सम्पादकीय

कर्ज लेकर घी पीने वाली प्रवृत्ति से देश के कई प्रदेश बर्बादी की कगार पर खड़े

Gulabi Jagat
8 April 2022 2:45 PM GMT
कर्ज लेकर घी पीने वाली प्रवृत्ति से देश के कई प्रदेश बर्बादी की कगार पर खड़े
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प्रधानमंत्री के साथ देश की अलग- अलग योजनाओं पर चर्चा
हर्ष वर्धन त्रिपाठी। प्राचीन भारतीय दार्शनिक चार्वाक का एक दर्शन सूत्र है, जिसका उल्लेख बहुतायत भारतीय गाहे-बगाहे करते ही रहते हैं या सुना तो लगभग सबने होगा। यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत, भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:। यानी एक बार मृत्यु हो गई तो श्मशान में जलकर राख ही हो जाना है तो जब तक जियो सुख से जियो, ऋण लेकर घी पियो। अब चार्वाक का यह दर्शन व्यक्ति के तौर पर हो सकता है कि बहुत से लोगों के लिए प्रेरक हो जाए, लेकिन किसी समाज या राष्ट्र के लिए यह दर्शन कतई प्रेरक नहीं हो सकता, क्योंकि समाज या राष्ट्र की आयु नहीं होती।
प्रधानमंत्री के साथ देश की अलग- अलग योजनाओं पर चर्चा, समीक्षा, सुधार की बैठक में करीब दो दर्जन सचिवों ने कहा कि कर्ज लेकर घी पीने वाली प्रवृत्ति से देश के कई प्रदेश बर्बादी की कगार पर खड़े हैं। देश के वरिष्ठ सचिवों की राज्यों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति पर व्यक्त की गई चिंता यूं ही नहीं है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कहीं किसी लड़ाई में दूर दूर तक नहीं थी, लेकिन ढेर सारी नौकरियों से शुरुआत करके मुफ्त स्कूटी, बिजली और ढेर सारे लुभावने वादों का दिवास्वप्न दिखाने में प्रियंका गांधी वाड्रा की अगुआई में कांग्रेस पीछे नहीं रही। कमाल की बात यह भी थी कि यही कांग्रेस पार्टी पंजाब में आम आदमी पार्टी से पूछ रही थी कि महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये देने के लिए और तीन सौ यूनिट मुफ्त बिजली देने के लिए रकम कहां से लाएगी।
गोवा में ममता बनर्जी की अगुआई वाली तृणमूल कांग्रेस भी किसी लड़ाई में भले नहीं थी, लेकिन चुनाव के समय भला कौन किसी पार्टी की दावेदारी खारिज कर सकता है। इस बीच पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार में आ गई। सरकार आई तो लगा कि सरकार में आने के लिए अपने वादों को मुख्यमंत्री भगवंत मान पूरा करेंगे, लेकिन वादों को पूरा करने के बजाय भगवंत मान दिल्ली आए और प्रधानमंत्री से मुलाकात में राज्य के लिए अगले दो वर्षों तक 50 हजार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की मांग कर डाली। जबकि चुनावों के दौरान भगवंत मान बार-बार यही कह रहे थे कि राज्य में पैसे की कमी नहीं है, बस माफियाओं के खजाने का मुंह सरकारी खजाने की ओर मोडऩा है। अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान को दूसरे नेता बार-बार यदा दिला रहे थे कि कर्ज के मामले में पंजाब के हालात देश में सबसे ऊपर है। कर्ज और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के मामले में सबसे खराब हालात पंजाब के हैं। राज्य में कर्ज और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 53.3 प्रतिशत है। इसके बाद राजस्थान 39.8, बंगाल 38.8, केरल 38.3 और आंध्र प्रदेश का अनुपात 37.7 प्रतिशत है। राज्य की इतनी खराब आर्थिक स्थिति होने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने माले मुफ्त दिले बेरहम वाली राजनीति ही की।
