सम्पादकीय

मनुष्य का सामर्थ्य

Gulabi Jagat
8 Jun 2022 5:01 AM GMT
मनुष्य का सामर्थ्य
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बहुत से लोग किसी भी काम को करने के पहले खोज करते हैं कि समय तो ठीक है न
बहुत से लोग किसी भी काम को करने के पहले खोज करते हैं कि समय तो ठीक है न. वे पंचांग देखकर निश्चय करते हैं कि यह अच्छा समय है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि यदि पंचांग, शुभ समय देखकर सब काम किया जाता, तो कोई बड़ी घटना नहीं घटती. वे लोग ठीक शुभ समय चुनकर काम करते.
जैसे कोई चिकित्सक एक उपाय के हिसाब से रोगी को कुछ कहते हैं, यह अलग बात है. यदि वे इस बात को इस ढंग से कहें कि यह तो कोई रोग ही नहीं है, इसको मैं ठीक कर दूंगा. इस प्रकार उनका यह कहना ठीक नहीं होगा. यदि ठीक होता, तो लोग कभी भी नहीं मरते. अजर-अमर होकर चिरकाल तक पृथ्वी पर जीवित रहते. मनुष्य का सामर्थ्य बहुत ही सीमित है, तब भी इस सीमित परिवेश के भीतर जो जितना जानता है, उसको लेकर कह सकता है कि मैं अपनी अल्प बुद्धि से जितना जानता हूं, समझता हूं, तदनुसार काम करता हूं, कोई गारंटी देने लायक मेरी विद्या-बुद्धि नहीं है.
यही है स्पष्ट स्वीकारोक्ति. मैं पहले ही कह चुका हूं कि जागतिक ज्ञान जिस प्रकार का भी हो या जितना भी अधिक हो, किसी को इसका पूर्ण ज्ञान नहीं रहता, रह नहीं सकता. खंड विद्या और खंड मन के द्वारा जो आह्वान किया जाता है, वह भी चिरकाल तक नहीं रहता. ज्ञान तो एक ही है और वह है ईश्वर विषयक ज्ञान. ईश्वर को जानने का जो प्रयास है, वही सही ज्ञान है.
बाकी ज्ञान, ज्ञान नहीं है. कारण, वह आज है, कल नहीं रहेगा और जितना रह जायेगा, वह भी पूर्ण नहीं है. जागतिक ज्ञान के बारे में दो बातें याद रखनी होगी. एक बात हुई, जो ज्ञान है वह पूर्ण नहीं, अत्यंत अपूर्ण रहता है. और दूसरा यह कि इस अपूर्ण ज्ञान को भी कोई चिरकाल तक रख नहीं सकता. पत्रिका में क्या लिखा है, उसे लेकर माथापच्ची करने की कोई आवश्यकता नहीं और न किसी से परामर्श लेने की आवश्यकता है. 'शुभस्य शीघ्रम.' दूसरा है- 'अशुभस्य कालहरणम्.' यदि कोई अशुभ काम, खराब काम करने की इच्छा मन में उठे, तो देरी करते जाओ, कालहरण करो. समय को कट जाने दो, विलंब करो.


प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat

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