सम्पादकीय

मार्च तब-अब व भारत सत्य!

Gulabi
21 March 2021 2:04 PM GMT
मार्च तब-अब व भारत सत्य!
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याद करें सन् 2020 के मार्च के चौथे सप्ताह को

याद करें सन् 2020 के मार्च के चौथे सप्ताह को। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अकस्मात हुई लॉक़डाउन घोषणा को। न तैयारी, न समझ और न आगे के असर का ख्याल और 24 मार्च को 138 करोड लोगों का भारत तालाबंद। तब से अब याकि एक साल में दुनिया में जो हुआ वह दुनिया की दास्तां हैं लेकिन बतौर देश भारत, भारत के लोग और भारत के नेतृत्व ने झूठ, बरबादी, असंवेदनशीलता, अवेज्ञानिकता, मूर्खताओं, अंधविश्वास के जितने रिकार्ड बनाए है वह न केवल आजाद भारत की कलंक गाथा है बल्कि बतौर नस्ल हमारे चरित्र, हमारी बुद्धी का वह वैश्विक खुलासा है जिससे अगले चार- पांच साल भारत वायरस की महामारी से लगातार जूझते हुए न केवल खोखला होता जाएगा बल्कि कई सालों दुनिया में भारत अछूत सा रहेगा।

हां, आपको मेरा निष्कर्ष बेसुरा, बेहूदा और अविश्वसनीय व झूठा लगेगा। लेकिन मैंने फरवरी 2020 में फिर लॉकडाउन से पहले और बाद में और लगातार पूरे साल बार-बार लिखा है कि जानों समझो महमारी को, संवेदक बनों, जान-माल की बरबादी तय है। याद रखों सन् 1915- 18 की महामारी में भारत की बरबादी को। और नया इंडिया देश का अकेला अखबार है जिसमें फरवरी 20 से ले कर अब तक कोरोना और संक्रमण की खबर हर रोज लगातार पहले पेज पर पहली, दूसरी या तीसरी खबर के रूप में छपी। देश का अकेला वह 'बेसुरा' अखबार नया इंडिया है जिसने पहले दिन से अब तक सरकार, नेतृत्व, लोगों और राष्ट्र-राज्य के झूठ, मुगालते, अंधविश्वास के बीच पाठकों को बेबाकी से वायरस का सत्य पहले पेज पर प्रस्तुत किया।
पिछले 12 महिनों में कोरोना महामारी से निकले सत्य दो टूक है। पहला सत्य है भारत देश झूठ-अंधविश्वास, मुगालतों में जीता है। दूसरा सत्य है भारत राष्ट्र-राज्य का तंत्र असंवेदनशील है। इस तंत्र में वह समझ, वे इंद्रिया नहीं है जिससे लोगों की तकलीफ, जान-मान की बरबादी का उसे संवेदनामय अहसास हो। तीसरा सत्य है भारत की प्रजा 21 वीं सदी के बावजूद जैसे रामजी रखेंगे वैसे जी लेगें के अंधकार में है। चौथा सत्य है जैसी प्रजा वैसा भारत का नेतृत्व। नेतृत्व का भारतीय चरित्र व अर्थ-बुनावट है जनता को मूर्ख बना, बरगलाते हुए अपना झूठ बनवाए रखना! भले वक्त आपदा-विपदा का हो सबमें अवसर बना दुकान चमकाना है!

सोचे, पिछले एक साल में चली भारत की खबरों, चर्चा, हल्ले, नैरेटिव पर। मार्च में लॉकडाउन हुआ नहीं कि पहले दिन से कोरोना पर विजयी का हुंकारा। नरेंद्र मोदी ने कहां रात नौ बजे नौ मिनट दीया जला, ताली-थाली बजाओं तो वह उनका कमाल और 21 दिनों में कोरोना पर विजय। उसी कमाल के म्युजिक में फिर यह कहानी कि कोरोना सिर्फ इतने शहरों, इतने जिलों याकि इतना कम फैला है। पहले पैनिक और फिर जीत के नगाडे और अनलॉक में वायरस खत्म। फिर लॉकडाउन तो अवसर और अनलॉक तो अवसर और अवसरों में फिर मलेरिया की कुनेन गोली से लेकर वैक्सीन तक भारत विश्व गुरू! मतलब ए से लेकर जेड तक झूठ ही झूठ!

