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- शहादत का महीना दिसंबर
भारतीय इतिहास में विक्रमी सम्वत् 1762 का पौष मास (दिसम्बर 1704) अविस्मरणीय माना जाता है। इसी महीने दशगुरु परम्परा के दशम गुरु श्री गोबिंद सिंह जी के चारों सुपुत्रों अजीत सिंह, जुझार सिंह, ज़ोरावर सिंह और फतेह सिंह ने देश और धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया था। आनंदपुर में मुगल सेना ने गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके साथियों को घेरा हुआ था। घेरा काफी लंबा हो गया था। मुगल शासकों ने मध्यस्थों के माध्यम से गुरु जी तक संदेश पहुंचाया कि यदि गुरु जी अपने साथियों सहित आनंदपुर छोड़ देंगे तो मुगल सेना उनका पीछा नहीं करेगी। मुग़लों ने यह आश्वासन कुरान की क़सम खाकर दिया। गुरु जी ने इस पर विश्वास कर लिया और दिसंबर की सर्द रात्रि में अपने जांबाज साथियों सहित आनंदपुर से रोपड़ की ओर चल पड़े। लेकिन वे अभी बहुत दूर नहीं गए थे कि मुग़लों ने कुरान की क़सम को दरकिनार करते हुए गुरु जी पर हमला कर दिया। सर्द रात्रि के उस भयानक मौसम में हुए अचानक हमले से अफरातफरी मच गई। सिरसा नदी को पार करते हुए गुरु जी के दो बेटे, नौ साल का ज़ोरावर सिंह और छह साल का फतेह सिंह अपनी दादी गुज़री जी के साथ परिवार से बिछुड़ गए और अंदर के ही विश्वासघात के कारण सरहिंद के सूबेदार द्वारा बंदी बना लिए गए।