार सजने लगे हैं, तो आम उपभोक्ता भी जा रहा है। उस भीड़ को रोकना भी असंभव है। 'ओमिक्रॉन' की तो शुरुआत है। संक्रमण के जो मामले पकड़ में आ रहे हैं, उनमें से बेहद कम ही 'ओमिक्रॉन' के हैं, लेकिन उन लोगों में भी संक्रमण पाया जा रहा है, जिनका विदेश-यात्रा का इतिहास नहीं है। टीकाकरण ही एकमात्र उपाय नहीं है और फिर भारत में टीकाकरण को अभी बहुत लंबे फासले तय करने हैं। अमरीका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों में लगभग पूरा टीकाकरण होने के बावजूद क्रमशः 1.2 लाख संक्रमित केस हररोज़ आ रहे हैं। जर्मनी और ब्रिटेन में संक्रमण का औसत करीब 50,000 रोज़ाना का है। भारत में बीते कई सप्ताह से संक्रमित केस 10,000 से कम आ रहे हैं। ढील आम आदमी के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन के स्तर पर भी है। हालांकि कई राज्य सरकारों ने मास्क न पहनने पर जुर्माने भी लगाए हैं, लेकिन अब ऐसे अभियान समाप्त हो चुके हैं। इस पहलू पर गंभीरता से सोचना चाहिए।

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