सम्पादकीय

साख बनी रहे

Subhi
30 Dec 2022 2:10 AM GMT
साख बनी रहे
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भारतीय कंपनी का बनाया कफ सिरप पीने से उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत की खबर वाकई चिंताजनक है। हालांकि उज्बेकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय का बयान भी बताता है कि नोएडा स्थित कंपनी का यह कफ सिरप बच्चों को डॉक्टर की सलाह के बगैर दिया गया था, जिसका मतलब यह है कि दवा लेने में आवश्यक सावधानी नहीं बरती गई थी।

नवभारत टाइम्स: एक भारतीय कंपनी का बनाया कफ सिरप पीने से उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत की खबर वाकई चिंताजनक है। हालांकि उज्बेकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय का बयान भी बताता है कि नोएडा स्थित कंपनी का यह कफ सिरप बच्चों को डॉक्टर की सलाह के बगैर दिया गया था, जिसका मतलब यह है कि दवा लेने में आवश्यक सावधानी नहीं बरती गई थी। दवा की मात्रा भी निर्धारित सीमा से ज्यादा दे दी गई थी। लेकिन इसके बावजूद कफ सिरप पीने से एक ही इलाके में 21 बच्चों की हालत बिगड़ जाना और उनमें से 18 बच्चों की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो जाना मामूली बात नहीं है। अपने तईं भारत सरकार ने भी इसे गंभीरता से लिया है। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) और उत्तर प्रदेश ड्रग्स कंट्रोलिंग एंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी संयुक्त रूप से इसकी जांच कर रहे हैं। जांच पूरी होने तक के लिए कंपनी में उत्पादन पर भी रोक लगा दी गई है।

ध्यान रहे, तीन महीने के अंदर यह दूसरा ऐसा मामला है, जिसमें किसी भारतीय कंपनी की दवाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद खड़ा हुआ है। इससे पहले अक्टूबर में अफ्रीकी देश गांबिया ने आरोप लगाया था कि भारत में बना कफ सिरप पीने से वहां 69 बच्चों की मौत हो गई। हालांकि उस मामले में भारत सरकार ने जो कमिटी बनाई थी, उसने पूरी जांच पड़ताल के बाद दवा को क्लीन चिट दी थी। लेकिन उसी मामले में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने दवा के अवयवों के अनुपात पर सवाल उठाया था। जाहिर है, ऐसे मामलों में विशेषज्ञों के बीच भी अक्सर मतभेद हो जाते हैं और किसी एक सर्वमान्य निष्कर्ष पर पहुंचना हमेशा संभव नहीं होता। लेकिन इसमें दो राय नहीं है कि चाहे किसी नतीजे पर पहुंचें या न पहुंचें, ऐसी बहसें संबंधित ब्रैंड की साख को नुकसान पहुंचा ही देती हैं। फार्मा इंडस्ट्री में भारत की साख बहुत अच्छी है। भारतीय फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री मात्रा के हिसाब से दुनिया में तीसरे नंबर पर आती है। दुनिया भर में दवाओं के कुल निर्यात का 20 फीसदी भारत से होता है। इतना ही नहीं जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रोवाइडर है भारत। जाहिर है, हम किसी तरह का रिस्क लेने की स्थिति में नहीं हैं। कंपनी का क्या स्पष्टीकरण है, हमारी अपनी जांच क्या कहती है और अंतिम तौर पर क्या सही है, इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। अगर ऐसे विवाद होंगे तो दवा कारोबार में भारत का नाम बिगड़ेगा। इसीलिए मामले की बारीकियां अपनी जगह हैं। वे भी महत्वपूर्ण हैं। लेकिन फिलहाल सरकार को यह देखना होगा कि आखिर इस तरह की घटनाएं क्यों हो रही हैं। उसे हर हाल में भारतीय दवा उद्योग की साख बरकरार रखनी होगी।



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