सम्पादकीय

बंगाल गैंगरेप केस पर ममता बनर्जी का बयान टीएमसी की छवि और गिराने का काम करेगी

Gulabi Jagat
15 April 2022 10:59 AM GMT
बंगाल गैंगरेप केस पर ममता बनर्जी का बयान टीएमसी की छवि और गिराने का काम करेगी
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बंगाल गैंगरेप केस
अविजीत घोषाल |
19वीं सदी में महिला समर्थक सुधारों के साथ आधुनिकता के युग की शुरुआत करने वाले बंगाल (Bengal) की प्रसिद्ध सामूहिक अंतरात्मा बलात्कार की घिनौनी वारदातों से भी जागृत नहीं हुई है. यहां रेप की घटनाओं ने सबसे निम्न मापदंडों को भी पीछे छोड़ दिया है, जिन्हें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता महज असामान्य बता रहे हैं. इस घटना से संबंधित तथ्यों पर गौर करिए. पहला, जो पीड़िता है वह नाबालिग है. दूसरा, घटना का मुख्य अपराधी सत्तारूढ़ दल के नेता का बेटा है. तीसरा, जो शायद सबसे अधिक पीड़ादायक है, पीड़िता के मृत शरीर का बिना किसी डेथ सर्टिफिकेट के अंतिम संस्कार कर दिया गया.
यह तीसरा तथ्य राज्य में सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ आरोपों की मूल बात को जाहिर करता है. यदि आप सत्तारूढ़ पार्टी के नेता हैं, तो आप बिना किसी डेथ सर्टिफिकेट के किसी भी शव का दाह संस्कार कर सकते हैं. हालात देखिए, डर का माहौल कितना है, वह इस बात से जाहिर होता है कि घटना की एफआईआर अपराध के पांच दिन बाद 9 अप्रैल को दर्ज की गई. सबसे बड़ा झटका किसी और ने नहीं बल्कि खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (CM Mamata Banerjee) ने दिया. पुलिस द्वारा मुख्य आरोपी को हिरासत में लेने के करीब दो दिन बाद घटना पर उनकी प्रतिक्रिया आई.
ममता बनर्जी का बयान शर्मनाक
मुख्यमंत्री के इस बयान का विरोध राज्य के बाहर भी हुआ, 2012 दिल्ली रेप पीड़िता निर्भया की मां ने कहा कि इस तरह की टिप्पणी एक मुख्यमंत्री के लिए अनुचित है और उन्हें पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है. विस्तृत दायरे में हालात को देखिए. कलकत्ता हाईकोर्ट ने पिछले 15 दिनों में सीबीआई को सात मामले सौंपकर एक तरह का रिकॉर्ड बनाया है. इनके अलावा, कोर्ट ने राज्य में हुए चार अलग-अलग बलात्कार के मामलों की जांच करने के लिए चार पुलिसवालों वाली एक टीम बनाने को भी कहा है. न्यायाधीशों ने बलात्कार के मामलों (सीबीआई को सौंपे गए हंसखाली मामले को छोड़कर) की जांच के लिए कोलकाता पुलिस की विशेष आयुक्त दमयंती सेन को एक टीम बनाने का निर्देश दिया है.
दिलचस्प बात यह है कि 1996 बैच की आईपीएस अफसर सेन 2012 में कोलकाता पुलिस की चीफ डिटेक्टिव थीं, जब पार्क स्ट्रीट सामूहिक बलात्कार की घटना हुई थी. इस घटना पर तब उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था जिसकी वजह से उनको मुख्यमंत्री के क्रोध का शिकार होना पड़ा था, हालांकि इससे वह वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और नौकरशाहों के बीच एक ईमानदार अधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित हुई थीं. इन हालातों ने असहज सवालों की झड़ी लगा दी है, इनमें ऐसे कठिन सवाल शामिल हैं जिनका तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो को शायद अपने चार दशकों के राजनीतिक जीवन में कभी भी सामना नहीं करना पड़ा हो.
यदि कलकत्ता हाई कोर्ट इतनी छोटी अवधि में इतने सारे मामले सीबीआई को सौंप देता है और बलात्कार के मामलों की जांच के लिए पुलिस की विशेष टीमों का गठन करता है, तो सवाल यह है कि राज्य सरकार प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाए रखने की अपनी बुनियादी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए क्या कर रही है? इसके अलावा, अगर राज्य की सर्वोच्च न्यायपालिका को लगता है कि प्रदेश पुलिस इन घटनाओं की जांच करने में अक्षम है, तो पुलिस की बागडोर संभालने वाले व्यक्ति की दक्षता कितनी है?
