सम्पादकीय

मैरिटल रेप की अनदेखी

Subhi
9 Aug 2021 3:15 AM GMT
मैरिटल रेप की अनदेखी
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केरल हाईकोर्ट का हाल में दिया गया यह फैसला बेहद अहम है कि मैरिटल रेप तलाक का मजबूत आधार बनता है।

केरल हाईकोर्ट का हाल में दिया गया यह फैसला बेहद अहम है कि मैरिटल रेप तलाक का मजबूत आधार बनता है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने तलाक की इजाजत दिए जाने के निचली अदालत के आदेश को खारिज करने की पति की अपील नामंजूर कर दी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ-साफ कहा कि देश का कानून भले वैवाहिक संबंधों में होने वाले बलात्कार को अपराध नहीं मानता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोर्ट पति के ऐसे व्यवहार की क्रूरता को तलाक का आधार नहीं बता सकता। भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में आज भी पत्नी के शरीर पर पति का हक माना जाता है। इसी कथित हक के बिना पर लोग अक्सर मान लेते हैं कि उन्हें पत्नी के साथ उसकी मर्जी के बगैर भी सेक्स करने का अधिकार है। हाईकोर्ट ने बिल्कुल ठीक कहा कि आधुनिक सामाजिक न्यायशास्त्र में पति और पत्नी को समान हैसियत का पार्टनर माना जाता है और पति किसी भी रूप में पत्नी पर अपनी मर्जी थोपना अपना अधिकार नहीं मान सकता। कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि समय आ गया है जब शादी और तलाक जैसे मामलों को सेकुलर कानूनों के दायरे में लाना चाहिए। लोग चाहें तो पर्सनल कानूनों के तहत शादी जरूर करें लेकिन उन्हें सेकुलर कानूनों के तहत स्थापित वैवाहिक दायित्वों का निर्वाह करने की अनिवार्यता से छूट नहीं दी जा सकती।

इसी संदर्भ में यह सवाल भी उठता है कि आखिर देश के कानूनों को मैरिटल रेप की अनदेखी करने की छूट कब तक मिली रहेगी। आंकड़े बताते हैं कि देश में शादी के अनुभव से गुजरने वाली 15 से 49 साल के बीच की हर तीन में से एक महिला पति के द्वारा हिंसा का शिकार होने की बात कहती है। दुनिया में सिर्फ 36 देश ऐसे हैं, जहां मैरिटल रेप को कानूनन अपराध नहीं माना जाता। भारत के कानून अंग्रेजों के बनाए हुए बताए जाते हैं, लेकिन ब्रिटेन में भी तीन दशक पहले यह तय हो चुका है कि पति द्वारा पत्नी का रेप करना अपराध है। हालांकि अपने देश में यह आशंका निराधार नहीं है कि ऐसा कानूनी प्रावधान हो जाए तो इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग शुरू हो सकता है। लेकिन संभावित दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था कानून में ही कुछ विशेष प्रावधान जोड़कर की जा सकती है। ऐसे मामलों में गिरफ्तारी को कठिन बनाया जा सकता है। पहले इस मान्यता को कानूनी तौर पर स्थापित तो किया जाए कि शादी हो जाने का मतलब यह नहीं है कि एक को दूसरे के साथ जबर्दस्ती करने का लाइसेंस मिल गया है। कानून का यह दायित्व है कि वह वैवाहिक रिश्ते में होते हुए भी पीड़ित पक्ष को संरक्षण दे। उसे इस जिम्मेदारी से महज इस आधार पर मुक्त नहीं किया जा सकता कि भारत में शादी को जन्म-जन्मांतर का रिश्ता माना जाता है।

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