- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- लोक संस्कृति की...
हिमाचल भारत की सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए आधुनिकता के साथ समन्वय करते हुए नए कीर्तिमान रचने के मार्ग पर अग्रसर है। कहा जाता है कि भले ही इतिहास के सिक्के वर्तमान में नहीं चला करते, लेकिन वर्तमान को टिका रहने के लिए इतिहास की जड़ें मजबूत होना आवश्यक होता है। इन्हीं जड़ों को मजबूत व जोडे़ रखने का काम हिमाचल प्रदेश राज्य अपनी संस्कृति से करते हुए आगे बढ़ रहा है। हिमाचल प्रदेश में अनेक ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रम व संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले मेले-त्योहार आए दिन होते रहते हैं। इन्हीं त्योहारों में अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव मंडी का स्वयं में एक खास महत्त्व है। अंतरराष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि देश की सांस्कृतिक विरासत है जिसे सदियों से मंडी ने सहेज कर रखा है। एक सप्ताह तक छोटी काशी यानी कि मंडी भोलेनाथ की भक्ति में लीन हो जाती है। छोटी काशी में शिव के लगभग 81 मंदिर हैं। इन सभी मंदिरों में भोलेनाथ जी का शृंगार किया जाता है। सात दिन तक हर तरफ भोले जी की जयकार ही सुनाई देती है। पूरा मंडी शहर शिव व देवमय हो उठता है। ढोल-नगाड़ों की ध्वनि से मंडी में स्वरमयी शांति की अनुभूति होती है। कई शताब्दियों से देश की सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है यह अंतरराष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि महोत्सव। माना जाता है कि इसकी शुरुआत अजबर सेन ने सन् 1527 में मंडी शहर की स्थापना व शिवरात्रि पर्व मनाने के साथ की थी। उस समय यह शिवरात्रि पर्व दो दिन के उत्सव के रूप में मनाया जाता था जिसमें मंडी जनपद के देवता ही हिस्सा लेते थे। यह पर्व उस समय देव पराशर जी को समर्पित था।