सम्पादकीय

यूक्रेन मामले में भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे कई देश, दिल्ली में विदेशी मेहमानों का तांता

Gulabi Jagat
1 April 2022 1:43 PM GMT
यूक्रेन मामले में भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे कई देश, दिल्ली में विदेशी मेहमानों का तांता
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दिल्ली में विदेशी मेहमानों का तांता
यह न केवल उल्लेखनीय है, बल्कि भारत की बढ़ती महत्ता का परिचायक भी कि पिछले कुछ दिनों से नई दिल्ली में विदेशी मेहमानों का तांता लगा हुआ है। बीते दस दिनों से शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो, जब कोई विदेशी राजनयिक भारत न आया हो। इनमें जापान के प्रधानमंत्री से लेकर आस्ट्रेलिया, ग्रीस, ओमान, ब्रिटेन, चीन, मेक्सिको के विदेश मंत्री एवं जर्मनी, यूरोपीय संघ के विशेष प्रतिनिधि और अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक शामिल हैं। इन सबके बीच भारतीय प्रधानमंत्री की आस्ट्रेलियाई पीएम से वर्चुअल बात भी हुई है। रूस के विदेश मंत्री के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री भी भारत आने वाले हैं। इजरायली प्रधानमंत्री को भी भारत आना था, लेकिन उनके कोरोना से ग्रस्त हो जाने के कारण उनकी यात्र टल गई। इस दौरान जहां भारतीय विदेश मंत्री मालदीव और श्रीलंका गए, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने बिम्सटेक देशों के शिखर सम्मेलन को संबोधित किया। यह वह क्षेत्रीय सहयोग संगठन है, जिसके माध्यम से उस कमी को पूरा किया जा रहा है, जो दक्षेस के निष्प्रभावी होने के कारण देखने को मिल रही थी।
भारत एक उभरती हुई शक्ति
यह भी ध्यान रहे कि यूक्रेन संकट के दौरान ही भारत की सदस्यता वाले क्वाड देशों के शासनाध्यक्षों में भी संवाद हो चुका है। इसके पहले ऐसे किसी कालखंड का स्मरण करना कठिन है, जब भारत विश्व के प्रमुख देशों के केंद्र में इस तरह आया हो। यह स्थिति इसीलिए बनी, क्योंकि आज हर देश यह समझ रहा है कि भारत एक उभरती हुई शक्ति है और उससे सहयोग-संपर्क आवश्यक है। भारत की इस अंतरराष्ट्रीय अहमियत के पीछे भारतीय प्रधानमंत्री की वह कूटनीतिक सक्रियता है, जो उन्होंने बीते सात-आठ वर्षों में और यहां तक कि कोरोना काल में भी दिखाई।
यूक्रेन मामले में भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश
यह सहज ही समझा जा सकता है कि भारत केंद्रित कूटनीतिक सक्रियता का एक बड़ा कारण यूक्रेन संकट है। इस संकट का समाधान चाहे जिस रूप में हो, यह तय है कि विश्व व्यवस्था में बदलाव होने जा रहा है और उसमें भारत की एक बड़ी भूमिका होने वाली है। इसी कारण जहां कई पश्चिमी देश यूक्रेन मामले में भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं कुछ नई दिल्ली से यह जानना चाह रहे हैं कि रूस पर लगाए जा प्रतिबंधों के असर का सामना कैसे किया जाए?
भारत अपनी नीति पर रहे कायम
यूक्रेन संकट को लेकर भारत ने जिस तरह किसी भी पक्ष में खड़े होने के बजाय अपने हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की अपनी नीति को रेखांकित किया है, उस पर उसे न केवल कायम रहना चाहिए, बल्कि इसके लिए भी सक्रिय होना चाहिए कि रूस और यूक्रेन के बीच कोई समझौता कैसे हो?
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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