सम्पादकीय

अकुबथिनी मामले को ऐसी मिसाल बनाएं जो ट्रोल करने वालों के लिए सबक बन जाए

Rani Sahu
11 Nov 2021 3:42 PM GMT
अकुबथिनी मामले को ऐसी मिसाल बनाएं जो ट्रोल करने वालों के लिए सबक बन जाए
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वो कैसा घिनौना और घटिया इंसान होगा जो किसी बात पर एक मासूम बच्ची पर हमले की धमकी दे डाले

बिक्रम वोहरा वो कैसा घिनौना और घटिया इंसान होगा जो किसी बात पर एक मासूम बच्ची पर हमले की धमकी दे डाले? और क्रिकेट जैसे मसले पर कोई ऐसी डरावनी कृत्य की बात करे दिमाग चकराना लाजिमी है. जब हमें यह पता चला कि वो अपराधी हैदराबाद में रहने वाला 23 साल का एक युवक, रामनागेश अकुबथिनी, (Ramnagesh Akubathini) है जो आईआईटी से ग्रैजुएट भी है, तो विरक्ति और बढ़ जाती है. गुस्से में आकर कोई छोटी-मोटी मूर्खता कर बैठे तो बात समझ में भी आती है, लेकिन इंटरनेट पर पाकिस्तानी अकाउंट की आड़ लेकर एक बच्ची को निशाना बनाने वाले इस शख्स के खिलाफ ऐसा कठोर कदम उठाने की जरूरत है जो ट्रोल करने वाले दूसरे लोगों के लिए सबक बन जाए. फिर यदि विराट कहते हैं कि आप सभी भाड़ में जाओ, मुझे अपने लिए या अपने खिलाफ आपकी कोई जरूरत नहीं है, भाग जाओ, अपना खेल अपने पास रखो, या फिर कुछ अपशब्द कहें, तो इसमें कोई असामान्य बात नहीं है.

इस तरह का घटियापन सारी हदें पार कर चुका है. जब मोहम्मद शमी पर इस तरह का हमला हुआ, वह भी बहुत बुरा था. आपको वो मूर्खतापूर्ण घटना भी याद होगी जब कुछ समय पहले सैफ अली खान के अपने बेटे का नाम तैमूर रखने पर विरोध शुरू हो गया. ये उनका बच्चा है, आपका नहीं. आपकी इसमें जरूरत ही क्या है? उन मौकों पर हम अलग-अलग नजरिए से बहस कर रहे थे. क्योंकि शायद मुस्लिम तत्व के शामिल होने से हमें इसकी आजादी मिल जाती है. लेकिन इसके बाद ऐसी घटिया मानसिकता वाले लोगों का हौसला और बढ़ जाता है.
इस घटनाक्रम को ऐतिहासिक उदाहरण बना देना चाहिए
अब ऐसे समझिए. एक व्यक्ति अपने कंप्यूटर पर बैठता है, शायद चाय के एक प्याले के साथ, और फिर धमकी दे डालता है. विकृत सोच वाला ये शख्स नौ महीने की एक बच्ची पर हमले का ऐलान करने की मांग करता है और उसे सही ठहराता है. यह लड़का ग्रैजुएट है, उसका परिवार है, शायद शादीशुदा भी है, उसके भाई-बहन हैं, फिल्में देखता है, पॉपकॉर्न खाता है और यह मानता है कि वह ऐसा कर सकता है और उसे लोगों का समर्थन भी मिल सकता है. उसे लगता है जैसे उसने कुछ हासिल कर लिया है, 'देखा – दिखा दिया'.
इस घटनाक्रम को अब ट्रोल करने वालों के खिलाफ लड़ाई का एक ऐतिहासिक उदाहरण बना देना चाहिए. नेट पर घटिया कृत्य करने वाले ये ट्रोल जो लोगों को प्रताड़ित करते हैं, अनापशनाप बोलकर लोगों को चोट पहुंचाते हैं, उनके प्रति सहनशीलता खत्म कर उन पर कड़ा प्रहार करना चाहिए. ट्रोल को ट्रोल समझकर काफी लंबे समय तक बर्दाश्त किया जा चुका है.
ऐसा नहीं है कि सैफ या शमी या विराट और उनके परिवारों के साथ जो किया जाता रहा है उसका उनपर कोई असर नहीं होता. बहुत बुरा असर होता है. असल में मामला यह है कि ज्यादातर भारतीय ऐसे घटिया कृत्य को पसंद नहीं करते, लेकिन इस तरह के मुद्दों के प्रति वे गूंगे-बहरे बने रहकर खामोश रहते हैं. क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी कोई नहीं सुनेगा. किसी मामले में न पड़ना अच्छी बात हो सकती है, लेकिन यह उस राष्ट्रीय चरित्र को दर्शाता है, जहां अपने घर के कूड़े को दूसरे घरों पर फेंक कर अपना घर साफ रखा जाता है.
ऐसे मुद्दों पर लोगों को खुल कर बोलना चाहिए
वर्तमान में, हमारे पास ऑनलाइन हमलों के खिलाफ मजबूत कानूनी उपाय का अभाव है. भारतीय दंड संहिता की धारा 506 के मुताबिक, आपराधिक धमकी के मामले के तहत, इसमें दो साल की सजा या जुर्माना, या फिर दोनों मुमकिन है. लेकिन, यह कानून बिना दांत वाले शेर की तरह है. भारतीय दंड संहिता, 1860, न तो साइबर धमकियों को परिभाषित करती है और न ही इसे अपराध मानकर दंड का प्रावधान करती है. हालांकि, इन मामलों में आईपीसी की अलग-अलग धाराएं और सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट (IT Act) का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन इसके भी कोई मायने नहीं हैं क्योंकि ऐसी किसी शिकायत को लापरवाही और अनिश्चितता के साथ लिया जाता है और अधिकारी इन पर कार्रवाई करने में अक्षम होते हैं. आपने आखिरी बार किसी साइबर क्राइम के मामले में एफआईआर होते कब देखा है?
और जब कानून भीड़ और ऐसे त्वरित संवादों के प्रति खामोश रहता है तो हमें अपने भीतर झांककर देखना चाहिए और सही जगह पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए दबाव बनाना चाहिए. क्योंकि चुप रहने का मतलब है सहमति देना. अकुबथिनी के मामले में धमकी की भाषा ही उसे गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त है. अच्छी बात ये है कि साइबर अधिकारियों ने इस 'राक्षस' का पता लगा लिया है.


Rani Sahu

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