सम्पादकीय

पर्यटक को एहसास दें

Rani Sahu
12 Dec 2021 7:07 PM GMT
पर्यटक को एहसास दें
x
हिमाचल में पर्यटन का एहसास आज भी अधूरा है

हिमाचल में पर्यटन का एहसास आज भी अधूरा है। बेशक बालीवुड के फिल्मी नजारों, सोशल मीडिया के प्रचार, पूर्व सरकारों के प्रयास और जम्मू-कश्मीर की अशांति ने सैलानियों की तादाद बढ़ा दी है, लेकिन पर्यटन योजना व परियोजनाओं में एहसास को बरकरार रखने का कोई संकल्प दिखाई नहीं देता। पर्यटन का एक खास एहसास अवश्य ही युवाओं को हिमाचल बुला रहा है, लेकिन इस वर्ग को चिन्हित करके परियोजनाएं नहीं बनीं। ये पर्यटक पर्वतीय श्रृंखलाओं को पर्यटन की चरागाह की तरह देख रहे हैं, लेकिन क्या 'कसोल' को मक्का बना कर यह एहसास पूरा हो जाएगा। विडंबना यह है कि विभागीय सर्वेक्षण या अन्य तरीकों से हुआ पर्यटन अध्ययन भी अधूरा है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की खूबियों में हिमाचल की हिस्सेदारी अगर कमजोर है, तो इसलिए कि आंकड़ों के मकड़जाल को ही पर्यटन उद्योग माना जा रहा है, जबकि पर्यटक के चरित्र में 'एहसास' की वांछित जगह को न तो टटोला जा रहा है और न ही उसे संवारा जा रहा है। हिमाचल में पर्यटन का दूसरा सबसे स्थायी और प्राचीन एहसास धार्मिक स्थलों के कारण स्वाभाविक तौर पर पैदा होता है, लेकिन इसे पूर्ण करने की दिशा में किसी भी सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई। देश के धार्मिक पर्यटन की क्षमता करीब बीस से पच्चीस हजार करोड़ हो गई है और कई मंदिर ही खुद में पंद्रह सौ करोड़ की आमदनी जुटा कर इस समृद्धि को 'एहसास' बना रहे हैं।

इसके विपरीत हिमाचल का धार्मिक पर्यटन केवल प्रशासनिक दरगाह बन रहे हैं, जहां बिना कॉडर के नियुक्तियां, बिना लक्ष्य के अपव्यय और बिना भविष्य के प्रबंधन तथा परियोजनाएं बनाई जा रही हैं। बेशक ज्वालाजी, कांगड़ा, चामुंडा, चिंतपूर्णी, नयनादेवी, बालासंुदरी या मणिकर्ण जैसे तीर्थस्थल प्रमुख पर्यटन केंद्र बन गए हैं, लेकिन क्या ऐसा 'एहसास' वहां जागृत हुआ या इनके विकास से कम से कम पांच हजार करोड़ की आर्थिकी विकसित करने की कोई दीर्घकालीन योजना बनाई गई। यहां छोटी काशी के अलंकृत मंडी शहर के धार्मिक व सांस्कृतिक महत्त्व का ही उल्लेख करें, तो क्या बनारस से कुछ सीखा गया। मंडी का एहसास 'शिवधाम' जैसी परियोजना कर पाएगी या तमाम प्राचीन मंदिरों की प्रदक्षिणा में छुपा 'एहसास' जगाना होगा। मंडी में पर्यटन का एहसास अगर बनारस की तर्ज पर पैदा किया जाए, तो उस महक के एहसास को बरकरार रखना होगा जो गली-कूचों में आज भी जिंदा है। यानी ब्यास और सुकेती के तटों के विकास की संभावना, मंदिर परिक्रमा का विस्तृत स्वरूप, पुरानी मंडी का धरोहर मूल्य व सांस्कृतिक तथा सामाजिक संरचना को आगे बढ़ाना होगा, वरना पत्थरों पर लिखे जा रहे विकास के शरीर से मंडी के एहसास की रूह भाग जाएगी।
मंडी को बनारस के करीब लाने के लिए पकवान, सुकून, सांस्कृतिक छवि तथा समाज के मूल स्वरूप को बचाने की जरूरत कहीं अधिक है। हिमाचल में पर्यटन एहसास की दृष्टि से पालमपुर को केरल के मुन्नार की तर्ज पर, धर्मशाला को बुद्ध की नगरी के लिए 'गया' की तर्ज पर, लद्दाख की तर्ज पर लाहुल-स्पीति, स्विट्जरलैंड की तर्ज पर खजियार, पौंग व अन्य झीलों को अंतरराष्ट्रीय वाटर स्पोर्ट्स के एहसास से जोड़ना पड़ेगा। चंबा, रामपुर बुशहर, सुजानपुर टीहरा, पुराना कांगड़ा व ऊना के सिख धरोहर मूल्य में छिपे एहसास को तरजीह चाहिए। यह साबित हो चुका है कि हिमाचल की पर्यटन परियोजनाएं केवल ईंट-गारे से रंगी आर्थिक संसाधनों को बर्बाद कर रही हैं, जबकि युवा पर्यटक को कम खर्चीले ईको टूरिज्म की जरूरत है। यही वजह है कि प्रदेश भर में टैंट कालोनियां या होम स्टे के जरिए 'एहसास' को पुट मिल रहा है। हिमाचल में पर्यटन विस्तार व व्यापार दोनों ही इसके 'एहसास' पर भारी पड़ रहे हैं। श्रम विभाजन, बढ़ती उत्पादकता, आधुनिकता, व्यक्तिवाद, राजनीति प्रभाव, सामाजिक अवसर तथा सामाजिक परिस्थितियों ने समाज के संरचनात्मक पक्ष को जहां पहुंचा दिया है वहां पर्यटन के वास्तविक 'एहसास' की जगह कम पड़ती जा रही है, यह सही नहीं है।
divyahimachal
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story