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जयंत घोषाल,
पश्चिम बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी के बाद सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का नेतृत्व बुरी तरह घिर गया है। इसके पहले भी तृणमूल के कुछ नेता जेल गए हैं, विभिन्न घोटालों में उनके नाम सामने आए, लेकिन पिछले दस साल में ममता बनर्जी के सामने शायद ही इस बार जैसा संकट सामने आया। इस बार सुर्खियों में न सिर्फ एक वरिष्ठ मंत्री हैं, बल्कि एक अभिनेत्री के साथ उनके रिश्ते को लेकर भी चर्चा गरम है। इस प्रकरण ने पार्टी के अंदर खलबली मचा दी है। आम जनता में इसका नकारात्मक संदेश गया है, खासकर 20 करोड़ रुपये से अधिक की बरामदगी ने लोगों को सोचने पर मजबूर किया है। ऐसे में, पार्थ चटर्जी को पार्टी से बाहर करना ममता बनर्जी के लिए मजबूरी बन गया है, और संभवत: वह इसी दिशा में आगे बढ़ रही हैं, मगर इस काम में वह इतना अधिक समय क्यों ले रही हैं? क्या दुविधा है उनकी?
ममता की दुविधा का सबसे बड़ा कारण यह है कि पार्थ कोई आम राजनेता नहीं हैं। वह सरकार में नंबर दो की हैसियत रखते थे और तीन-तीन अहम मंत्रालय उनके जिम्मे था। तृणमूल के संस्थापक सदस्यों में भी वह एक हैं। वह पार्टी की अनुशासनात्मक कमेटी के भी अध्यक्ष रहे हैं। ऐसे वरिष्ठ और महत्वपूर्ण नेता को पार्टी से निकालने का क्या असर होगा, इस पर संभवत: दीदी मंथन कर रही होंगी। हालांकि, इस बीच पार्टी के मुखपत्र जागो बांग्ला के संपादक पद से पार्थ को हटा दिया गया है। मंगलवार को कैबिनेट मंत्री की उनकी गाड़ी भी ले ली गई। जाहिर है, धीरे-धीरे उनसे हर चीज छीनी जा रही है।
इस पूरे घटनाक्रम से तृणमूल की छवि को धक्का लगा है, लेकिन ममता वकीलों से भी राय ले रही हैं। उनकी यह भी एक सोच होगी कि क्या पार्थ के निष्कासन से भाजपा शांत हो जाएगी? शायद ऐसा न हो। अगर पार्थ से इस्तीफा लिया जाता है, तो मुमकिन है कि भाजपा उत्साहित होकर ममता के इस्तीफे की मांग करे। संसद में हमने देखा है, खासकर कांग्रेस के जमाने में, किस तरह भ्रष्टाचार के मसले पर प्रधानमंत्री तक के इस्तीफे की मांग हुई। बोफोर्स मामले में जब तत्कालीन विदेश मंत्री माधव सिंह सोलंकी का इस्तीफा लिया गया, तब विपक्ष और अधिक आक्रामक होकर प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से पद त्यागने की मांग करने लगा था। ममता को अंदेशा है कि यदि पार्थ को बाहर का रास्ता दिखाया, तो संभव है कि राज्य में शुभेंदु अधिकारी से लेकर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उन पर हमलावर हो जाए। यही वजह है कि वह पार्थ चटर्जी के मामले में फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रही हैं।
पार्टी महिला अभिनेत्री के घर से पैसे मिलने और पार्थ चटर्जी से जुडे़ मामले को अलग-अलग चश्मे से देख रही है। उसके मुताबिक, पार्थ तो पार्टी सदस्य हैं, लेकिन वह अभिनेत्री नहीं। उसने यह बात स्वीकार भी की है। मगर प्रवर्तन निदेशालय के सामने उसने कथित रूप से यह भी माना है कि वह पार्थ के पैसे रखती थी। इसका मतलब है कि पार्थ उसके निशाने पर हैं। तृणमूल की सोच यह है कि संभव है, पार्थ को 'हनी ट्रैप' करके फंसाया गया हो। हालांकि, कहा जा रहा है कि शिक्षा सचिव ने भी ईडी अधिकारियों के सामने पार्थ का नाम लिया है, जिससे सियासी हवा बदल चुकी है।
