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साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भी भारी बहुमत के साथ विजयी हुई थीं
अजय विद्यार्थी। पश्चिम बंगाल की राजनीति में अग्निकन्या के नाम से प्रसिद्ध टीएमसी (TMC) की प्रमुख ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) आज लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बनीं. ममता बनर्जी का राजनीतिक सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है. साल 2011 पर वाममोर्चा के 34 वर्षों के शासन को समाप्त कर बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं. उसके बाद साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भी भारी बहुमत के साथ विजयी हुई थीं.
ममता का राजनीतिक सफर 21 साल की उम्र में साल साल 1976 में महिला कांग्रेस महासचिव पद से शुरू हुआ था और साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार मैदान में उतरीं ममता बनर्जी माकपा के दिग्गज नेता और लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को हरा कर संसदीय राजनीति की शुरुआत की थी. उस समय देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी थी. उन्होंने ममता बनर्जी को युवा कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया था.
साल 1989 के चुनाव में हार गई थी ममता
हालांकि कांग्रेस विरोधी लहर में वर्ष साल 1989 में वे लोकसभा चुनाव हार गई थीं. संसदीय राजनीति में 1989 के बाद इस साल नंदीग्राम के विधानसभा चुनाव में पराजित हुई हैं. साल 1991 के चुनाव में वे लोकसभा के लिए दोबारा चुनी गईं. चुनाव जीतने के बाद पीवी नरसिंह राव मंत्रिमंडल में उन्होंने युवा कल्याण और खेल मंत्रालय का जिम्मा संभाला. लेकिन केंद्र में महज दो साल तक मंत्री रहने के बाद ममता ने केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में कोलकाता की ब्रिगेड परेड ग्राउंड में एक विशाल रैली का आयोजन किया और मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इस बीच कांग्रेस के साथ उनका मतभेद हुआ और उन्होंने साल 1998 में कांग्रेस पर माकपा के सामने हथियार डालने का आरोप लगाते हुए उन्होंने अपनी नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस बना ली.
बाजपेयी के मंत्रिमंडल में बनी थीं रेल मंत्री
ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस राज्य की प्रमुख विरोधी दल के रूप में उभरी और जनता के बीच माकपा विरोधी शक्ति के रूप में स्थापित करने में सफल रहीं. इस बीच वर्ष 1998 से 2001 तक वह एनडीए के साथ रहीं. अक्तूबर, 2001 में ममता ने केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में रेल मंत्री का पद संभाला. लेकिन तहलका कांड की वजह से महज 17 महीने बाद ही इस्तीफ़ा देकर सरकार से अलग हो गईं. उसके बाद उन्होंने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया. जनवरी 2004 में कुछ दिनों के लिए वह फिर केंद्र में मंत्री बनीं. साल 2006 में उन्होंने एक बार फिर कांग्रेस का हाथ थामा और लगभग छह साल तक उसी के साथ बनी रहीं.
साल 2019 के लोकसभा में टीएमसी को मिली थी मात्र एक सीट
साल 2004 के लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को राज्य की 42 में महज एक ही सीट मिली थी. वह भी सीट ममता की ही थी. लेकिन उसके बाद सिंगुर और नंदीग्राम में किसानों के हक में जमीन अधिग्रहण विरोधी लड़ाई के जरिए ममता गरीबों की मसीहा के तौर पर उभरीं. यही वजह थी कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल की सीटों की तादाद एक से बढ़ कर 19 तक पहुंच गई.ममता रेल मंत्री बनने वाली देश की पहली महिला थीं. इसके अलावा वे केंद्र में कोयला, मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री, युवा मामलों और खेल तथा महिला और बाल विकास राज्यमंत्री भी रह चुकी हैं.
2012 में टाइम पत्रिका ने 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में किया था शामिल
साल 2011 में ममता बनर्जी ने ममता बनर्जी ने 34 वर्षों के वाम शासन को हटाने मे सफल रहीं. साल 2012 में टाइम पत्रिका ने उन्हें विश्व के 100 सबसे प्रभावरशाली लोगों की सूची में शामिल किया था. केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों पर अपनी पैठ जमाने के बाद ममता ने 18 सितंबर, 2012 को केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. उसके बाद साल 2016 के विधानसभा चुनाव में फिर विजयी हुई. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें करारा झटका लगा और राज्य की 42 सीटों में से 18 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल कर ली, लेकिन इस विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने वापसी की और 213 सीटों पर जीत हासिल कर तीसरी बार बंगाल की सीएम का ताज हासिल किया.मात्र 21 साल की उम्र में महिला कांग्रेस की महासचिव बनी थीं ममता बनर्जी, सोमनाथ चटर्जी को हरा कर संसदीय राजनीति में रखा था कदम
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