यों मेरा यह सब लिखना बेमतलब है। जिस कौम, जिस बुद्धी की सामूहिक चेतना में इतना भी भान नहीं कि महामारी ने एक साल में कितना बरबाद किया है, उसमें सत्य का क्या अर्थ? हां, इस एक साल में भारत की आर्थिकी वैश्विक पैमाने में सर्वाधिक बरबाद है। किस दूसरी बड़ी आर्थिकी की विकास दर इतनी गिरी जितनी भारत की गिरी? बेरोजगारी, काम-धंधों के चौपट होने में भारत का जो रिकार्ड है वह भला किस और देश का है? पर क्या यह सच्चाई लोगों के जहन, सरकार के दिल-दिमाग में है? यही स्थिति वायरस और महामारी के मामले में है। भारत में लोगों को ध्यान ही नहीं है कि संक्रमितों की संख्या में भारत दुनिया का दूसरे-तीसरे नंबर का देश लगातार है। संक्रमितों की संख्या करोड पार हो व मरने वाले डेढ लाख से ज्यादा हो, भारत रहा तो लगातार दुनिया में दूसरे-तीसरे नंबर पर! लेकिन दुनिया के टॉप दस देशों में से अकेला भारत वह देश है जिसमें इन आंकड़ों पर न सरकार की संवेदना झनझनाती हुई है और न जनता की। मानों देश कीड़े-मकौड़े, भेड़-बकरियों का है जो सुनने को मिलता है लोग मर कहा रहे है? वायरस है कहा? भारत की खोपड़ी में यह सत्य जगह पाता ही नहीं कि यदि एक करोड लोग संक्रमित हो बीमार हुए तो इतनों के परिवार किस संत्रास में गुजरे। कितना पैसा बरबाद हुआ और डेढ़ लाख लोगों की वायरस मौत के अनुभव की पीड़ा क्या होती है?

तभी सभ्य और असभ्य, इंसान बनाम जानवरों के एनिमल फार्मं का अनुभव दुनिया का हर वह राष्ट्र समझ रहा है जिसने महामारी को महामारी की तरह लिया है। इस एक साल में दुनिया ने देखा है कि ईलाज के नाम पर भारत ने, नरेंद्र मोदी ने दुनिया को कुनेन की गोली भेज कर कैसी हवाबाजी की और अब ब्रिटेन-आक्सफोर्ड की प्रयोगशालाओं में बनी वैक्सीन को बनाने का ठेका लिए एक प्राईवेट कंपनी की विश्व सप्लाई से कैसे भारत सरकार यह ढिढोरा पीट रहे है कि भारत बना विश्व गुरू!

मसला थोना चना बाजे घना का ही नहीं है बल्कि राष्ट्र-राज्य के चरित्र, नस्ल की बुनावट और नेतृत्व की प्रकृति में झूठ के उस रसायन के साझेपन का है जो कोरोना काल में हर तरह से जाहिर हुआ है।

और मेरी इस बात को नोट रखें यह झूठ भारत को लगातार बरबाद किए रहेगा। भारत दुनिया का वह देश होने वाला है जिसमें अगले पांच-छह साल वायरस की महामारी दीमक रूप में लोगों को, आर्थिकी को, समाज को, जीवन जीने के तरीकों को जर्जर बनाती जाएगी। न तो भारत में हर्ड इम्युनिटी बनवा सकने जितने टीके लगने है और न लोग वायरस-महामारी की गंभीरता में संजीदा बनने है। दुनिया के सभ्य-विकसित याकि ज्ञान-विज्ञान-सत्य में जीने वाले समाजों में भारत का संपर्क, आना-जाना अछूत की तरह होगा। मतलब विदेशी पर्यटक भारत आने की सोचेंगे ही नहीं और न भारत के लोगों का वे स्वागत करते हुए होंगे। अमेरिका-योरोप-जापान-आस्ट्रेलिया-चीन जैसे विकसित देश इस साल आखिर तक सामान्य हो, सामान्य रिश्तों में ढल सकते है मगर भारत कोरोना वायरस से लगातार कई साल प्रभावित, अछूत और बरबाद होते जाना है।

आप नहीं मानते। मत मानिए। अगली मार्च 2022 में बात करेंगे।


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