सम्पादकीय

छात्रों के भी हैं महात्मा गांधी

Rani Sahu
3 Oct 2023 6:54 PM GMT
छात्रों के भी हैं महात्मा गांधी
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हर बार की तरह इस बार भी गांधी जयंती पर राष्ट्रपिता को याद किया गया। मैंने शिक्षा से जुड़े अपने 35 साल के तजुर्बे से देखा कि हमारे कुछ छात्र और कुछ युवा और समाज के अनेक लोग राष्ट्रपिता की विचारधारा की जड़ से अनभिज्ञ हैं। देश में नव उदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद भारत जिस तेजी से भूमंडलीकरण की राह पर दौड़ रहा है, उससे युवा वर्ग गांधी के सपनों के भारत से न केवल दूर होता जा रहा है, बल्कि वह पश्चिम की भौतिकवादी चकाचौंध को आत्मसात करने में लगा है। हालांकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आमद से पश्चिमी देशों से जो आवागमन बढ़ा उसने कुछ सालों में ही युवा पीढ़ी को गांधी के विषय में सोचने पर मजबूर कर दिया। अधिक पैसा कमाने की ललक से तमाम तरह डिग्रियां लेकर दूसरे देशों में गए युवाओं को गांधीवाद के वैश्विक स्वरूप ने उनकी सोच को बदला है। कम ही सही, लेकिन कई युवाओं की ऐसी कहानियां हमारे लिए उदाहरण हो सकती हैं जो विदेश की आरामतलब और अधिक आय वाली नौकरियों का परित्याग करके स्वदेश लौट आए। और न सिर्फ वापस आए, बल्कि देश के कई क्षेत्रों में अविस्मरणीय काम किए हैं। सोचिए, क्या भारत का स्वतंत्रता संघर्ष सिर्फ अधेड़ और बूढ़े आदमियों द्वारा लड़ा गया था? हरगिज नहीं, क्योंकि अगर ऐसा होता तो वह सफलता नहीं पा सकता था। गांधी जी युवाओं के लिए सबसे बड़े नेतृत्वकर्ता थे। उनका युवाओं के प्रति झुकाव उन दिनों से साफ दिखता है जब वे दक्षिण अफ्रीका में रहते थे। हमें समझना होगा कि गांधी के केवल विचार ही नहीं उनके कर्म भी युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रहे हैं। भारत आने से पहले जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे तो वहां की सरकार ने भारतीय रीति-रिवाज से हुए विवाहों की वैधता पर सवाल खड़ा किया और उन विवाहों को मानने से इनकार कर दिया।
इससे प्रभावित होने वालों में अधिकांश रूप से युवा ही थे। ऐसे युवाओं को वहां की सरकार ने नौकरियों से निकालना शुरू कर दिया। उस समय गांधी जी एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो उनके साथ खड़े हुए। उन्होंने युवाओं को संगठित और प्रोत्साहित किया और एक बड़ा आंदोलन छेड़ा। बेरोजगार हो चुके युवाओं के लिए फीमिक्स आश्रम बनाया और वहां पर लघु उद्योग चलाने लगे। यह एक अद्भुत प्रयोग था जिसके लिए भारत के लोगों ने भी अपनी सहायता भेजी। तब के उद्योगपति रतन टाटा, कांग्रेस और हैदराबाद के निजाम की दी हुई सहायता राशि लेकर गोपालकृष्ण गोखले दक्षिण अफ्रीका गए। गांधी जब 1901 में भारत आए, उस समय कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में था। आमतौर पर कांग्रेस के अधिवेशनों में वकीलों की भागीदारी रहती थी परन्तु कलकत्ता में काफी संख्या में युवाओं ने भागीदारी की। माना जाता है कि गांधी के आने से युवाओं में इसका प्रभाव पड़ा। उस अधिवेशन में गांधी जी ने यह कहा कि कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता और अपना काम करने में किसी भी प्रकार की शर्म नहीं होनी चाहिए। उन्होंने वहां बने शौचालयों को खुद साफ करके इसका संदेश भी दिया। स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए गांधी जी ने जब असहयोग आंदोलन का नारा दिया तो उन्होंने युवाओं को सरकारी कालेज, स्कूल छोडऩे का आह्वान किया और स्वदेशी विद्यालयों में पढऩे को