सम्पादकीय

मनीष तिवारी का 'किताबी बम' कांग्रेस को घेरने की तिकड़ी सांठगांठ तो नहीं?

Gulabi
25 Nov 2021 4:04 PM GMT
मनीष तिवारी का किताबी बम कांग्रेस को घेरने की तिकड़ी सांठगांठ तो नहीं?
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राष्ट्रीय सुरक्षा एक ऐसा मसला होता है जिसपर राजनीतिक बहस का कोई ओर-छोर नहीं होता है
प्रवीण कुमार। राष्ट्रीय सुरक्षा एक ऐसा मसला होता है जिसपर राजनीतिक बहस का कोई ओर-छोर नहीं होता है. एक पार्टी जो सत्ता में होती है और दूसरी पार्टी जो विपक्ष में होती है, दोनों अपने-अपने तरीके से राष्ट्रहित और पार्टी हित को ध्यान में रखकर इसकी व्याख्या करती हैं. लेकिन तंबूपरस्त मीडिया के रूप में आजकल एक तीसरी पार्टी भी खड़ी हो गई है, जिसे न तो मीडिया की नैतिक जिम्मेदारी का ख्याल रहता है और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी का अहसास. जिस तंबू के नीचे खुद को वो सुरक्षित महसूस करती है उसी के हिसाब से गेम को सेट करने में जुट जाती है. हम बात कर रहे हैं कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद मनीष तिवारी की नई किताब को लेकर मचे घमासान की.
किताब (10 flashpoints: 20 years – National Security Situations That Impacted India) का लोकार्पण आगामी एक दिसंबर को होना है. लेकिन इससे पहले ही किताब के कुछ अंश को लीक कर पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार को इस तरह से कठघरे में खड़ा किया जा रहा है जैसे मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा को ताख पर रखकर देश के साथ कोई गद्दारी कर दी हो. इस किताब को लेकर अब तक जो बातें सामने आई हैं और खुद मनीष तिवारी ने भी ट्विटर पर एक संक्षिप्त लेख में जिन मुद्दों को साझा किया है उसे समझना बेहद जरूरी है. समझना इस बात को भी जरूरी है कि मनीष तिवारी ने किताब के लोकार्पण की टाइमिंग का यही वक्त क्यों चुना? मनमोहन सिंह को कठघरे में खड़ा करना कितना उचित है? और कांग्रेस को घेरने की तिकड़ी सांठगांठ का नतीजा तो नहीं है यह 'किताब बम'?
मनीष तिवारी के ट्वीटर लेख की तीन बातें
सबसे पहले बात करते हैं मनीष तिवारी के ट्वीटर लेख की. 21वीं सदी की चुनौतियों के मद्देनजर भारत के नेशनल सिक्योरिटी डॉक्ट्रिन को किस तरह से मजबूत किया जा सकता है, इस मकसद से कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने 304 पन्नों की जो किताब लिखी है उसमें से कुछ अंश को एक छोटे से लेख के साथ ट्वीट किया है. 23 नवंबर 2021 को अंग्रेजी में ट्वीट किए गए लेख की पहली टिप्पणी में मनीष तिवारी लिखते हैं- सोवियत संघ के बाद अमेरिका की हार ने सभी तरह के उग्रवादियों और आतंकवादियों का मनोबल बढ़ा दिया है. इनमें इस्लामिक स्टेट, अलकायदा, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे संगठनों का नाम शामिल है. इसका परिणाम हमें जम्मू कश्मीर और पंजाब में देखने को मिल सकता है.
दूसरी टिप्पणी में मनीष तिवारी लिखते हैं- जुलाई 2018 में मोदी सरकार ने चीन को ध्यान में रखते हुए बनाई जा रही माउंटेन स्ट्राइक कोर के गठन को स्थगित कर दिया. इसके पीछे मोदी सरकार ने आर्थिक तंगी का हवाला दिया. अगर माउंटेन स्ट्राइक कोर का गठन हो जाता और वो तैनात होती तो 2017 के डोकलाम विवाद समेत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पेश आ रही दूसरी अन्य चुनौतियों से बचा जा सकता था. माउंटेन स्ट्राइक कोर नहीं बनाकर मोदी सरकार ने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. ट्विटर पर साझा अपनी तीसरी टिप्पणी में मनीष तिवारी लिखते हैं- एक ऐसा देश जो सैकड़ों बेगुनाहों को मौत के घाट उतारने में ज़रा भी संकोच न करता हो, उसे लेकर संयम दिखाना ताकत की नहीं, कमज़ोरी की निशानी समझी जाती है. कभी-कभी हमें शब्दों में नहीं, अपने काम से संदेश देने की ज़रूरत होती है. 26/11 हमलों के बाद ये कर दिया जाना चाहिए था. मुझे लगता है कि भारत को अपने 9/11 के बाद एक 'काइनेटिक रिस्पॉन्स' देना चाहिए था.
कांग्रेस को घेरने की तिकड़ी सांठगांठ तो नहीं?
ट्वीटर लेख में मनीष तिवारी ने जो तीन टिप्पणियां की हैं, सपाट तरीके से कहा जाए तो ये मनमोहन सिंह की आड़ लेकर कांग्रेस पार्टी को और कमजोर करने की तंबूपरस्त मीडिया, सत्ताधारी पार्टी भाजपा और किताब के लेखक मनीष तिवारी की तिकड़ी सांठगांठ लगती है. वो इसलिए क्योंकि पहली बात, मनीष तिवारी ने अपनी तीसरी टिप्पणी में 26-11 हमलों का जिक्र क्यों किया? अगर आप पार्टी लाइन से ऊपर उठकर निष्पक्ष लेखक के तौर पर खुद को पेश करना चाहते हैं तो आपको 26/11 हमलों के साथ 13 दिसंबर 2001 की उस घटना का भी जिक्र करना चाहिए था जब लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद पर आतंकी हमला हुआ था. ऐसा न करके मनीष तिवारी ने एक लेखक के तौर पर खुद की नीयत पर सवाल खड़ा किया है.
