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- प्रबंधन की कसौटी

Written by जनसत्ता; पेट्रोल-डीजल की कीमतें विषम परिस्थितियों में कैसे नियंत्रित रहें, इसको लेकर कुछ वर्षों से माथापच्ची हो रही है। जाहिर-सी बात है, उन देशों की सरकारों पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमतों में बढ़ोतरी का दबाव बढ़ जाता है, जो इसके आयात पर निर्भर होते हैं। विवाद तब पैदा होता है, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत घटने पर घरेलू कीमतों में राहत नहीं मिलती है।
इसके लिए राज्य और केंद्र सरकारें एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने लगती हैं, क्योंकि दोनों सरकारों द्वारा क्रमश: मूल्य वर्धित कर तथा उत्पाद कर लगाए जाते हैं। ऐसे में कोरोना के बढ़ते मामलों को नियंत्रित करने हेतु बुलाई गई बैठक के समापन अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी राज्यों से वैट में कटौती की अपील की। बकायदा कर्नाटक और गुजरात सरकार के राजस्व नुकसान का उदाहरण उनके सामने रखा।
इतना ही नहीं, उन्होंने विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सहकारी संघवाद की राह पर चलने की नसीहत भी दे डाली। साथ ही, यह भी उत्पाद कर का बयालीस फीसद राजस्व राज्यों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं।
सवाल उठता है कि हम वस्तु एवं सेवा कर के दौर में क्यों जी रहे हैं? इसमें ऐसे प्रावधान किए जाएं कि मौजूदा समय में उत्पाद कर और वैट से जिन सरकारों को जितना फायदा हो रहा है वह होता रहे और मुसीबत की घड़ी में इनकी कीमतों को लेकर लचीला रुख भी अपनाया जा सके, ताकि मध्यवर्गीय जनता और बाजार पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े और न ही गरीब कल्याणकारी योजनाओं के लिए जुटाए जाने वाले धन में कमी आए। असली वित्तीय प्रबंधन संकट काल में ही देखा जाता है।