सम्पादकीय

लड़कियों की शादी की उम्र

Subhi
17 Dec 2021 2:17 AM GMT
लड़कियों की शादी की उम्र
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2020 के स्वतंत्रता दिवस सम्बोधन में ऐलान ​किया था कि देश में महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 किया जाएगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2020 के स्वतंत्रता दिवस सम्बोधन में ऐलान ​किया था कि देश में महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 किया जाएगा। करीब एक वर्ष बाद प्रधानमंत्री ने अपने ऐलान को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी आयु 18 से 21 वर्ष तक बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब इसे संसद में पेश किया जाएगा। अब सरकार बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में संशोधन पेश करेगी और इसके परिणामस्वरूप विशेष विवाह अधिनियम और हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 जैसे व्यक्तिगत कानूनों में संशोधन लाएगी। दिसम्बर 2020 में जया जेटली की अध्यक्षता वाली केन्द्र की टास्क फोर्स द्वारा नीति आयोग को सिफारिशें सौंपी थीं। इस टास्क फोर्स का गठन मातृत्व की उम्र से संबंधित मामलों, मातृ मृत्यु दर को कम करने की अनिवार्यता, पोषण में सुधार से संबंधित मामलों की जांच के लिए किया गया था। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इन्हीं सिफारिशों के आधार पर ही प्रस्ताव को मंजूरी दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था​ कि बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए आवश्यक है कि उनका विवाह उचित समय पर हो। अभी पुरुषों के विवाह की उम्र 21 और महिलाओं की 18 है।अब सवाल यह है कि केन्द्र सरकार लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने के पीछे मंशा क्या है? सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाने के लिए ऐसा करना चाहती है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के आंकड़ों के अुनसार भारत में 27 फीसदी लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष तक की आयु में और 7 फीसदी 15 साल की उम्र में हो रही है। जिसका सीधा असर कम उम्र में मां बनने और मां की प्रसव के दौरान मौत पर पड़ रहा है। ​विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मातृत्व मृत्यु दर गर्भावस्था पर उसके प्रबंधन से संक्रमित कारणों के चलते हर वर्ष एक लाख महिलाओं की मातृत्व के कारण मौत हो जाती है। मातृत्व मृत्यु दर का बड़ा कारण कम उम्र में शादियां होना ही है।चीन में शादी की न्यूनतम उम्र पुरुषों के लिए 22 साल और महिलाओं के लिए 20 साल तय की गई है। पाकिस्तान और कई अन्य मुस्लिम देशों में पुरुषों के लिए शादी की उम्र 18 साल और महिलाओं के लिए 16 साल है। लेकिन तमाम कानूनों के बावजूद वहां पर भी बाल विवाह की एक बड़ी समस्या है।संपादकीय :आधार कार्ड और चुनाव सुधारजय हिन्द से बना 'बांग्लादेश'ओमीक्रोन का बढ़ता खतराशाखाएं बंद करने के लिए क्षमा...कश्मीर में चुनाव परिसीमनआतंक षड्यंत्र अभी जारी हैईरान में लड़कियों के विवाह के लिए न्यूनतम आयु 13 साल है, लेकिन अदालत और लड़की के पिता की अनुमति हो तो 9 वर्ष में भी लड़कियों की शादी कर दी जाती है। इराक में लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष तय है लेकिन अगर मां-बाप की इजाजत हो तो शादी 15 वर्ष की उम्र में भी हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लड़कियों को वैवाहिक दुष्कर्म से बचाने के लिए बाल विवाह को पूरी तरह से अवैध घोषित करने को कहा था परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने भी ​विवाह की आयु पर फैसला लेने का निर्णय सरकार पर छोड़ दिया था।समाज का एक बड़ा तबका मानता है कि लड़कियां जल्दी मैच्योर हो जाती हैं, इसलिए दुल्हन को दूल्हे से कम उम्र की होना चाहिए। साथ ही यह भी कहा जाता है कि क्योंकि हमारे यहां पितृ सत्तात्मक समाज है, तो पति के उम्र में बड़े होने पर पत्नी को उसकी बात मानने पर उसके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचती। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता और स्वास्थ्य विशेषज्ञ समय-समय पर लड़कियों की शादी की उम्र पर पुनर्विचार करने की जरूरत बताते रहे हैं। वर्ष 1929 के बाद शारदा एक्ट में संशोधन करते हुए 1978 में महिलाओं के ​विवाह की आयु सीमा बढ़ाकर 15 से 18 साल की गई थी। जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे महिलाओं के लिए शिक्षा और करियर में आगे बढ़ने के अवसर भी बन रहे हैं। इसलिए महिला मृत्यु दर में कमी लाना और पोषण के स्तरों में सुधार लाना जरूरी है। मां बनने वाली लड़की की उम्र से जुड़े पूरे मुद्दे को इस नजरिये के साथ देखना जरूरी है। देश में तर्क-वितर्क करने वालों की कमी नहीं। आलोचना करने वाले तर्क से साबित कर देंगे कि लड़के की उम्र लड़की से ज्यादा होनी चाहिए। ​किसी जमाने में बाल विवाह कर दिए जाते थे, शादी के वक्त अजीबो-गरीब परम्पराएं भी होती थीं। जबकि इन सबका संबंध हिन्दू धर्म से नहीं था बल्कि इसका संबंध लड़कियों की सामाजिक सुरक्षा से था। मां-बाप लड़कियों की कम उम्र में शादी करके अपने दायित्वों से मुक्त हो जाना चाहते थे। बाल विवाह एक तरह से लड़कियों पर अत्याचार ही था। हिन्दू दर्शन के मुु​​ताबिक आश्रम प्रणाली में विवाह की उम्र 25 वर्ष थी। ​शिक्षा ​विज्ञान के अनुसार 25 साल की उम्र तक युवाओं में विद्या, शक्ति और भक्ति का पर्याप्त संचय हो जाता है। इस संचय के आधार पर ही व्यक्ति गृहस्थ आश्रम की छोटी-बड़ी जिम्मेदारियों को निभा पाने में सक्षम हो जाता है। जहां तक उम्र के फासले का सवाल है तो ऐसा हिन्दू धर्म कोई खास हिदायत नहीं देता। आजकल करियर के पीछे भागते युवा और युुवतियां तब तक शादी नहीं करते जब तक वे सहज जीवन के​ लिए संसाधन नहीं जुटा लेते। तो ​फिर लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 वर्ष करने में किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।

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