दूसरी बात, मनीष तिवारी ने अपने ट्वीटर लेख में दो और टिप्पणियां की हैं उसमें से माउंटेन स्ट्राइक कोर के गठन का मसला राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील मसला था. किताब के लेखक ने ट्वीटर टिप्पणी में इस बात का जिक्र भी किया है कि अगर माउंटेन स्ट्राइक कोर का गठन हो जाता और वो तैनात हो जाती तो 2017 के डोकलाम विवाद समेत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पेश आ रही दूसरी अन्य चुनौतियों से बचा जा सकता था. माउंटेन स्ट्राइक कोर नहीं बनाकर मोदी सरकार ने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. मीडिया ने इस बात को अंडरप्ले क्यों किया? 26/11 के मुकाबले ये ज्यादा गंभीर मुद्दा था.
इस मसले को लेकर मीडिया अगर दबाव बनाए तो शायद आने वाले वक्त में माउंटेन स्ट्राइक कोर के गठन को लेकर बात बन जाए. रही बात सत्ताधारी पार्टी भाजपा की तो मनीष तिवारी और तंबूपरस्त मीडिया ने 'बिन मांगे मोती मिले' की तर्ज पर कांग्रेस के खिलाफ एक बड़ा हथियार थमा दिया है. हालांकि मनीष तिवारी ने एक अन्य ट्वीट में ये भी लिखा है कि 304 पन्नों की किताब में से एक टिप्पणी पर भाजपा की प्रतिक्रिया ने उन्हें हैरान किया है. ये देखने वाली बात होगी कि क्या वो इसी तरह की प्रतिक्रिया किताब की उन बातों पर भी देंगे जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर उनके कामों का मूल्यांकन किया गया है. लेकिन सवाल यही उठता है कि आपने भाजपा और तंबूपरस्त मीडिया को ये मौका दिया ही क्यों?
मनमोहन सिंह को कठघरे में खड़ा करना कितना उचित?
मनीष तिवारी ने अपनी टिप्पणी में 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमलों को भारत का 9/11 बताते हैं. उनका कहना है कि जिस तरह 9 सितंबर 2001 के हमलों के बाद अमरीका ने अपने गुनहगारों के खिलाफ एक युद्ध छेड़ दिया था, वैसा ही कदम भारत को भी उठाना चाहिए था. काइनेटिक रिस्पॉन्स के क्या मायने हैं यह बात हम मनीष तिवारी पर छोड़ते हैं लेकिन जिस वक्त की बात तिवारी कर रहे है, वो भी तो एक जिम्मेदार मंत्री के तौर पर तत्कालीन मनमोहन सरकार में शामिल थे. अपने ही पीएम को कठघरे में खड़ा कर खुद को पाक साफ कैसे साबित कर सकते हैं. मनीष तिवारी से पहले भी 26/11 के मुद्दे को लेकर तत्कालीन वायुसेना चीफ एयर मार्शल फली मेजर ने 2017 में इस बात का खुलासा किया था कि पाकिस्तान पर हमले के लिए किस स्तर की तैयारियां थीं और किस तरह मनमोहन सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी थी.
असल में जब आप 26/11 की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान पर जवाबी हमले की बात करते हैं तो इसका मतलब साफ है आप कूटनीति और युद्ध नीति में फर्क नहीं कर पा रहे हैं या अंतर को समझ नहीं रहे हैं. एक प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है. जल्दबाजी में युद्ध जैसा फैसला नहीं लिया जाता. अगर इस तरह से प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराया जाने लगे तो फिर 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले के लिए भी तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.
बहरहाल, मनीष तिवारी हों या सलमान खुर्शीद, कांग्रेस में हमेशा से इस तरह के लोग अपनी व्याकुलता को 'किताब बम' के तौर पर फोड़ते रहे हैं. मनीष तिवारी, सलमान खुर्शीद, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल समेत कई बड़े नेता जी-23 के सदस्य के तौर पर कांग्रेस में चिह्नित हो चुके हैं. प्रेशर पॉलिटिक्स के तहत ये नेता अपने आलाकमान पर समय-समय पर खासतौर पर चुनाव के वक्त इस तरह के नुस्खे आजमाते हैं. उत्तर प्रदेश और पंजाब में अगले साल चुनाव होने हैं. इन चुनावों में अपनी जगह बनाने के लिए पहले सलमान खुर्शीद और अब मनीष तिवारी ने कांग्रेस पर 'किताब बम' फोड़ने की कोशिश की है.
सका कितना लाभ इन्हें हासिल होगा ये तो वक्त तय करेगा, लेकिन इतना तय है कि बदलते भारत और बदल रही कांग्रेस में मनीष तिवारी जैसे नेता अपनी साख गिराने के साथ-साथ राजनीति की मर्यादा को भी तार-तार कर रहे हैं. इस बात से कोई इंकार नहीं कि किताब लिखना और सच लिखना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन इस सच से भी इंकार नहीं कि आपकी डोर एक राजनीतिक दल से जुड़ी है. उसके भी अपने कायदे-कानून हैं, उसकी भी अपनी एक मर्यादा है. उसको आप चौराहे पर कैसे खड़ा सकते हैं.
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