कहा। फलस्वरूप काशी विद्यापीठ सहित कई शैक्षिक संस्थानों की स्थापना हुई। देश में इससे एक स्वदेशी शिक्षा प्रणाली का आकर्षण पैदा हुआ। उन युवाओं को चरखे दिए गए जो असहयोग आंदोलन से बेरोजगार हो गए थे। जेल से आने के बाद गांधी जी ने लघु उद्योगों को यहां भी बढ़ाने पर जोर दिया और देश में स्वरोजगार का विस्तार हुआ। गांधी जी ने जिस मौलिक शिक्षा की जमीन तैयार की वह युवाओं खास तौर पर छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है। शिक्षा के लिए महात्मा गांधी जी की योजना को वर्धा शिक्षा योजना के नाम से जानते हैं जिसको डा. जाकिर हुसैन ने गांधी जी के निर्देश पर तैयार किया था।
उस योजना के तीन मूलभूत पक्ष थे- हस्त निर्मित उत्पादन कार्य, मातृ भाषा में सात वर्ष तक अनिवार्य शिक्षा और सुलेखन। हमने इन योजनाओं का त्याग किया। इसका विश्लेषण किया जाना चाहिए। कुछ साल पहले हुए सर्वे में यह पता चला कि देश के 76 फीसदी युवा अपना आदर्श गांधी को मानते हैं। हो सकता है इस आंकड़े में ऐसे युवा भी होंगे जो आमतौर पर गांधी को अच्छा मानते हुए अपना आदर्श बता गए हों। लेकिन अभी आईबीएन-सीएनएन के एक देशव्यापी ताजा सर्वे में फिर यह सामने आया कि देश के अधिकांश युवा गांधी को अपना रोल मॉडल मान रहे हैं। यह सुखद आश्चर्य की बात है कि जहां एक तरफ बीयर और पब संस्कृति वाली वर्तमान पीढ़ी पाश्चिमी जीवन शैली को आत्मसात कर रही है वहीं दूसरी तरफ वह गांधी को आदर्श बताने में नहीं हिचकती। गंभीर सवाल यही है कि गांधी को अपना रोल मॉडल बताने वाली युवा पीढ़ी गांधी के रास्ते पर चलने को तैयार क्यों नहीं। क्यों वह हिंसा, नशाखोरी और पैसे के पीछे भाग रही है। यह सवाल उनसे ही पूछना होगा जो अब तक गांधी को नकारती आए हैं।
गांधी ने जिस हिन्द स्वराज का खाका दिया था, उस पर हमारे नेतृत्वकर्ता हमेशा चलने से कतराते रहे। गांधी जी लघु उद्योग और स्वरोजगार से देश के हर व्यक्ति को काम देना चाहते थे। जबकि हमारी वर्तमान आर्थिक नीतियां युवाओं को बेरोजगारी के दलदल में धकेलती रही हैं। आजादी के बाद जो लघु उद्योग फैला वह अंतिम सांसें गिन रहा है। बड़े पूंजीपति घरानों के चंगुल में तो देश बहुत पहले जकड़ चुका था। अब विदेशी पूंजी के हवाले हमारे खुदरा और घरेलू रोजगारों को भी सौंपा जा रहा है। कुल मिलाकर हम ऐसी अर्थव्यवस्था के हवाले कर दिए गए हैं जिसे गांधी जी गरीब पैदा करने वाला बताते थे। बावजूद इस अनर्थ अर्थतंत्र में गांधी जी ही एकमात्र विचार हैं जिन्हें अपनाकर देश और समाज को बचाया जा सकता है। उनके जीवन में कुछ भी व्यक्तिगत नहीं था, उनका पूरा जीवन एक संयुक्त परिवार था। जिसमें उनके लिए भी जगह थी जो उनसे घोर असहमत थे। गांधीवादी विचारों की पूंजी पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है। गांधी जी के विचारों पर राजनीतिक बहस और इनके विचारों को दूसरे स्वतन्त्रता सेनानियों के विचारों के सामने बौना साबित करने की कवायद देश हित में नहीं है। पूरी दुनिया आज भी उनके विचारों का लोहा मानती है और संकट के पल में प्रेरणा और आत्म विश्वास ग्रहण करती है। अगर महात्मा गांधी का दर्शन युवाओं और छात्रों के लिए है तो शिक्षा प्रणाली को यह उन्हें बताना होगा याद रहे गांधी जी के विचार सभी के लिए मार्गदर्शक हैं और तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों से बहुत ऊपर हैं। उनके विचारों को कभी भी बौना साबित नहीं किया जा सकता है।
डा. वरिंद्र भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]
By: divyahimachal
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