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- एक पत्रकार की शहादत
आदित्य चोपड़ा| अफगानिस्तान के कंधार में एक और युवा भारतीय मीडिया कर्मी दानिश सिद्दीकी अपने फर्ज को अंजाम देते शहीद हो गया। एक उत्साही और जांबाज पत्रकार का सफर मंजिल से पहले ही आतंकवाद ने समाप्त कर दिया। इस वर्ष अभी तक अफगानिस्तान में 6 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, जिसमें चार महिला पत्रकार शामिल हैं। पिछले वर्ष 6 पत्रकार शहीद हुए थे। 2018 में अफगानिस्तान में 16 पत्रकारों को जान गंवानी पड़ी थी। इस दौर में पत्रकारिता बहुत जोखिम भरी हो गई है। पत्रकारों को जेल में रखने के मामले में चीन सबसे ऊपर है। इसके बाद तुर्की और मिस्र हैं। बेलारूस और इथियोपिया में बड़ी संख्या में पत्रकारों को जेल में डाला गया है। मीडिया का इतिहास गवाह है कि पत्रकारों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया। या तो वे आतंकवादियों के हमलों का शिकार हुए या फिर उन्हें सरकारों की दमनकारी नीतियों के चलते प्रताड़ित किया गया। आतंकवाद से पीड़ित परिवारों के दर्द का मुझे पूरा अहसास है। मेरे परदादा अमर शहीद लाला जगत नारायण जी और दादा रमेश चन्द्र जी को भी आतंकवादियों ने अपनी गोलियों का निशाना बनाया था। मैंने अपने पिता अश्विनी कुमार का दर्द देखा है जो उन्हें उम्र भर गमगीन बनाता रहा। जब भी कोई पत्रकार शहादत देता है सवाल उठता है कि आखिर पत्रकारों को निशाना क्यों बनाया जाता है? इसका सीधा सा उत्तर है कि पत्रकाराें को निशाना बनाने वाले लोग सच का सामना नहीं कर सकते। वे कलम की ताकत से खौफजदा हैं। पत्रकारों का दमन और उन्हें प्रताड़ित इसलिए किया जाता है ताकि समाज में उठ रहे असहमति के स्वरों को दबाया जा सके।