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आप कुछ पका रहे हैं और फ्रिज या रसोई की अलमारी खोलने पर कोई ऐसी चीज नहीं मिलती
न. रघुरामन। आप कुछ पका रहे हैं और फ्रिज या रसोई की अलमारी खोलने पर कोई ऐसी चीज नहीं मिलती, जिसकी आपको जरूरत है, तब आप क्या करेंगे? मैं यह सवाल इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि पिछले रविवार जब मैं सोमवार की फ्लाइट के लिए सूटकेस पैक कर रहा था, मुझे एहसास हुआ कि मेरी ट्रेवल किट में टूथपेस्ट नहीं है। मैंने टीवी देखने में व्यस्त बेटी से मेरी पसंद का ब्लू जेल टूथपेस्ट लाने कहा।
उसने बिना मेरी ओर देख कहा, 'मैं ला दूंगी।' मैं पैकिंग में व्यस्त हो गया और 12 मिनट बाद दरवाजे की घंटी बजी। उसने दरवाजा खोला और मैंने उसे किसी से कहते सुना, 'भैया मैंने ब्लू जेल कहा था, रेड नहीं'। अनजाना व्यक्ति बोला, 'ठीक है मैडम' और चला गया। फिर 15 मिनट में वह सही प्रोडक्ट लेकर लौटा। ऐसी समस्याएं दशकों पुरानी हैं, जब हमारी मां चूल्हे पर खाना पकाती थीं।
तब भले ही फ्रिज या गैस स्टोव जैसी चीजें रसोई में 'नहीं मिलती' थीं, लेकिन आज तमाम इलेक्ट्रॉनिक गैजेट होने के बावजूद समस्या बरकरार है और लगभग हर महिला हमारी मां से ज्यादा शिक्षित है। दोनों युगों में समानता यह है कि रसोई में न मिलने वाला सामान किराने की दुकान से आता है। अंतर यह है कि 1960 के दशक में हाफ पैंट पहनकर मेरे जैसा कोई बच्चा दौड़कर सामान लाता था और आज मांएं सीधे ग्रॉसरी डिलिवरी कंपनियों को फोन करती हैं, जो नमक जैसी छोटी-मोटी चीजें भी 15 मिनट में ला देती हैं।
मेरी बेटी ने भी टूथपेस्ट मंगाने के लिए यही किया। 1960 के दशक में जब मैं रेडियो पर मशहूर कार्यक्रम 'बिनाका गीत माला' सुन रहा था, तब मेरी मां ने ऐसा ही कुछ लाने कहा। उन गानों को न सुन पाने का दुख लिए मैं दस पैसे के दो सिक्के लेकर दुकान की ओर भागा। लेकिन मुझे एहसास हुआ कि मेरे हाफ पैंट की जेब में छेद था और रास्ते में पैसे गिर गए थे। मैं उन्हें ढूंढ नहीं सकता था क्योंकि तब सड़क पर स्ट्रीट लाइट नहीं होती थी।
उन दिनों बच्चे कंचे खेलते थे और कंचे देखने के लिए बार-बार जेब में हाथ डालने से उसमें छेद हो जाता था। मेरा लाल चेहरा देखते हुए किराने वाले ने मुझे सामान देकर पैसे बाद में देने कहा क्योंकि वह मेरे पिताजी को जानता था। मैंने घर आकर पूरी बात बताई तो पिताजी गुस्सा हुए। वे मुझे वापस किराने वाले के पास ले गए और उसे परिवार के किसी भी सदस्य को, कभी भी उधार सामान न देने की हिदायत दी। उन्होंने मुझसे कहा, 'जीवन में कभी उधार मत लेना, कम से कम स्वाद की इच्छा या भूख खत्म करने के लिए तो कभी नहीं।'
पांच दशक से ज्यादा हो चुके हैं, मैंने कभी भी होटलों या किराने की दुकान पर क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल नहीं किया। आज जब मैं किराने की डिलिवरी ऐप कंपनियों को बिजनेस के लिए झगड़ते देखता हूं, जिसमें सुविधा 'गति' पर आधारित है, तो मुझे लगता है वे हमारे बच्चों को देखकर सीखने, मोलभाव करने और पैसों की समझ पाने, जैसे मुद्राओं का रंग-आकार समझने, किराने वाले से बात कर संवाद कौशल बढ़ाने और तेजी से मां की रसोई की समस्याएं हल करना सीखने से रोक रहे हैं।
बच्चे मां-बाप द्वारा दी जाने वाली रोजमर्रा की गतिविधियों से परोक्ष रूप से बहुत कुछ सीखते हैं। दुर्भाग्य से, ये सीख 'रैपिड ई-कॉमर्स बिजनेस' के कारण खो रही हैं। फंडा यह है कि बच्चों से घर के रोजमर्रा के काम करवाएं क्योंकि जिंदगी के कौशल सीखने के लिए ये जरूरी हैं।
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