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नवभारत टाइम्स: एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले की अगुवाई में महा विकास आघाड़ी में शामिल दलों (एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना) के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर कहा कि कर्नाटक और महाराष्ट्र के सीमावर्ती जिले बेलगावी की घटनाओं को देखते हुए केंद्र तत्काल दखल दे। पिछले दिनों उस इलाके से महाराष्ट्र के वाहनों पर पथराव और तोड़फोड़ की खबरें आईं, जिससे महाराष्ट्र में खास तौर पर चिंता है। दरअसल, दोनों राज्यों के बीच सीमा पर स्थित कुछ गांवों को लेकर विवाद तभी से है, जब ये दोनों राज्य अस्तित्व में भी नहीं आए थे।
1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित होने के वक्त ही ये मतभेद उभर आए थे। तब से अलग-अलग स्तरों पर इसे सुलझाने की कोशिशें चलती रही हैं, लेकिन उनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। इस बीच कर्नाटक ने 2012 में बेलगावी में विधानसभा भवन का उद्घाटन कर दिया। इसके बाद से वहां विधानसभा का शीतकालीन सत्र होने लगा। लिहाजा हर साल ठंड में किसी न किसी रूप में यह मसला गरमा जाता है। इस बार भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के इस बयान ने सबका ध्यान खींचा कि महाराष्ट्र की सीमावर्ती जट तहसील की पंचायतों ने प्रस्ताव पारित कर कर्नाटक में मिलने की इच्छा जताई है। तत्काल महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बयान जारी कर इसका खंडन किया और कहा कि महाराष्ट्र का एक भी गांव कर्नाटक में नहीं जाएगा। मगर यह बयान राज्य के राजनीतिक तापमान को कम करने में सफल नहीं हो सका।
इसमें दो राय नहीं कि सीमा के दोनों तरफ भाषा से जुड़े इस विवाद से लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। यही वजह है कि समय-समय पर राजनेता इसका इस्तेमाल करने में नहीं हिचकते। इस बार भी संयोग कहिए या कुछ और कि मामला तब भड़का है, जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव करीब आ गए हैं। महाराष्ट्र में तत्काल विधानसभा चुनाव भले ही न हों, लेकिन जिस तरह से सत्तारूढ़ शिवसेना में दोफाड़ होने के बाद नई सरकार बनी, उसके बाद दोनों धड़ों में खुद को असली शिवसेना दिखाने की होड़ लगी हुई है। महाराष्ट्र से जुड़े सवालों पर खुद को ज्यादा निष्ठावान और दूसरे को संदिग्ध बताना भी इस होड़ का हिस्सा है। ऐसे माहौल में स्वाभाविक ही यह विवाद ज्यादा संवेदनशील हो जाता है। मगर इससे समस्या को सुलझाने में कोई मदद नहीं मिलती। निश्चित रूप से यह एक जटिल मसला है।
इसका तत्काल कोई सर्वमान्य हल निकलना मुश्किल है। लेकिन जब भी निकलेगा शांति और सौहार्द के माहौल में उदारता और लचीलेपन के साथ ही निकलेगा। इसलिए पहली जरूरत यह है कि राजनीति अपने संकीर्ण स्वार्थ के लिए इसका इस्तेमाल बंद कर दे। राहत की बात है कि केंद्र सहित दोनों राज्यों में बीजेपी सत्ता में है। इसलिए तालमेल बनाए रखना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। विपक्ष को आश्वस्त करके शांति और व्यवस्था बनाए रखते हुए ही यह सोचा जा सकता है कि दीर्घकालिक हल का सर्वमान्य फॉर्म्युला कैसे निकाला जाए।