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- मालपुए बहुत स्वाद थे...
अपने मित्र मालपुओं के इतने परम श्रद्धेय हैं कि उतने तो वे अपने माता-पिता के प्रति कभी परम तो छोड़ो, श्रद्धेय भी न रहे। वे मालपुओं के चक्कर में नरक भी आंखें मूंद कर जा सकते हैं। वे अपने भीतर के कवि को बचाए रखने के लिए कवि गोष्ठियों के आयोजन पर आयोजन करते रहते हैं, पर उनकी कवि गोष्ठियों में श्रोताओं का ग्राफ निरंतर गिरता जा रहा है सेंसेक्स की तरह। सो अबके कवि गोष्ठी में उन्होंने नया नुस्खा आजमाने की सोची ताकि उनकी कवि गोष्ठी में सब कवि ही न हों, कुछ श्रोता भी हों। इसलिए उन्होंने प्रचार किया कि अबके वे अपनी कवि गोष्ठी में अपने श्रोताओं को मालपुए खिलाएंगे। वह भी कवि गोष्ठी शुरू होने से पहले। इसलिए कवि गोष्ठी शुरू होने के बाद भी श्रोताओं के मुंह में मिठास बनी रहे। अपने मित्र मालपुओं के इतने परम श्रद्धेय हैं कि उतने तो वे अपने माता-पिता के प्रति भी परम तो छोड़ो, श्रद्धेय भी न रहे। वे मालपुओं के चक्कर में नरक भी आंखें मूंद कर जा सकते हैं। जैसे ही उन्हें सूचना मिली कि उनकी कवि गोष्ठी में अबके कविता से पहले श्रोताओं को मालपुए परोसे जाएंगे तो वे कवि गोष्ठी में जाने को हर हाल में सहर्ष तैयार हो गए। पेट खराब होने के बाद भी।