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- प्रकाश प्रेरणा का...
'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का उदघोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति का विशेष महत्त्व है। यह पर्व मुख्यतः सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि छोड़कर मकर राशि में प्रवेश अथवा विस्थापन करते हैं। सूर्य की इसी संक्रमण की क्रिया के कारण इस पर्व को मकर संक्रांति कहा गया है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण हो जाते हैैं। इसी कारण मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व से दिन लंबे व रातें छोटी होना शुरू हो जाती हैं। हमारा देश यूं भी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है, इसलिए इस पर्व का हमारे लिए और भी अधिक महत्त्व बढ़ जाता है। यही नहीं विश्व की 90 फीसदी आबादी उत्तरी गोलार्द्ध में ही स्थित है। यही वजह है कि यह दिन संपूर्ण विश्व के लिए सकारात्मकता, ऊर्जा, उत्साह, नवजीवन व अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने के लिए विशेष महत्त्व रखता है। संपूर्ण विश्व के सभी उत्सवों में संभवतः मकर संक्रांति ही एक ऐसा उत्सव है जो बिना किसी स्थानीय परंपरा, मान्यता या विश्वास से संबंधित नहीं, अपितु यह एक खगोलीय घटना है जो वैश्विक भूगोल व संपूर्ण जीवन प्रणाली यानी मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों को आनंद देने वाला है। संभवतः यही एक ऐसा त्योहार है जो अंग्रेजी कैलेंडर के एक ही दिन 14 जनवरी को आता है। विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की उदात्त भावना केवल भारतीय संस्कृति की विशेषता है और इस नाते हर पर्व की तरह यह पर्व भी हर्षोल्लास के साथ देश में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्नता में एकता लिए हमारे देश में इस पर्व में भी विविधता है। उत्तर भारत में लोहड़ी, मध्य भारत में संक्रांति, असम में बिहू, दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। बहुत से क्षेत्रों में इसे उत्तरायण, खिचड़ी, माघी आदि के नामों से भी जाना जाता है। भारत के साथ नेपाल में भी इस पर्व को नई फसलों के आगमन की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन किसान नई फसल से बने भोग ईश्वर को चढ़ाकर उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।