पंजाब ही नहीं, कर्ज में डूबे कई अन्य राज्य जैसे राजस्थान, बंगाल, केरल और आंध्र प्रदेश केंद्र से मिल रहे अनुदान के ही भरोसे चल पा रहे हैं। कमाल की बात यह भी है कि वायरस के संकट काल में भी राज्य अपनी आर्थिक संरचना दुरुस्त करने को तैयार नहीं हैं। केरल में एक अनोखा मामला सामने आया कि केरल की वामपंथी सरकार अपने कैडर को पीए, पीएम जैसी नियुक्ति पर दो साल के लिए रखती है और फिर उन्हें पेंशन का हकदार बनाकर त्यागपत्र दिलाकर पार्टी के लिए काम करने पर लगा देती है। केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान नहीं होते तो शायद यह देश के सामने आ ही नहीं पाता। कोरोनाकाल में देश के 31 में से 21 प्रदेशों का कर्ज और घरेलू उत्पाद का अनुपात आधा प्रतिशत से सात प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। यह चिंताजनक स्थिति है, जिसकी बात देश के वरिष्ठ सचिवों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से की।
यह अच्छी बात है कि देश के प्रमुख औद्योगिक राज्यों में शामिल महाराष्ट्र और गुजरात ने कर्ज और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात संभाल रखा है। महाराष्ट्र 20 प्रतिशत और गुजरात 23 प्रतिशत अनुपात के साथ एन के सिंह की अगुआई वाली राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम समिति की शर्तों के लिहाज से आर्थिक संरचना दुरुस्त कर रखी है। राजकोषीय घाटे के प्रबंधन और उसमें पारदर्शिता के लिए इसे 2003 में लाया गया था, लेकिन तय अवधि के लक्ष्य न तय कर पाने से इसका कोई लाभ नहीं हुआ। वर्ष 2016 में एनके सिंह की अगुआई में समीक्षा की गई कि तय किए गए लक्ष्य प्राप्त करने योग्य हैं या नहीं। वर्ष 2021 में इस समिति ने लक्ष्य भी निर्धारित कर दिए हैं।
ऐसे में जब राज्य आर्थिक संरचना दुरुस्त करने के बजाय माले मुफ्त दिले बेरहम वाले अंदाज में अनाप शनाप मुफ्त की घोषणा करते हैं तो आर्थिक व्यवस्था के लिहाज से बिगड़ते हालात को दुरुस्त करना दूभर होने लगता है। लोकलुभावन घोषणाओं के जरिये चुनाव जीतने की एक कोशिश कृषि कर्जमाफी और सब्सिडी के जरिये भी होती थी। वर्ष 2008 के बजट में तत्कालीन यूपीए सरकार के वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कृषि कर्ज माफी का सबसे बड़ा एलान किया। बजट के बाद वित्त मंत्री लगभग सभी टीवी चैनलों को साक्षात्कार देकर बजट के बारे में बताते हैं। उस समय देश के सबसे बड़े मीडिया घराने में से एक के संस्थापक पत्रकार को तब के वित्त मंत्री पी चिदंबरम का साक्षात्कार करने का अवसर मिला। बिजनेस टेलीविजन के सबसे बड़े पत्रकार टीवी चैनलों के समूह के मालिक होने के बाद से वर्ष में बजट के बाद एक ही साक्षात्कार वित्त मंत्री का किया करते थे। 28 फरवरी 2008 के बजट के बाद पी चिदंबरम का साक्षात्कार उस मीडिया समूह के हिंदी बिजनेस चैनल पर लाइव चल रहा था। साक्षात्कार शुरू ही हुआ था कि अचानक पी चिदंबरम ने माइक निकाल दिया और उठकर खड़े हो गए।
तमतमाए हुए चिदंबरम को टीवी समूह के संस्थापक संपादक ने संभालने की कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहे। दरअसल, उन्होंने पी चिदंबरम से बजट में कर्ज माफी से देश की अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव और बैंकों को होने वाले घाटे की भरपाई के इंतजाम से संबंधित सवालों की शुरुआत कर दी थी और दो बार चिदंबरम ने उस सवाल को टालने की कोशिश की, लेकिन तीसरी बार जब संस्थापक संपादक के घुमाकर सवाल पूछने पर चिदंबरम बुरी तरह से नाराज हो गए तो वह माइक निकालकर उठकर चल दिए। इसके बाद बड़ी मुश्किल से चिदंबरम दोबारा साक्षात्कार देने को तैयार हुए और उस प्रश्न को साक्षात्कार से बाहर रखने की शर्त पर ही तैयार हुए।
देश का हर अर्थशास्त्री यह बात लगातार कहता रहा कि कृषि कर्ज माफी से किसानों का भला नहीं होने वाला और इससे बैंकिंग तंत्र भी ध्वस्त हो जाता है। इसी से समझा जा सकता है कि कृषि कर्ज माफी कितना बड़ा चुनावी कार्यक्रम था और इससे किसानों का कतई भला नहीं होता था। वरना तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम तो खुश होते कि इस पर तीन प्रश्न ही क्यों, पूरा साक्षात्कार ही इसी पर होना चाहिए। कृषि कर्ज माफी की ही तरह ढेर सारे ऐसे लोक लुभावन एलान चुनावी लड़ाई जीतने के लिए नेता कर जाते हैं, जिसका दुष्प्रभाव राज्य के खजाने पर पड़ता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माले मुफ्त दिले बेरहम वाली राजनीति को काफी हद तक काबू में करने का प्रयास किया, लेकिन यह जिन्न एक बार फिर बाहर निकलता दिख रहा है। कुछ भारतीय राज्यों के हालात श्रीलंका जैसे बन सकते हैं, यह केवल सचिवों की चिंता नहीं है। एक ऐसा भयावह सच है, जिसमें सुधार न हुआ तो उस खतरनाक सच का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना होगा।
