सम्पादकीय

मन माने की पीर

Subhi
17 Jun 2022 4:52 AM GMT
मन माने की पीर
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जीवन बहती नदी की तरह होता है। जीवन में उतार-चढ़ाव यकायक वैसे ही आते हैं जैसे प्रकृति में जलजले, आंधी-तूफान, सूखा-बाढ़, सर्दी-गर्मी-बरसात। मनुष्य को नहीं पता होता कि भविष्य में क्या घटने वाला है। फिर भी वह मन का गुलाम होकर एक पैर पर जीवन भर नृत्य करता-सा लगता है।

रमेश चंद मीणा; जीवन बहती नदी की तरह होता है। जीवन में उतार-चढ़ाव यकायक वैसे ही आते हैं जैसे प्रकृति में जलजले, आंधी-तूफान, सूखा-बाढ़, सर्दी-गर्मी-बरसात। मनुष्य को नहीं पता होता कि भविष्य में क्या घटने वाला है। फिर भी वह मन का गुलाम होकर एक पैर पर जीवन भर नृत्य करता-सा लगता है। जीवन क्या है? इस विषय पर हर दौर में चिंतन होता रहा है।

फिर भी मनुष्य अपनी ही तरह से जीता है, उठता, गिरता और जीवन भर गिर-गिर कर उठता रहता है। कह सकते हैं कि मनुष्य जिंदगी भर सीखता हुआ जीवन को सुखी, आनंदमय बनाने के लिए प्रयत्न करता रहता है। पर, क्या वह ऐसा कर पाता है? यह सवाल हर आदमी के सामने होता है और हर कोई अपनी ही तरह से उलझता, सुलझता रहता है। हकीकत में कुछ ही होते हैं जो सही मायने में सार्थक जीवन गुजार पाते हैं। मन का गुलाम होकर पहेली को सुलझाने में ही मनुष्य जीवन बिता देता है।

दरअसल, मनुष्य शब्द में ही मन निहित है। मन नितांत चंचल है। मनुष्य का दुश्मन कहीं बाहर नहीं, अपने अंदर ही हुआ करता है। बाहरी दुश्मन जो दिखाई देते हैं, उनसे लड़ कर जीता भी जा सकता है और हमें लगता है कि हम जीत गए हैं, पर पल-पल मन हमें नचाता है और हम जीवन भर नाचते रहते हैं, एक गुलाम की तरह। वे जो हमें विजेता की तरह नजर आते हैं, वे भी गुलाम ही ठहरते हैं, अपने मन के या पूर्वाग्रहों के।

हर आदमी के अपने पूर्वाग्रह हैं। ये पूर्वाग्रह आंखों पर पट्टी की तरह हैं। ये पूर्वाग्रह दूसरों को तो स्पष्ट दिखाई दे जाते हैं, पर स्वयं को नहीं। हर आदमी पूर्वाग्रहों के कारण अपने को सही और दूसरों को गलत कहता है। हम कथित शिक्षा हासिल करने के बावजूद पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं हो पाते हैं। ऐसे लोग, जो पूर्वाग्रहों में जकड़े होते हैं, वे दिन के उजाले में भी अंधेरे में रहने के आदी हैं।

पूर्वाग्रहों से मुक्त होने के लिए भी मन से लड़ना पड़ता है। आज हम अपने चारों तरफ जितनी भी अशांति देख रहे हैं उसके पीछे हमारे पूर्वाग्रह ही हैं। पूर्वाग्रह की शुरुआत मन की चंचलता से होती है, फिर वह एक दिन आदत बन जाती है। वही आदत अंतत: पूर्वाग्रहों में तब्दील हो जाती है। ऐसे लोग बड़े होकर भी बच्चों की तरह व्यवहार करते देखे जा सकते हैं। हर समय अपने आप को सही और सामने वाले को गलत सिद्ध करते देखे जाते हैं। इसे कहते हैं आंखों पर पट्टी बांध लेना। ऐसे आंखों पर पट्टी बांधे लोग आपके मुहल्ले में भी हो सकते हैं और किसी देश के शासक भी। जैसे पुतिन द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के पीछे राजनीतिक पूर्वाग्रह ही रहे हैं। ऐसे व्यक्ति द्वारा रास्ता चलते, सड़क पर खड़े रहते हुए, आप पर कभी भी हमले हो सकते हैं।

हमलावर मन का गुलाम और पूर्वाग्रहों का शिकार है। ऐसे गुलाम को अगर बाहरी ताकत मिल जाए, मसलन राजनीतिक या धन की या शारीरिक, तब वह बिना अधिक सोचे दूसरों पर बढ़-चढ़ कर हमले करता है। ऐसा गुलाम खुद को विजेता कहता है, पर दूसरों के लिए वह हर हाल में तानाशाह ही कहलाएगा। पुतिन अपने आप को जो भी समझें, पर बाकी देश तो उन्हें तानाशाह ही कहेंगे और इतिहास में भी इसी रूप में दर्ज किया जाएगा। तानाशाहों के चलते हजारों-लाखों बेकसूर मारे जाते हैं।

ऐसे अन्याय, शोषण और अत्याचार होते हुए जैसे देश के स्तर पर हम देखते हैं, वैसे ही व्यक्तिगत स्तर पर भी होता हुआ पाते हंै। हमारे जीवन में तानाशाहों की कमी नहीं। वे पग-पग पर मिल जाते हैं। अपने मन की आप पर थोपने का प्रयास करते देखे जाते हैं। वे जो चाहते हैं, वही आपसे कराना चाहते हैं, वही आपको करते देखना चाहते हैं। हर काम की उनके मन में एक धारणा है। ऐसे मन के गुलामों, पूर्वाग्रहों के शिकार व्यक्तियों से बहुत सारे लोगों को अपमान झेलना पड़ता है।

मगर जिसने मन की गुलामी त्याग दी, वही सच्चे अर्थों में जीवन को जी पाता है। जीवन सुख-दुख के बीच तभी धारा की तरह बह सकता है जब आप अपने तर्इं इस जीवन दर्शन को समझ पाते हैं कि दुख, चाहे शारीरिक हो या मानसिक, घरेलू हो या पड़ोसियों द्वारा या किसी अनजान से मिला, वह अगर पहाड़ की तरह टूट ही पड़ा है तो स्थितियों को समझ कर समझदारी, गंभीरता और सहनशक्ति का परिचय देना होगा। इसे ही जीवनानुभव कहा जाता है। जीवन ऐसी पाठशाला है, जिसमें मन को बस में रख कर और पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर ही नदी की धारा की तरह बहता हुआ महसूस किया जा सकता है।


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