बहरहाल, आज ममता बनर्जी कैबिनेट की बैठक कर रही हैं, जिसके बारे में अटकलें हैं कि इसमें मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चा की जाएगी, मगर सियासी विश्लेषक मान रहे हैं कि इसमें आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि ईडी ने एक अन्य मंत्री परेश अधिकारी को भी तलब किया है। चूंकि अभी लोकसभा चुनावों में डेढ़ साल और विधानसभा चुनाव में चार वर्ष की देरी है, इसलिए संभव है कि ममता ईडी कार्रवाई के बहाने साफ-सफाई कर अपनी पार्टी की छवि सुधार लें।
लेकिन भाजपा की रणनीति क्या है? वह पिछले कई वर्षों से पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश में जुटी है। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसी सूबे के थे, पर पार्टी यहां विकसित नहीं हो सकी, जिस बाबत लालकृष्ण आडवाणी ने कभी मेरे सामने भी चिंता जाहिर की थी। उस दौर में कलकत्ता नगर निगम के चुनाव में दो भाजपा पार्षदों की जीत पर लड्डू बांटे गए थे और खूब गुलाल उड़े थे। मगर जो काम वाजपेयी-आडवाणी के समय नहीं हुआ, वह आज संभव हो रहा है। आज राज्य में भाजपा विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है, और माकपा व कांग्रेस का बोरिया-बिस्तर समेट चुकी है। अमित शाह जब भाजपा अध्यक्ष बने थे, तब उन्होंने कहा था कि भाजपा अखिल भारतीय पार्टी तभी बन सकेगी, जब पूर्व और दक्षिण भारत में इसकी पकड़ होगी। पूर्वोत्तर में तो पार्टी ने सरकार बना ली है, लेकिन पश्चिम बंगाल में उसका यह सपना पूरा नहीं हो सका है। इसकी वजह यह है कि मोदी-शाह जैसे लोकप्रिय स्थानीय नेता राज्य में नहीं हैं।
ऐसे में, ममता बनर्जी के खिलाफ नकारात्मक राजनीति ही भाजपा की खुराक है, जिसकी उसे हरदम तलाश रहेगी। यह वही रणनीति है, जिसका इस्तेमाल कभी खुद ममता ने ज्योति बसु के खिलाफ किया था। उस समय बतौर मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने पीडब्ल्यूडी मंत्री जतिन चक्रवर्ती को पद से बेदखल कर दिया था, तो क्या ममता बनर्जी पार्थ को लेकर वही साहस जुटा पाएंगी? इसका सवाल तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतिहास खुद को दोहरा रहा है। चूंकि ममता की छवि आज भी बेदाग है, इसलिए भाजपा उनकी छवि पर हमला करने के लगातार प्रयास कर रही है। वह ममता के खिलाफ एक महौल बनाना चाहती है। राजनीति में इस तरह की हवा काफी मददगार होती है।
हालांकि,भाजपा की राह आसान नहीं है। ममता ने जनहित के काफी काम किए हैं और जनता से उनका जुड़ाव अब भी कायम है। बुधवार को हुगली जिले में एक औद्योगिक इकाई के उद्घाटन के लिए वह सड़़क मार्ग से पहुंचीं। वह दरअसल आंकना चाहती थीं कि जनता उन पर कितना भरोसा करती है? दीदी के इंतजार में लोग बारिश में भींगते हुए खड़े थे। चूंकि ममता पर अब तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, इसलिए उनके लिए इस मामले से बाहर आना बहुत मुश्किल नहीं होगा। जाहिर है, शह और मात का यह खेल आसान नहीं है। मगर भाजपा भी 2021 की हार से सबक लेकर नई रणनीति के साथ मैदान में डटी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सोर्स- Hindustan Opinion Column

Rani Sahu
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