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By: divyahimachal
हिमाचल में चुनावी अभियान का उद्घोष मंडी में अपनी विशालता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रश्रय का जिक्र कर गया। मौसम का चुनावी मेहनत से मुकाबला भले ही पड्डल मैदान की रैली में खलल डाल गया, लेकिन जिरह करती भाजपा ने अपना रिपोर्ट कार्ड और सियासी बारात दिखाने में हरसंभव कोशिश की और इसी स्वरूप में मोदी का वर्चुअल भाषण, वास्तविक स्पर्श करता देखा गया। एक तरह से हिमाचल की श्रेष्ठता और दक्षता का वृत्तांत कहते-कहते देश के प्रधानमंत्री ने डबल इंजन की शक्ति और भक्ति का संदेश दिया। इस तरह पड्डल मैदान में भाजपा की शक्ति और मोदी के प्रति भक्ति का आलेप मुस्कराया तथा इसी से वशीभूत पंडित सुखराम का परिवार पूरी तरह भाजपामय हो गया। चुनावी दौर की अगाड़ी-पछाड़ी की दौड़ में भाजपा ने दसवीं बार प्रधानमंत्री का संदेश पाकर, वर्तमान जयराम सरकार के रिवाज़ बदलने के ख्वाब को पुख्ता करने के लिए लाल कालीन बिछाए रखा। रिवाज बदलने की अनुगूंज में, दिल्ली में जो कुछ देश के प्रधानमंत्री कह रहे थे, उसे हिमाचल में इंटरनेट सुना रहा था। यहां सुनने का मुकाबला देखने से और करने का मुकाबला हकीकत से होता देखा गया, तो प्रधानमंत्री ने बल्क ड्रग पार्क, वाइब्रेंट बार्डर विलेज, पवर्तमाला योजना और नेशनल हाई-वे परियोजनाओं के जरिए यह साबित किया कि हिमाचल को केंद्र की अंगुली पकडक़र चलने की जरूरत किस हद तक है।
रिवाज बदलने का व्याकरण अपनी स्मृतियों में दोहरा गया कि आईआईटी, एम्स, ट्रिप्ल आईटी और केंद्रीय विश्वविद्यालय के चमत्कार हुए हैं, तो इसके लिए भाजपा को सदा याद रखो। हिमाचल की सैन्य पृष्ठभूमि को देश चुनाव के मुहाने तक याद रख रहा है, तो यह प्रदेश कुल्लू शाल, चंबा रूमाल व कांगड़ा चित्रकला की बदौलत अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की सद्भावना रखता है। प्रधानमंत्री के भाषण की शाबाशियां अगर जयराम सरकार के प्रदर्शन का विश्लेषण हंै, तो इससे बड़ा प्रमाणपत्र किसी मुख्यमंत्री के लिए और क्या होगा। टीकाकरण और ड्रोन नीति में आगे रहे हिमाचल के लिए यह गर्व का विषय होगा, लेकिन चुनाव जिन मुद्दों को तराश रहा है, क्या वहां प्रधानमंत्री के तर्क अजेय हो जाएंगे। बेशक हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देकर केंद्र व राज्य सरकारें करीब पौने दो लाख लोगों की संवेदना को झनझना चुकी हैं, तो इस संख्या के मतदान का प्रतिशत भी प्रतिफल देगा, यह देखना होगा। जाहिर है मंडी के समूह के सम्मुख वर्चुअल रूप से अवतरित हुए प्रधानमंत्री ने चुनाव में भाजपा के लिए जो खासियत चुनी है, उससे पार्टी के रिवाज बदलने के स्रोत निकलेंगे।
हिमाचल की शांत घाटियों में ये सुर कितने दूर तक अनुगूंज पैदा करेंगे, इससे हटकर कुछ अशांत क्षेत्रों का इंतजार खत्म नहीं हुआ है। शांति को सुनाने से भले ही सद्भावना बढ़े, लेकिन अशांत दरवाजों को खोलने के लिए कहीं अधिक ताकत चाहिए। ये अशांत दरवाजे ओपीएस मामले में देश के प्रधानमंत्री से जो सुनना चाहते हैं, वह अवसर अभी नहीं आया है। ये अशांत दरवाजे प्रदेश की आय-व्यय के हिसाब से निरंतर बढ़ते कर्ज से आतंकित हैं, लेकिन दसवीं बार भी नरेंद्र मोदी के आत्मीय सौहार्द से किसी तरह के आर्थिक पैकेज का संदेश नहीं आया। हम खरी-खरी बातें सुन रहे हैं। हम 'पहाड़ी गांधी' की प्रशंसा होते हुए सुनते हैं, तो आजादी के क्रांतिकारी जज्बात देश की भक्ति से आज भी भर जाते हैं, लेकिन यहां राजनीतिक भक्ति का सवाल खड़ा है। रिवाज बदलने के लिए प्रदेश में मोदी और जयराम के पक्ष में भक्त चाहिएं और सरकार के पक्ष में लाभार्थी चाहिएं। क्या मंडी की रैली के बाद हिमाचल में लाभार्थी और भक्त चयनित हो गए या रिवाज बदलने के लिए इस मुहिम की तलाश बाकी है, यह देखते रहें, सुनते रहें।

Rani Sahu
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