सम्पादकीय

राख पर खड़ा मलाणा

Rani Sahu
28 Oct 2021 6:48 PM GMT
राख पर खड़ा मलाणा
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फिर उसी राख से चिंगारी निकली, जो हर साल बुझी हुई मान ली जाती है

फिर उसी राख से चिंगारी निकली, जो हर साल बुझी हुई मान ली जाती है। प्राचीन लोकतंत्र की शिनाख्त करता मलाणा गांव अपने अस्तित्व की राख बटोरता हुआ कई अपवादों से घिर रहा है। इस साल की सर्दियों का आगमन फिर अंगीठी की तरह सोलह मकानों व एक दुकान को जला गया, तो इसका आकलन महज वित्तीय नुकसान नहीं है। काष्ठकुणी शैली में निर्मित भवनों को स्वाह करती आग अपनी विकरालता में धरोहर मूल्य को भी जलाती है और यह बार-बार हो रहा है। करीब चौदह साल पहले भी इसी तरह गांव के एक बड़े हिस्से को राख का ढेर बना गई थी, लेकिन अग्निशमन के रास्ते आज भी विकसित नहीं हुए। अगर प्रबंधकीय दृष्टि से योजना बनाई होती या मलाणा को बचाने के तात्पर्य से संजीदा होते तो निश्चित रूप से अग्निशमन के यंत्र व तंत्र वहां पहुंच कर बहुत कुछ बचा सकता है। फिर 57 परिवारों के लिए मुसीबत के दिन और गांव के लिए खुद से संघर्ष बढ़ जाता है। बेशक प्राचीन लोकतंत्र की लाज में बाशिंदों ने अपने मूल्य, नीतियां व परंपराएं नहीं बदलीं हैं, लेकिन इसका मुकाबला देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था से भी है। प्रगति के कदमों की आहट गांव तक रही है, तो जाहिर तौर प्राचीन युग को संजोए रखना मुश्किल है।

अब रात के सन्नाटों को तोड़ता प्रकाश बिजली के खंभों से आता है, तो प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से चकाचौंध भी घूंघट उठा रही है। पीढि़यां बदल रही हैं और लक्षय भी। ऐसे में मलाणा को मलाणा बनाए रखने की शर्तें हैं, तो नागरिक समाधान में मलाणा को आगे बढ़ाने की कसौटियां भी पूरी करनी हैं। बेशक हमें मलाणा के मूल्यों का सम्मान करते हुए, उसी लक्ष्मण रेखा के भीतर लोकतंत्र का ओजस्वी चेहरा देखना है, जिस सीमा तक वहां की व्यवस्था तथा नागरिक समाज अनुमति देता है, लेकिन आधुनिक आवरण से दरकिनार करके मलाणा की मिलकीयत सुदृढ़ नहीं होगी। सवाल मलाणा जैसे कई धरोहर गांवों का है और इस तरह अग्निश्मान विभाग के विस्तार को नया आयाम देना होगा। जहां तक मलाणा के अस्तित्व का प्रश्न है, तो अब समय आ गया कि इसे आधुनिकता के साथ जीवन शैली का तारतम्य पैदा करना है। मलाणा को विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र की मान्यता में सदैव स्थापित रहना है, तो यह सामाजिक व राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में साबित करना पड़ेगा
इसे राष्ट्रीय धरोहर गांव की परिभाषा में सुरक्षित रखने के लिए एक सुनिश्चित व्यवस्था तथा अधोसंरचना चाहिए। मसलन गांव तक पहुंचने के माध्यम इसलिए भी जरूरी हैं, ताकि आपदा के समय बचाव किया जा सके। अगर फायर ब्रिगेड की गाडियां मौके पर पहुंच गई होतीं तो डेढ़ सौ के करीब लोगों को यह दिन नहीं देखना पड़ता। बहरहाल टीसीपी के तहत एक सुरक्षित खाके के तहत मलाणा को संबोधित करना होगा। विडंबना यह भी है कि इस इलाके की चर्चा 'मलाणा क्रीम' की वजह से होती चली गई, लेकिन हमने इतिहास के पन्नों को गौरवान्वित नहीं किया। अग्नि कांड ने गांव के अस्तित्व पर फिर से विचार करने का मौका दिया है। पिछली बार की तरह सरकारी मदद और इंतजाम शायद मलाणा के जख्म दूर कर दें, लेकिन यहां पद्धति-परंपरा और वास्तुकला के भीतर धरोहर मूल्यों को संरक्षित करने का दबाव बढ़ जाता है। पूरे गांव का आग की चुनौतियों पर आधारित सर्वेक्षण की जरूरत है ताकि ढांचागत दुरुस्ती की जा सके। सभी महकमों की समन्वित योजना के तहत मलाणा के ऐतिहासिक-सामाजिक व लोकतांत्रिक पन्नों को बचाने की जरूरत है। इसके लिए कुल्लू के जिलाधीश के नेतृत्व में मलाणा गांव विकास बोर्ड का गठन करना होगा, ताकि यह क्षेत्र किसी नशीली क्रीम के कारण उद्धृत न होकर अपने भीतर के इतिहास और लोकतांत्रिक पद्धति के पुरातन आगाज को परिदृश्य में महफूज रख सके। गांव की परिधि में शोध एवं सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देती योजनाओं में इतनी क्षमता होनी चाहिए कि सैलानी इस क्षेत्र की रूह में राष्ट्रीय पैमानों पर केंद्रित लोकतांत्रिक मूल्यों का स्पर्श कर सकें।

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