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हिमाचल के उपचुनावों की सतह मंडी संसदीय क्षेत्र में तय होगी, तो बार-बार सियासी शब्द अपना शृंगार कर रहे हैं। विरासत के मूल्यों पर भूचाल की स्थिति पैदा करके भाजपा ने वीरभद्र सिंह के परिवार को सुरक्षात्मक तौर तरीकों तक पहुंचा दिया है, तो यहां चुनावी शैली का घमासान नए प्रयोग कर रहा है। भाजपा यह बताने में कामयाब रही कि न तो कारगिल युद्ध का योद्धा छोटा पड़ रहा है और न ही चुनावी जंग में उनके उम्मीदवार को छोटा आंका जा सकता है। यहां मुकाबला भले ही कांग्रेस की पिच पर नहीं है, फिर भी पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विरासत पर प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह की आक्रामकता पर स्वयं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मोर्चा जमा लिया है। यह चुनाव उनकी व्यक्तिगत राजनीतिक उपलब्धि का सबसे बड़ा गणित और पार्टी के भीतर अजेय होने का सबूत बन सकता है। यह वह भी जानते हैं कि वर्तमान उपचुनावों का सबसे बड़ा कुरुक्षेत्र उनका कुशलक्षेम पूछ रहा है। पार्टी में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के लिए भी सबसे बड़ी परीक्षा वीरभद्र सिंह के ही मायाजाल से हुई थी। तब सामंतवाद का प्रश्न उठाकर धूमल ने वीरभद्र सिंह की परिपाटी से 'राजा' छीन लिया था। वीरभद्र सिंह के सियासी इतिहास के साथ धूमल ने अपनी राजनीतिक हिस्ट्री खड़ी की, तो यह जन नायक बनने के क्रम में निचले क्षेत्रों का आगाज था जिसे पूर्व मुख्यमंत्री ने हासिल किया।
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