कर्ज के जाल में फंस श्रीलंका हुआ बर्बाद : विश्व के सभी देशों में विकसित होने की होड़ रहती है और इसके लिए दो ही तरीकें होते हैं। पहला- देश को आत्मनिर्भर बनाने के साथ विदेशी निवेश के लिए अच्छा आधार तैयार किया जाए। दूसरा- ऐसे देश, जिनके पास धन की कमी नहीं है, उनके निवेश से देश में बुनियादी परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया जाए। अधिकतर साधनहीन देशों के लिए विकास का दूसरा रास्ता ही आसान दिखता है। पहले अमेरिका ही विश्व के ऐसे देशों को मदद देने के नाम पर वहां की नीतियां प्रभावित करता था और उस देश की सत्ता में हस्तक्षेप करके विश्व पटल पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका बनाए रखता था, लेकिन बदलते विश्व परिदृश्य में चीन एक ऐसी ताकत बनकर उभरा जो ऐसे देशों को लंबे समय के लिए सस्ता कर्ज देने के नाम पर लुभाने लगा।
अमेरिका से मुकाबले के लिए चीन ने दुनिया का कारोबारी रास्ता तैयार करने की अतिमहत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड तैयार की। पाकिस्तान सहित दुनिया के कई देश उसकी इस योजना के जाल में फंसे भी, लेकिन भारत के इस योजना से पूरी तरह से बाहर रहने के सख्त निर्णय ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना को रणनीतिक तौर पर कमजोर कर दिया और अब पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर बनी चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की स्थिति भी खराब होने लगी। ऐसे में चीन ने पाकिस्तान सहित नेपाल और श्रीलंका जैसे उन देशों पर नजर दौड़ाई जहां घरेलू राजनीतिक अस्थिरता से निपटने के लिए उन देशों का नेतृत्व चीन की शर्तों पर तैयार हो जाए। चीन को पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल तीनों ही आसान शिकार लगे। इन तीनों देशों को तेजी से विकास का सपना दिखाकर वहां की परियोजनाओं के जरिये चीन देश में घुस गया।
बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भी एक ऐसी परियोजना है, जिसका कोई लाभ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को नहीं मिलने वाला है। ऐसे ही श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह की चर्चा अक्सर होती है, लेकिन बंदरगाह से करीब 18 किलोमीटर दूर मट्टाला राजपक्षा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की चर्चा कम ही होती है। बंदरगाह और हवाई अड्डा दोनों चीन ने ही तैयार किया। चीन हंबनटोटा बंदरगाह का मालिक है और मट्टाला राजपक्षा हवाई अड्डे का उपयोग केवल उसी बंदरगाह तक पहुंचने के लिए किया जाता है। राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षा के कार्यकाल में चीन ने बंदरगाह और हवाई अड्डा बनाने के लिए चाइनीज एक्जिम बैंक से महंगा कर्ज दिया। कहने के लिए चीन का श्रीलंका पर कर्ज का हिस्सा कुल विदेशी कर्ज का दस प्रतिशत से कम ही रहा, लेकिन हंबनटोटा पर मालिकाना हक चीन का है और मट्टाला हवाई अड्डा दुनिया के सबसे कम उपयोग में आने वाले हवाई अड्डों में शामिल है। इसी से समझा जा सकता है कि चीन के कर्ज का दुष्चक्र कैसे कमजोर आर्थिक स्थिति वाले देशों को फंसाता है। चीन ने श्रीलंका को कुल 4.8 अरब डालर का कर्ज दिया, उसमें से केवल एक अरब डालर का कर्ज रियायती दो प्रतिशत ब्याज दर पर मिला है, शेष कर्ज पर ब्याज की दर अधिक है।
[वरिष्ठ पत्रकार]
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