सम्पादकीय

ममता ने खेल किया

Gulabi
3 May 2021 11:00 AM GMT
ममता ने खेल किया
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पश्चिम बंगाल में बीजेपी के आक्रामक कैंपेन और ध्रुवीकरण की कोशिशों के बावजूद ममता की तृणमूल कांग्रेस ने जीत दर्ज की

कोरोना की दूसरी लहर के बीच हुए पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी विधानसभा चुनावों के दौरान भले परिवर्तन शब्द पर सबसे ज्यादा जोर दिख रहा हो, वोटरों ने पांच में से तीन जगह सत्ताधारी दल को ही दोबारा सत्ता सौंपी।

पश्चिम बंगाल में बीजेपी के आक्रामक कैंपेन और ध्रुवीकरण की कोशिशों के बावजूद ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की। असम में एनआरसी से जुड़े विवादों के बावजूद बीजेपी को जनता ने लगातार दूसरी बार चुना और कांग्रेस को फिर से मायूसी हाथ लगी। तमिलनाडु में डीएमकेएकी जीत हुई, लेकिन सीटों की संख्या उसकी उम्मीद से कम रही। एम करुणानिधि के निधन के बाद स्टालिन के नेतृत्व में यह पार्टी का पहला विधानसभा चुनाव था, जिसमें वह सफल रहे।

केरल में एक बार एलडीएफ और दूसरी बार यूडीएफ की रीत को बदलते हुए पिनरई विजयन सरकार ने पहले से ज्यादा सीटों के साथ सत्ता में वापसी की। यह ऐतिहासिक रिजल्ट है। इससे पता चलता है कि विजयन सरकार के कामकाज को जनता ने पसंद किया है, लेकिन पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों का सफाया हो गया। क्या बंगाल में सीपीएम को केरल में पार्टी के कामकाज के तरीकों से कुछ सीखना चाहिए? यह सवाल गौरतलब है।

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बहरहाल, इन चुनावी नतीजों का सबसे गंभीर पहलू यह है कि पश्चिम बंगाल के नतीजों से जो नैरेटिव बन रहा है, उसका असर आने वाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीति के दोनों खेमों में देखने को मिल सकता है। बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में अपनी जीत पर जिस तरह का दांव लगा रखा था, उससे साफ था कि उसके निशाने पर सिर्फ पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव नहीं था। इसके जरिए वह 2024 के लोकसभा चुनाव का ट्रेंड सेट करना चाहती थी।
उसके राज्य में दो अंकों में सिमटने के बाद यह फायदा बीजेपी के बजाय विपक्षी खेमे को मिलने वाला है। जिस तरह से अखिलेश यादव और शरद पवार से लेकर महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला तक तमाम विपक्षी नेता ममता को बधाई देने आगे आए हैं, उससे यह सप्ष्ट है कि इस जीत में वे सब किसी न किसी रूप में अपनी जीत भी देख रहे हैं। इसी संदर्भ में महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि कांग्रेस किसी भी राज्य में विरोधियों के सामने मजबूत चुनौती तक पेश नहीं कर सकी।
कुल मिलाकर इन चुनाव नतीजों ने विपक्षी खेमे में ममता का कद ऊंचा किया है तो कांग्रेस की हैसियत कम की है। इसका विपक्षी पार्टियों के आपसी समीकरण और गठबंधन की शक्ल पर ठीक-ठीक क्या और कैसा प्रभाव पड़ने वाला है, यह साफ होने में थोड़ा वक्त लगेगा। लेकिन इतना तय है कि इन चुनावों ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों के नेतृत्व को मंथन के लिए बहुत कुछ दे दिया है।
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