सम्पादकीय

हिमाचल से सीख ले मणिपुर

Rani Sahu
2 Aug 2023 6:54 PM GMT
हिमाचल से सीख ले मणिपुर
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व्यक्तिगत हितों के प्रति संवेदनशील होना एक सामान्य मानवीय सोच है और व्यक्तिगत हितों की पूर्ति के लिए अपने समुदाय को आगे लाकर संख्या बल के प्रदर्शन द्वारा अपनी बात को सरकारों से मनवाना लोकतांत्रिक व्यवस्था की खूबसूरती है। लोकतंत्र में संख्या बल को बहुत महत्व मिलता है और हमारे भारत देश में जहां हर चार-पांच महीनों के बाद राजनीतिक दलों की चुनावी परीक्षा किसी न किसी प्रकार के चुनाव के द्वारा होती है, वहां पर विभिन्न समुदाय दबाव बनाकर अपनी मांगों को मनवाने में काफी हद तक कामयाबी भी हासिल कर लेते हैं। भारत में समुदाय के विभाजन के लिए विभिन्न जातियों, उपजातियों और अल्पसंख्यक जैसे शब्दों का प्रयोग होता आया है और इस आधार पर जब भी कोई समुदाय एकत्रित होता है तो बात आरक्षण की मांग पर आकर ही समाप्त होती है।
आजकल आरक्षण की नींव पर ही किसी भी समुदाय के सुनहरी भविष्य की परिकल्पना की जाने लगी है क्योंकि समुदाय विशेष को आरक्षण से मिलने वाले लाभ से ही व्यक्तिगत हितों की पूर्ति भी हो जाती है। वर्तमान में भारत के विभिन्न राज्यों में आरक्षण को लेकर कई तरह की मांगें प्रदेश और केंद्रीय सरकारों के समक्ष रखी जा रही हैं। इनमें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में निषाद और उत्तर भारत के बहुत से राज्यों में जाट लोग आरक्षण को लेकर आंदोलनरत हैं। हिमाचल प्रदेश में भी आरक्षण के लिए पिछले लगभग साठ वर्षों से संघर्षरत हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने संबंधी निर्णय केंद्रीय कैबिनेट के द्वारा नवंबर 2022 में ले लिया गया था तथा अब इस आरक्षण से संबंधित बिल को 26 जुलाई 2023 को राज्यसभा में भी पारित कर दिया गया। इससे हिमाचल प्रदेश की लगभग दो लाख की आबादी को सीधे तौर पर लाभ पहुंचेगा। हिमाचल का हाटी समुदाय भी अब अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आ जाएगा जिससे इस समुदाय को अब अन्य जनजातियों की तरह रोजगार तथा अन्य क्षेत्रों में मिलने वाले लाभ मिलने शुरू हो जाएंगे। आरक्षण के संदर्भ में यह एक बड़ा निर्णय है जिसका प्रभाव आने वाले समय में प्रदेश के अन्य समुदायों के लोगों पर भी पडऩा निश्चित है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में इस निर्णय का हर तरफ से स्वागत किया गया है और प्रदेश में छिटपुट विरोध को छोडक़र कहीं से किसी भी प्रकार के विरोध के बड़े स्वर सुनने को नहीं मिले हैं।
यह बात हमारे प्रदेश के निवासियों की एक विकसित और उदार सोच का जीता जागता उदाहरण है। इसके विपरीत हिमाचल प्रदेश से आधी आबादी वाले मणिपुर में आरक्षण के मुद्दे पर लगी हुई आग में पूरा प्रदेश बुरी तरह से जलता नजर आ रहा है। भारत का पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर आजकल दहशत और भयानक हिंसा के दौर से गुजर रहा है। मणिपुर में इस डर और हिंसा का दौर उस समय शुरू हुआ जब मणिपुर के उच्च न्यायालय द्वारा मई महीने में मेहतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के संबंध में राज्य सरकार को ये आदेश दिया गया कि इस संबंध में एक प्रस्ताव तैयार करके केंद्रीय सरकार के अनुसूचित जनजाति के मामलों के मंत्रालय को भेजा जाए। अदालत के इस निर्णय से नाराज वहां के पहले से अनुसूचित जनजाति में शामिल नागा तथा कुकी समुदाय के लोगों ने रैलियां निकालकर इस निर्णय का विरोध करना शुरू कर दिया। कुकी और नागा समुदाय मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं और प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा उनके अधिकार क्षेत्र में आता है, जबकि इनकी आबादी प्रदेश की कुल आबादी की लगभग 30 से 35 प्रतिशत ही है। जबकि मेहतई समाज के लोग मणिपुर की राजधानी इम्फाल के आसपास फैली घाटी के निवासी हैं और प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही इनके पास है, जबकि इस समुदाय की आबादी प्रदेश की कुल आबादी के लगभग 65 प्रतिशत है।
किसी भी एक समुदाय की इतनी बड़ी आबादी सरकार बनाने में एकतरफा निर्णय सुनाने के लिए सक्षम होती है, इसलिए इस मुद्दे पर वोट बैंक की राजनीति का आड़े आना भी लाजिमी है। यह सत्य है कि जमीन पर अधिकार के मामले में मेहतई समाज भले ही कमजोर हो, लेकिन मणिपुर की विधानसभा की कुल 60 सीटों में से चालीस सीटों पर मेहतई समुदाय के प्रतिनिधि ही चुन कर जाते हैं। मेहतई समुदाय शहरी इलाकों में फैला हुआ है तथा इस समुदाय के लोग पहाड़ी क्षेत्रों में जाकर जमीन नहीं खरीद सकते, क्योंकि उस जमीन पर नागा और कुकी समुदाय के लोगों का अधिकार है जो कि अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आते हैं। इसलिए इस प्रदेश की एक बड़ी आबादी जमीन के एक छोटे हिस्से पर रहने को मजबूर है। अपनी इस प्रकार की समस्याओं के निपटारे के लिए ही इस समुदाय ने आरक्षण को हथियार बनाकर एक दशक पहले अपने हक की लड़ाई को आगे बढ़ाना शुरू किया था। मणिपुर में यदि मेहताई समुदाय को आरक्षण दे दिया जाता है तो इस प्रदेश की लगभग सारी आबादी अनुसूचित जनजाति में शामिल हो जाएगी जोकि प्रदेश को एक अजीब परिस्थिति की ओर ले जाएगा। मणिपुर में आरक्षण के मुद्दे पर शुरू हुई यह लड़ाई अब अपना रूप बदल चुकी है और आरक्षण की लड़ाई अब धार्मिक कट्टरता और क्षेत्रवाद का रूप ले चुकी है। इसी कारण वहां पर हैवानियत की सारी हदों को पार करके महिलाओं को भी हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है। अब तक मणिपुर की हिंसा 150 लोगों को निगल चुकी है और इससे पहले कि यह आग देश के अन्य राज्यों में फैले, मणिपुर के निवासियों को हिमाचल प्रदेश से सीख लेकर इस हिंसा पर विराम लगाना चाहिए।
राकेश शर्मा
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu

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