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- महाराष्ट्र की बिसात
Written by जनसत्ता; जबसे अलग-अलग पार्टी और अलग-अलग विचारधाराओं की 'अघाड़ी' सरकार उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में बनी है, तबसे ही वह कभी अगाड़ी तो कभी पिछाड़ी होती जा रही है। कभी उनके मंत्री नाराज हैं तो कभी उनके विधायक। भले ही सरकार शिवसेना के नेतृत्व में चल रही है, पर खींचतान तो कांग्रेस और एनसीपी दोनों कर रही हैं। कांग्रेस और एनसीपी की विचारधारा शिवसेना से जरा भी मेल नहीं खा रही है।
इधर भाजपा भी उसमें सेंध लगाने में पीछे नहीं है। एक बार भाजपा और शिवसेना की विचारधारा फिर भी मेल खाती और अगर वो सरकार बना लेती तो शायद पूरे पांच साल चला लेती। शुरू से ही भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कहते आए हैं कि तीन अलग-अलग विचारों की सरकार सुचारु रूप से नहीं चल पाएगी। आज वैसा ही हो रहा है। कोई अलग बयान दे रहा है तो कोई अलग। इसका नतीजा एमएलसी चुनाव में क्रास वोटिंग के रूप में देखने को मिला। राज्यसभा चुनाव में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
अब नया नाटक यह हुआ कि शिवसेना के कद्दवार नेता और मुख्यमंत्री के नजदीकी एकनाथ शिंदे, जो राज्यसभा चुनावों से ही नाराज चल रहे थे, अपने समर्थक विधायकों सहित सरकार से आंख चुरा कर सूरत पहुंच गए। इससे दिल्ली में हलचल पैदा हो गई। राजनीतिक तूफान उठा है, तो वह कुछ तो बदलाव जरूर ला सकता है।
एक वक्त था जब अफगानिस्तान अखंड भारत का हिस्सा हुआ करता था। उसकी पहचान यहां की हिंदू, सिख और बौद्ध नागरिकों से होती थी। पर अब अफगानिस्तान की पहचान आतंकवाद से हो रही है। हाल ही में काबुल के गुरुद्वारे पर हुए हमले ने यह भी साफ कर दिया है कि आज भी अफगानिस्तान आतंकवाद का अड्डा है। तालिबानी कब्जे के दस महीने बाद भी आतंकी हमले जारी हैं।
तालिबान के निशाने पर अल्पसंख्यक और औरतें ही रहती हैं। 1992 में अफगानिस्तान में करीब बीस लाख से ज्यादा हिंदू और सिख परिवार थे, जो अब नाममात्र बचे हैं। अफगानिस्तान में अल-कायदा, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद जैसे अनेक आतंकी संगठन सक्रिय हैं। वैश्विक संगठन इसके खिलाफ कोई कार्रवाई आज तक नहीं कर पाया।
अफगानिस्तान में हिंदुओं और सिखों पर धर्मपरिवर्तन पर दबाव बढ़ता जा रहा है। गुरुद्वारों पर हमले जारी हैं। ताजा हमले की जिम्मेदारी भी इस्लामिक स्टेट ने ली है। अब भारत सरकार को वहां के अल्पसंख्यकों को निकालने के लिए कदम उठाना चाहिए।
अपनी बात कहना और विरोध करने में कोई बुराई नहीं है, किन्तु विरोध का स्वरूप हिंसा, आगजनी और शासकीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाना नहीं होना चाहिए। अनुशासन और संयम न केवल सेना, बल्कि संपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक है। सेना में भर्ती होने का उद्देश्य सिर्फ सरकारी नौकरी प्राप्त करना न होकर देशसेवा सर्वोपरि होना चाहिए। राजनीति से प्रेरित आंदोलनों में सहभागी बनकर युवाशक्ति अपना स्वयं का नुकसान करती है। सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने से ही लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।