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- पर्यटक को एहसास दें

हिमाचल में पर्यटन का एहसास आज भी अधूरा है। बेशक बालीवुड के फिल्मी नजारों, सोशल मीडिया के प्रचार, पूर्व सरकारों के प्रयास और जम्मू-कश्मीर की अशांति ने सैलानियों की तादाद बढ़ा दी है, लेकिन पर्यटन योजना व परियोजनाओं में एहसास को बरकरार रखने का कोई संकल्प दिखाई नहीं देता। पर्यटन का एक खास एहसास अवश्य ही युवाओं को हिमाचल बुला रहा है, लेकिन इस वर्ग को चिन्हित करके परियोजनाएं नहीं बनीं। ये पर्यटक पर्वतीय श्रृंखलाओं को पर्यटन की चरागाह की तरह देख रहे हैं, लेकिन क्या 'कसोल' को मक्का बना कर यह एहसास पूरा हो जाएगा। विडंबना यह है कि विभागीय सर्वेक्षण या अन्य तरीकों से हुआ पर्यटन अध्ययन भी अधूरा है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की खूबियों में हिमाचल की हिस्सेदारी अगर कमजोर है, तो इसलिए कि आंकड़ों के मकड़जाल को ही पर्यटन उद्योग माना जा रहा है, जबकि पर्यटक के चरित्र में 'एहसास' की वांछित जगह को न तो टटोला जा रहा है और न ही उसे संवारा जा रहा है। हिमाचल में पर्यटन का दूसरा सबसे स्थायी और प्राचीन एहसास धार्मिक स्थलों के कारण स्वाभाविक तौर पर पैदा होता है, लेकिन इसे पूर्ण करने की दिशा में किसी भी सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई। देश के धार्मिक पर्यटन की क्षमता करीब बीस से पच्चीस हजार करोड़ हो गई है और कई मंदिर ही खुद में पंद्रह सौ करोड़ की आमदनी जुटा कर इस समृद्धि को 'एहसास' बना रहे हैं।
