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सम्पादकीय
Mandir Vs Masjid Controversy : परंपरागत रूप से बीजेपी को मंदिर बनाम मस्जिद विवाद से फायदा हुआ है
Gulabi Jagat
21 May 2022 8:01 AM GMT

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भारतीय जनता पार्टी आज जो है उसके लिए पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को श्रेय देना बिलकुल सही है
अजय झा |
भारतीय जनता पार्टी (BJP) आज जो है उसके लिए पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) को श्रेय देना बिलकुल सही है. उन्होंने एक-एक ईंट जोड़कर बीजेपी को खड़ा किया और इसके लिए बतौर सीमेंट धर्म का इस्तेमाल किया. आडवाणी ने अयोध्या रूपी पात्र का इस्तेमाल एक उन्मादी कॉकटेल बनाने के लिए किया, जिसने पूरी देश को इस तरह नशीला बना दिया, जैसा पहले कभी नहीं था. इसकी पहली जिम्मेदारी 1990 की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार को जाती है, जिसकी वजह से 1992 में विवादित बाबरी मस्जिद का विध्वंस (Demolition of Babri Masjid) हुआ था और एक जादूगर के साथ-साथ केमिस्ट की तरह बीजेपी ने धर्म और राजनीति का परफेक्ट मिश्रण तैयार किया और सत्ता के दरवाजे तक पहुंच गई.
हालांकि, अयोध्या (बाबरी मस्जिद), काशी (ज्ञानवापी मस्जिद), और मथुरा (ईदगाह मस्जिद) जैसे मुद्दे बीजेपी और उसके वैचारिक मुखिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एजेंडे में मौजूद हैं, लेकिन आडवाणी ने ऑन रिकॉर्ड कहा था कि यदि भव्य मंदिर निर्माण के लिए मुस्लिम स्वेच्छा से अयोध्या की भूमि को हिंदुओं को सौंप दें तो बीजेपी काशी और मथुरा के लिए मांग खड़ी नहीं करेगी. उन्होंने यह भी कहा था कि ये दोनों मुद्दे विश्व हिंदू परिषद(VHP) के एजेंडे में शामिल हैं, न कि बीजेपी के. उन्होंने ये बातें तब कहीं थीं जब बीजेपी सत्ता में थी और वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उप पूर्व प्रधानमंत्री थे.
बाबरी विध्वंस ने बीजेपी 1996 के चुनावों में भारी बढ़त दिलाई
मुस्लिम कभी भी विवादित अयोध्या भूमि पर स्वेच्छा से अपना दावा छोड़ने के लिए सहमत नहीं हुए. बीजेपी आसानी से आडवाणी और उनके वादों को भूल गई, अब उसको नारा लगाने के लिए आरएसएस और विहिप की भी आवश्यकता नहीं रह गई. एक भक्त की याचिका और न्यायपालिका के अनुकूल रुख के कारण बीजेपी का यह जादू अब खुद को दोहराने वाला है. हर बार जब धर्म की कड़ाही उबलने लगती है, तो बीजेपी को इससे मदद मिलती है और ये सब संयोग से नहीं हो सकता.
1984 के चुनावों में सिर्फ दो सांसदों की पार्टी से यह अयोध्या मुद्दे की बदौलत 85 सीटों तक पहुंच गई. असल में 1989 के चुनावों से ही यह खेल शुरू हो चुका था. आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा, जो उनकी गिरफ्तारी के बाद बिहार के समस्तीपुर में खत्म हुई, वीपी सिंह सरकार के पतन और एक नए चुनाव का कारण बनी. 1991 में बीजेपी की सीटों की संख्या बढ़कर 120 सीटों पर पहुंच गई, जिससे वह संसद में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई. फिर 1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस हुआ और बीजेपी 1996 के चुनावों में त्रिशंकु संसद में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन एक सोची-समझी रणनीति के तहत माइनॉरिटी गवर्नमेंट बनाने में सफल रही, जो केवल 13 दिनों तक चली.
फिर 1998 के चुनाव आए और बीजेपी 182 सीटें जीतकर अपने क्षेत्रीय सहयोगियों की मदद से सत्ता में आई. आडवाणी का जादू कम होने लगा और उसके बाद अयोध्या में यथास्थिति ने प्रो-हिंदू मतदाताओं को प्रेरित करना बंद कर दिया. हालांकि, बीजेपी को 2014 तक इंतजार करना पड़ा, जब उसके हिंदू पोस्टर ब्वॉय नरेंद्र मोदी, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री, आडवाणी के स्थान पर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बन गए. मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के बाद पोस्टर ब्वॉय होने का खिताब हासिल किया.
छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव जीतने में मदद मिलेगी
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने विवादित अयोध्या भूमि को एक हिंदू ट्रस्ट को सौंप दिया, राम मंदिर के निर्माण का मार्ग खोल दिया, जहां कभी विवादित बाबरी मस्जिद खड़ी थी. इस फैसले ने उत्तरप्रदेश में मतदाताओं के ध्रुवीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जब से अयोध्या में निर्माण गतिविधियां शुरू हुई, 2022 के विधानसभा चुनावों में प्रदेश ने किसानों के आंदोलन और महंगाई के मुद्दे को किनारे कर दिया.
यह महसूस करते हुए कि अयोध्या मुद्दा अब सुलझ गया है और यह भविष्य के राजनीतिक परिणामों को प्रभावित करने के लिए लोगों को उकसा नहीं सकेगा, अब ज्ञानपावी मस्जिद के रूप में एक नए मुद्दे की आवश्यकता थी, ताकि मतदाताओं को अपील किया जा सके. वाराणसी की निचली अदालत ने तहखाने की वीडियोग्राफी की अनुमति देने में और उस क्षेत्र, जहां "शिवलिंग" पाया गया, को सील करने का आदेश देने में कोई झिझक नहीं दिखाई. जिसे कोर्ट के फैसले के पहले की कड़ी के रूप में देखा जा सकता है.
बीजेपी तो यह चाहेगी ही कि ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा अगले डेढ़ साल तक हिंदुओं के पक्ष में झुकाव के साथ लटका रहे. मौजूदा विवाद से बीजेपी को मदद मिलेगी, क्योंकि साल के अंत में बीजेपी शासित दो राज्यों, हिमाचल प्रदेश और गुजरात, में चुनाव होने वाले हैं. त्रिपुरा, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना उन नौ राज्यों में शामिल हैं जो अगले साल अपनी नई विधानसभाओं का चुनाव करेंगे और बीजेपी को उम्मीद होगी कि बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से उसे छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव जीतने में मदद मिलेगी, जहां अभी विपक्ष का शासन है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

Gulabi Jagat
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