सम्पादकीय

ममता बनर्जी: विपक्षी एकता की झंडाबरदार को आखिर कौन-सा डर सता रहा है?

Rani Sahu
30 March 2022 3:58 PM GMT
ममता बनर्जी: विपक्षी एकता की झंडाबरदार को आखिर कौन-सा डर सता रहा है?
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विपक्षी एकता की झंडाबरदार को आखिर कौन-सा डर सता रहा है?

नरेन्द्र भल्ला

ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस वक्त अपने प्रदेश में हो रही घटनाओं की चिंता करने से ज्यादा फिक्र दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों की है और उनकी राजनीति का सारा फोकस भी उसी पर है.वे साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से काफी पहले ही समूचे विपक्ष को एकजुट करके उसे एक मंच पर लाने की सबसे बड़ी झंडाबरदार बनी हुई हैं.बाकियों की क्या भूमिका रहेगी,ये तो आने वाला वक़्त ही बतायेगा लेकिन फिलहाल एनसीपी के संस्थापक शरद पवार ही इस अखाड़े में इकलौते विपक्ष के ऐसे कद्दावर नेता हैं,जो खुलकर ममता के साथ खड़े दिखते हैं.पवार ने ऐलान किया है कि केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई,ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल का मुद्दा बुधवार को एनसीपी और तृणमूल कांग्रेस संसद में उठाएगी.
विपक्ष को एकजुट करने की कवायद करते हुए ममता ने केंद्र के ख़िलाफ़ एक सियासी दांव खेला है ,जो लोकतंत्र में उन्हें इसका हक़ भी देता है.ममता ने मंगलवार को सभी गैर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अन्य विपक्षी नेताओं को पत्र लिखा है,जिसमें उन्होंने सभी नेताओं को बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की अपील की है. अपनी इस चिट्ठी में ममता ने गैर-बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों समेत तमाम विपक्षी नेताओं के आगे गुहार लगाई है कि सभी प्रगतिशील ताकतों के एक साथ आने और केन्द्र के दमनकारी शासन से लड़ने की जरूरत है.
जानकार मानते हैं कि बंगाल के बीरभूम में 22 मार्च को हुए आठ लोगों के नरसंहार के बाद राज्य की बदहाल होती कानून-व्यवस्था को लेकर ममता बुरी तरह से घिर चुकी हैं क्योंकि प्रदेश के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने इसे सार्वजनिक तौर पर जंगलराज बताया है.वहीं इस घटना की जांच कर रही सीबीआई से भी ममता इसलिये ख़फ़ा हैं क्योंकि वे इसके राजनीतिक अंजाम को देख रही हैं कि आने वाले दिनों में क्या सियासी भूचाल आ सकता है.
ममता की इस चिट्ठी को उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी पर ईडी के कसते शिकंजे से भी जोड़कर देखा जा रहा है,जो कोयला घोटाले के आरोपी हैं और सम्मन के बावजूद केंद्रीय एजेंसी के सामने पेश नहीं हो रहे हैं.इसलिये ममता को लग रहा है कि केंद्रीय एजेसियों के जरिये उनकी सरकार पर कोई बड़ी आंच आ सकती है.बीते सोमवार को बंगाल विधानसभा में तृणमूल और बीजेपी विधायकों के बीच हुई मारपीट इसकी ताजा तस्वीर है कि बंगाल हिंसा के किस रास्ते की तरफ आगे बढ़ रहा है.
संविधान के जानकार मानते हैं कि बीरभूम के नरसंहार पर राज्य सरकार के खिलाफ राज्यपाल की नेगेटिव रिपोर्ट और सीबीआई की जांच रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार कोई भी बड़ा फैसला लेने से पीछे नहीं हटेगी.यही वजह है कि ममता को सबसे बड़ा डर ये सता रहा है कि केंद्र कहीं प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला ही न ले ले.
हालांकि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की ममता से तनातनी अभी ख़त्म नहीं हुई है लेकिन बाकी विपक्षी दल कमोबेश ममता के समर्थन में हैं.लेकिन ये चिट्ठी लिखने के बाद ममता को सबसे बड़ा साथ शरद पवार का ही मिला है. NCP के अध्यक्ष शरद पवार ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग के मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी की अपील का खुलकर समर्थन किया है. उन्होंने सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक बदले के लिए करने के मुद्दे को संसद में उठाने की बात भी कही. एक सवाल के जवाब में पवार ने कहा, "हम इस मामले को कल यानी बुधवार को संसद में उठाएंगे. हम देखेंगे कि इस मामले में साथ मिलकर हम क्या कर सकते हैं."
इससे पहले एनसीपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी पवार ने बीजेपी पर राजनीतिक बदले के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों के ज़रिए विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया. उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं नवाब मलिक और अनिल देशमुख पर हुई कार्रवाई को लेकर कहा "जो लोग आज सत्ता पर काबिज़ हैं,उन्हें लगता है कि जो उनकी विचारधारा के नहीं हैं वो उनके दुश्मन हैं. सीबीआई और ईडी की छापेमारी आम बात हो गई है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिशोध के लिए सियासी विरोधियों को मुश्किल में डालने के लिए किया जा रहा है."
पवार ने ये भी कहा कि, "एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के हर नेता के खिलाफ कुछ न कुछ चल रहा है. प्रधानमंत्री मोदी के दिमाग में एक ही चीज़ है. लोगों की इच्छा कुछ भी हो, वो कश्मीर से कन्याकुमारी तक बीजेपी का शासन चाहते हैं."
दरअसल, केंद्र सरकार को घेरने के लिए ममता ने अपनी चिट्ठी में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुद्दा भी उठाया है.उन्होंने इस पत्र में संसद से पास हुए कुछ विधेयकों का जिक्र करते हुए केंद्र को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है.ममता ने लिखा, 'शीतकालीन सत्र में दिल्ली स्पेशल पुलिस (संशोधन) बिल 2021 के साथ ही सीवीसी संशोधन बिल 2021 को विपक्ष के वॉकआउट के बावजूद मनमाने ढंग से पारित कराया गया.इन कानूनों के जरिए केंद्र ईडी और सीबीआई के डायरेक्टर का कार्यकाल पांच साल तक बढ़ा सकता है,जो कि सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश का घोर उल्लंघन है।'
ममता ने अपनी चिट्ठी में लिखा है, 'सभी विपक्षी दलों को एकजुट होकर केंद्रीय एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल के बीजेपी के इरादे के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा. जैसे ही चुनाव नजदीक आते हैं केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्ष को दबाने-डराने के लिए होता है. हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका, मीडिया, और जनता महत्वपूर्ण स्तंभ हैं.अगर इनमें से किसी भी हिस्से में व्यवधान आता है तो सिस्टम बैठ जाता है."
लोकतंत्र में विपक्ष को जनहित से जुड़े मुद्दों पर अपनी आवाज उठाने और सरकार की जवाबदेही तय करने का पूरा हक है लेकिन ममता की इस चिट्ठी में 2024 के मंसूबों के पूरे होने से पहले का वो दर्द छलकता दिख रहा है,जिसका अहसास होते ही उन्होंने विपक्षी एकता को बंगाल के लिए एक बड़ी ढाल बनाने की कोशिश की है. हालांकि ये तो दिनोदिन चढ़ता हुआ सियासी पारा ही तय करेगा कि वे इसमें कितनी कामयाब हो पाती हैं?
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