न्यायपालिका की तीखी आलोचना से कई तर्कों को मजबूती मिलती है
न्यायपालिका की ओर से आई तीखी आलोचना से कई तर्कों को मजबूती मिलती है. विपक्ष बार-बार राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग कर चुका है. अदालत के फैसले आरोपों को और गंभीर बना सकते हैं. मंगलवार को, बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने राजभवन के बाहर प्रदर्शन किया, उनका कहना था कि राज्यपाल जगदीप धनखड़ द्वारा सोशल मीडिया पर राज्य सरकार के कार्यों के खिलाफ सवाल खड़े करना और बहस करना ही पर्याप्त नहीं है. बीजेपी कार्यकर्ताओं की मांग है कि ममता बनर्जी सरकार को बर्खास्त करने के लिए केंद्र को कार्रवाई करने और सलाह देने का समय आ गया है. ऐसे विरोध प्रदर्शन और अधिक फैलते जाएं तो इसमें आश्चर्य करने वाली कोई बात नहीं होगी.
दिलचस्प यह है कि पुलिस की कमान हमेशा ममता बनर्जी के हाथों में ही रही है. पूर्व नौकरशाहों और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, जिन्होंने मुख्यमंत्री को करीब से देखा है, का कहना है कि वह हमेशा जमीनी स्तर के पुलिस अधिकारियों से सीधे संपर्क स्थापित करती हैं और वह शासन चलाने के लिए बड़े अफसरों पर निर्भर नहीं करती हैं. हालांकि इससे उन्हें एक स्तर तक निहित स्वार्थों से निपटने में मदद मिली है, लेकिन इससे कई बार वरिष्ठ पुलिस अफसरों द्वारा उठाए गए कदम कारगर साबित नहीं हो पाते. यह भी एक तथ्य है कि सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने अक्सर पुलिस को अपना निशाना बनाया है. 2014 में गुस्साई भीड़ ने कोलकाता के अलीपुर पुलिस स्टेशन पर धावा बोल दिया था, तब घबराए पुलिसकर्मी टेबल के नीचे और अलमारी के पीछे छिपते नजर आए थे और ड्यूटी पर पुलिस को पीटा गया था. इसके बाद अधिकांश वर्दीधारियों ने सत्ताधारी दल के नेताओं की इच्छा के अनुसार काम करना शुरू कर दिया.
एक पूर्व नौकरशाह का कहना है, "यह संदेश स्पष्ट है कि यदि आप हमारे साथ नहीं हैं, तो आप हमारे खिलाफ हैं. यह पुलिस को भी सूट करता है क्योंकि इससे उन्हें कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं होती. हालांकि राज्य के "बुद्धिजीवी" वामपंथियों से मोहभंग होने के बाद 2007-08 में सिंगूर और नंदीग्राम की घटनाओं के बाद सड़कों पर उतरे, लेकिन ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ अभी तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. पिछले कुछ दिनों में आए न्यायपालिका के फैसलों के बाद तेजी से कई बड़े सवाल खड़े हो चुके हैं. राजनीतिक जानकार इस बात से सहमत हैं कि सियासी तौर पर एक निर्वाचित सरकार को गिराना, विशेष रूप से जिसे भारी बहुमत प्राप्त है, संभव नहीं होगा. इस कदम से उल्टा ममता की 'राजनीतिक शहीद' की छवि बन जाएगी.
हालांकि, एक ऐसे राज्य में जिसने देश को पहली महिला ग्रेजुएट, पहली महिला डॉक्टर दी, जहां समाज सुधारकों ने अपने ही समुदाय के खिलाफ खड़े होने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी और सती प्रथा को खत्म कर दिया, विधवा पुनर्विवाह की शुरुआत की और महिला शिक्षा के प्रसार में मदद किया, वहां बलात्कार और इस तरह की असंवेदनशील घटनाओं को, सभ्य समाज में इजाजत नहीं दी जा सकती. भले ही ममता बनर्जी को एक साल पहले ही विधानसभा में भारी बहुमत मिला हो और उन्होंने कई तरह की रियायतों के साथ आबादी के एक बड़े हिस्से को लुभा लिया हो, लेकिन वह सरकार की मुखिया और पुलिस मंत्री के रूप में अपनी भूमिका पर उठे सवालिया निशान का खतरा नहीं झेल सकतीं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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