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- पलायन करने वाले...
कोरोना वायरस के फैलते ही देशभर में हुए लॉकडाउन में राष्ट्र ने बहुत कुछ सहा और पीड़ा को झेला। रोजगार, घर या भोजन से महरूम शहरों में फंसे समूचे देश से प्रवासी मजदूर अपना थोड़ा-बहुत सामान लादे, भूख से बेहाल, थके-मांदे बच्चों के साथ पैदल या बसों में पशुओं की तरह ठूंस कर अपने गांवों को लौटने को मजबूर, जहां सोशल डिस्टेंसिंग की कोई गुंजाइश नहीं, उनके बुझे हुए चेहरे गवाह थे कि कोरोना ने उनकी जिन्दगी में कितनी उथल-पुथल मचा दी थी। अपने बच्चों और थोड़े-बहुत सामान के साथ चप्पल पहने सड़कों पर पैदल चलते लोगों के हुजूम का दृश्य दुनिया भर में देखा गया। सूटकेस पर सोये मासूम की फोटो तो दुनिया भर में वायरल हुई, इस सूटकेस को बच्चे की मां रस्सी से घसीट रही थी। ऐसे ही मार्मिक दृश्यों को देखकर हर किसी का दिल पसीजा। जब प्रवासी मजदूर अपने-अपने राज्यों की सीमाओं पर पहुंचे तो उन्हें रोक लिया गया। उनके प्रवेश को रोकने के लिए सीमायें सील कर दी गई और उन्हें शिविरों में रखा गया। अचानक घर, आमदनी, भोजन से वंचित हो गए मजदूर हताशा में पुलिस की बाधाओं को पार करते हुए अपने परिवारों के साथ अंधेरे में और दोपहर की गर्मी में लम्बी यात्रा पर निकल पड़े। कोविड महामारी का तूफान बहुत भयंकर था।