सम्पादकीय

शहीदों के गांव : शाहपुरा में जीवंत हैं शहीद प्रताप की स्मृतियां

Rounak Dey
29 Oct 2021 1:50 AM GMT
शहीदों के गांव : शाहपुरा में जीवंत हैं शहीद प्रताप की स्मृतियां
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प्रताप सिंह बारहठ की जिस आसानाडा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तारी हुई थी, वहां भी एक स्मारक का निर्माण हो रहा है।

हम राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा नगर में आ चुके हैं। यहां नगरपालिका की ओर से आबादी के मध्य निर्मित क्रांतिकारी-त्रयी केसरी सिंह बारहठ, जोरावर सिंह बारहठ और शहीद प्रताप सिंह बारहठ के स्मारक पर पहुंचकर मुझे बरेली केंद्रीय कारागार में 24 मई, 1918 को प्रताप सिंह के बलिदान की कथा शिद्दत से याद आती है, जिसे क्रांतिकारी संगठन के सर्वोच्च नेता शचींद्रनाथ सान्याल ने बंदी जीवन में प्रताप की कहानी शीर्षक से लिपिबद्ध किया है।

प्रताप उत्तर भारत के प्रथम 'बनारस षड्यंत्र' और लार्ड हार्डिंग्ज मामले, दोनों से जुड़े अनोखे क्रांतिकारी थे। दल ने उन्हें राजपूताना का कार्यभार सौंपा था। पर अपने घर से वह गुप्त क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए चले, तब किसी को क्या पता था कि दल में उनका महत्व इतना बढ़ जाएगा कि रासबिहारी बोस जैसे विप्लवी नेता 25 वर्ष के इस नौजवान पर सर्वाधिक भरोसा करने लगेंगे।
आगे चलकर जोधपुर के पास आसानाडा रेलवे स्टेशन पर प्रताप को धोखे से पकड़ लिया गया। ब्रिटिश सरकार जानती थी कि बनारस मामले और राजपूताना में गुप्त कार्रवाइयों के साथ ही लार्ड हार्डिंग्ज पर दिल्ली के चांदनी चौक पर बम फेंकने जैसे अनेक रहस्य उनके पास हैं। ऐसे में गुप्तचर विभाग के अधिकारी चार्ल्स क्लीवलैंड ने बरेली जेल में पहुंचकर प्रताप से मुलाकात की।
उन्हें अनेक प्रलोभन दिए। यह भी कहा कि उनकी मां बहुत रोती हैं। लेकिन प्रताप ने दृढ़ता से उत्तर दिया, 'मैं अपनी अकेली मां को हंसाने के लिए देश की हजारों मांओं को नहीं रुलाना चाहता।' सरकार ने इसके बाद चाल चली कि वह प्रताप को दिल्ली और कोटा षड्यंत्र केस में बंदी उनके क्रांतिकारी पिता केसरी सिंह के पास हजारीबाग जेल ले गई। प्रताप को सामने देखकर पिता ने उन्हें कमजोरी न दिखाने की चेतावनी दी। उन क्षणों में प्रताप ने पिता को भरोसा दिलाया कि वह ऐसा हरगिज नहीं करेंगे।
अधिकारी हर तरह से हार गए, तब प्रताप को बरेली में लाकर भयंकर यातनाएं दी गईं, जिससे उनका प्राणांत हो गया। उनके शव को वहीं जेल की चहारदीवारी के भीतर खामोशी से दफना दिया गया। पिता केसरी सिंह जब जेल से रिहा होकर आए, तब किसी ने उनसे कहा कि क्या आपको प्रताप की मृत्यु की खबर मिली। वह बोले, 'यह मैं आपसे ही सुन रहा हूं।'
कैसे धैर्यवान क्रांतिकारी पिता और उनका अनोखा बलिदानी पुत्र, जिसके बारे में राव गोपाल सिंह खरवा ने कहा था-'विधाता ने सौ रंघड़ (वीर क्षत्रिय) भांग कर एक प्रताप को बनाया था।' शचींद्रनाथ सान्याल ने लिखा है कि उन्होंने प्रताप जैसे युवक कम ही देखे हैं। प्रताप की इस गाथा के साथ हमें यह भी जानना चाहिए कि उनके पिता केसरी सिंह बारहठ ने क्रांतिकर्म ही नहीं, बल्कि राजस्थानी भाषा में जो साहित्य रचा, उसका बहुत ऊंचा स्थान है।
उन्होंने उदयपुर के महाराणा फतहसिंह को वायसराय लार्ड कर्जन के दिल्ली दरबार में उपस्थित न होने के लिए सोरठों के माध्यम से चेतावणी रा चूंगाट्या लिखकर संबोधित किया, जिसे पढ़कर फतहसिंह के मुंह से सहसा ही निकल पड़ा,' यदि ये सोरठे उदयपुर में मिल जाते, तो हम वहां से रवाना ही नहीं होते।' महाराणा ने दिल्ली पहुंचकर भी उस दरबार में शामिल न होने का फैसला कर लिया।
हमने एक विशाल प्राचीर से घिरी हवेली में प्रवेश किया। बारहठ परिवार की यह हवेली अब इस क्रांतिकारी परिवार की विरासत के तौर पर अद्भुत संग्रहालय में तब्दील कर दी गई है। क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ, जोरावर सिंह बारहठ तथा अमर शहीद प्रताप सिंह बारहठ की दुर्लभ निशानियों, चित्रों और उस इतिहास का एक-एक पृष्ठ यहां संजोकर रखा गया है।
शाहपुरा के 'अमर शहीद प्रतापसिंह बारहठ राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय' में शहीद बारहठ की प्रतिमा के साथ उनकी मां की स्मृति में संचालित 'वीर माता माणिक कंवर राजकीय आदर्श बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय' में पहुंचकर तो उस जननी के इस स्मारक स्थल पर उकेरे गए उनके शब्द किसी के भी नयनों को सजल कर देते हैं-' प्रताप! तुमने अपनी मां को पहचानने में भूल की।
धोती के लिए दो रुपये तुम लेकर गए, तभी तुमने मन की बात कह दी होती, तो मैं तुम्हें तिलक लगाकर विदा करती और फूल-मालाओं से लाद देती।' उस मां की यह शब्द-संपदा पढ़कर मैं थोड़ी देर को खामोश हो जाता हूं। मां माणिक कंवर! मैं तुम्हें शत बार नमन करता हूं। किसी कवि ने ठीक ही कहा है-वीरां प्रतापजननीं सततं स्मरामि। शाहपुरा के बाहरी मार्ग पर नगर विकास न्यास, भीलवाड़ा की ओर से 19 सितंबर, 2013 को स्थापित इन तीनों क्रांतिवीरों की प्रतिमाएं सचमुच बहुत जीवंत हैं।
इसी के सामने दूसरी तरफ बिजौलिया सत्याग्रह के क्रांतिकारी शहीद विजय सिंह पथिक का स्मारक भी बना दिया गया है। प्रताप सिंह बारहठ की जिस आसानाडा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तारी हुई थी, वहां भी एक स्मारक का निर्माण हो रहा है।

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