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- संसद की गंभीरता कायम...

आदित्य चोपड़ा| भारत की संसदीय प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह आंख मीच कर ब्रिटिश संसदीय प्रणाली की नकल नहीं है बल्कि लोकतन्त्र की शुचिता और पवित्रता को सुनिश्चित करने के लिए हमारे पुरखों ने ब्रिटिश संसद का उदाहरण सामने रखते हुए ऐसे संशोधन किये जिससे भारत की बहुदलीय राजनैतिक प्रणाली हर चुनौती का किसी भी समय मुकाबला कर सके। संसद की स्वतन्त्र सत्ता कायम रखने के लिए ब्रिटिश काल की सेंट्रल एसेम्बली के अध्यक्ष रहे स्व. जी.वी. मावलंकर ने लोकसभा अध्यक्ष को किसी भी सरकार के दबाव से मुक्त रखने के लिए ही उसके पृथक सचिवालय का खाका खींचा और राज्यसभा के सभापति के पद पर हमारे संविधान निर्माताओं ने सीधे उपराष्ट्रपति को बैठाने की व्यवस्था की। इसका मन्तव्य एक ही था कि हर हाल में संसद के भीतर पहुंचने वाले हर पार्टी के सदस्य की स्वतन्त्रता और निर्भीकता कायम रहे, जिसके लिए उसे विशेषाधिकारों से लैस किया गया। संसद के दोनों सदनों के भीतर प्रधानमन्त्री से लेकर उनके मन्त्रिमंडल के विभिन्न मन्त्रियों को जवाबदेह बनाने के लिए प्रश्न पूछने के दिन नियत किये गये। इतना ही नहीं सरकार के मन्त्रियों से लेकर साधारण सदस्यों के सदन के भीतर आचरण की तसदीक करने के अधिकार सीधे अध्यक्ष के सुपुर्द किये गये।