सम्पादकीय

महंत नरेंद्र गिरि ने हत्या की या आत्महत्या? 11 सवालों के जवाब तलाशते ही सबकुछ होगा साफ

Rani Sahu
21 Sep 2021 4:05 PM GMT
महंत नरेंद्र गिरि ने हत्या की या आत्महत्या? 11 सवालों के जवाब तलाशते ही सबकुछ होगा साफ
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आत्महत्या के लिए जिस शिष्य आनंद गिरि पर सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरि ने जिम्मेदार बताया है

अभिषेक कुमार नीलमणि। आत्महत्या के लिए जिस शिष्य आनंद गिरि पर सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरि ने जिम्मेदार बताया है, वहीं आनंद गिरि कह रहे हैं कि अगर निष्पक्ष जांच होगी तो साफ मालूम पड़ेगा कि गुरुजी ने आत्महत्या नहीं की है, बल्कि उनकी हत्या हुई है. बाघंबरी मठ के महंत नरेंद्र गिरि की मौत के पीछे कई सवाल हैं. अगर इन सवालों को सुलझा लिया जाए, तो निश्चित ही मर्डर मिस्ट्री से पर्दा उठ जाएगा.

सवाल नंबर 1: महंत नरेंद्र गिरि को लिखना नहीं आता था, तो फिर उन्होंने सुसाइड नोट कैसे लिखा?
कई शिष्य कह रहे हैं महंत गिरि को लिखना-पढ़ना नहीं आता था. अगर इस बात में रत्ती भर की भी सच्चाई है, तो सबसे बड़ा ताज्जुब और सवाल यही है कि फिर कैसे उन्होंने 11 पन्नों का सुसाइड लेटर लिख डाला. 11 पन्नों का सुसाइड नोट एक दिन में लिखना नामुमकिन है. महंत नरेंद्र गिरि ने भी कहा कि उन्होंने 13 सितंबर को भी जान देने की सोची थी. मगर हिम्मत नहीं जुटा पाए. सुसाइड नोट में भी कई जगह 13 सितंबर की तारीख को काटकर 20 सितंबर किया गया है. मान भी लिया जाए कि सुसाइड नोट महंत नरेंद्र गिरि ने ही लिखा है, तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई शख्स लगातार कई दिनों तक इस मोड में रहे कि उसे आत्महत्या करनी है. रिटायर्ड आईपीएस शारदा प्रसाद का कहना है कि कोई शख्स एक ही मन:स्थिति में कई दिनों तक रहे, ये संभव नहीं है.
सवाल नंबर 2: बदनामी ना हो इसलिए मौत को गले लगाया, फिर उसी बदनामी का सुसाइड नोट में जिक्र क्यों किया?
महंत नरेंद्र गिरि को अपनी पद प्रतिष्ठा बचाकर रखनी थी. लिहाजा वो नहीं चाहते थे कि बेवजह कोई बदनाम करे. किसी लड़की या महिला से साधु संतों को जोड़ना, सबसे बड़ी बदनामी मानी जाती है. मगर नरेंद्र गिरि को जानने वाले बताते हैं कि वो कमजोर व्यक्तित्व वाले इंसान नहीं थे. फैसले दिलेरी के साथ लेते थे इसीलिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के दूसरी बार अध्यक्ष चुने गए. जो व्यक्ति अपनी मौत से एक रोज पहले प्रदेश के डिप्टी सीएम के साथ घंटों वक्त बिता रहा हो. पूजा पाठ कर रहा हो. वो महंत 24 घंटे के भीतर आत्महत्या कर ले और सुसाइड नोट में उस घटना का जिक्र करे, जिसे लेकर फांसी से लटकना उचित समझा. आसानी से यकीन करना मुश्किल है.
सवाल नंबर 3: पुलिस के पहुंचने से पहले फांसी की रस्सी को काटकर नरेंद्र गिरि के शव को क्यों उतारा गया?
शिष्यों ने जैसे ही दरवाजा तोड़ा, बॉडी पंखे से झूलती हुई मिली. महंत के शरीर में कोई हलचल नहीं थी. दरवाजा तोड़ने की नौबत से पहले ही पुलिस को क्यों नहीं बुलाया गया क्यों सिर्फ दो तीन शिष्यों ने मिलकर ही दरवाजे तो तोड़ा और ये भी साफ है कि उनमें से एक शिष्य वो हैं जिन्होंने महंत को एक दिन पहले ही रस्सी खरीदकर दी थी.
सवाल नंबर 4: क्या महंत नरेंद्र गिरि की बॉडी का इनक्वेस्ट किया गया था?
पुलिसिया भाषा में ये एक टेक्निकल टर्म है. जैसे ही कोई सुसाइड की खबर मिलती है, पुलिस सबसे पहले मजिस्ट्रेट को खबर करती है. मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में बॉडी का मुआयना किया जाता है. बॉडी को उलट पलट कर देखा जाता है. हाथ-पांव की स्थिति की परख की जाती है. ये समझा जाता है कि पैर के अंगूठे क्या नीचे की ओर प्वाइंटेड थे या नहीं क्योंकि फांसी से लटककर जान देने पर ऐसा देखा गया है कि पैरों के अंगूठे नीचे की ओर प्वाइंटेड हो जाते हैं, पर यहां तो पुलिस के पहुंचने से पहले ही बाघंबरी गद्दी के भीतर सैकड़ों श्रद्धालु पहुंच जाते हैं. तो क्या इन्क्वेस्ट किया गया है. इसपर सवाल खड़े होते हैं.
सवाल नंबर 5: नरेंद्र गिरि ने सुसाइड नोट को वसीयतनामे की तरह ही क्यों लिखा, क्या किसी का दबाव था?
सबसे बड़ा और अहम सवाल, अगर मरना ही था तो फिर वसीयत लिखकर क्यों जा रहे थे. वसीयत एक नाम जो बिल्कुल गुमनाम था, अचानक से सामने आता है बलबीर गिरि. सबकुछ बलबीर गिरि को दिया जाए. बलबीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाया जाए. बलबीर गिरि ही मठ के संचालक होंगे. सभी शिष्यों से बलबीर गिरि को सम्मान देने की बात कही जाए. इंसान के दिमाग की नब्ज को पढ़ने वालों का मानना है कि ये बिल्कुल भी संभव नहीं है कि कोई शख्स जो अगले पल मौत को गले लगाने वाला हो, वो उत्तराधिकारी चुने. दुकानों का बंटवारा करे. जमीन सबके नाम लिखे और कुछ लोगों से पैसे भी दान मांगे. मतलब कुछ तो है, जो सामने आना बाकी है.
सवाल नंबर 6: नरेंद्र गिरि की पहुंच सरकार तक डायरेक्ट थी, अगर दबाव में थे तो सूबे के मुख्यमंत्री से बात कर सकते थे?
उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने TV9 भारतवर्ष से दो बड़ी बातें कही. पहली- 15 सितंबर को जब वो महंत नरेंद्र गिरि से मिले थे तो किसी भी तरीके का कोई दबाव उनके ऊपर नजर नहीं आ रहा था. दूसरी बड़ी बात जो उन्होंने कही- जो गुनहगार होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा. जिन महंत की पहुंच सीधे मुख्यमंत्री से हो, प्रधानमंत्री से हो, सियासत के हर दिग्गज से हो, भला उनपर ऐसा दबाव कैसे आ सकता है कि वो जान देने जैसा कदम उठा लेंगे. क्यों नहीं नरेंद्र गिरि अपने ऊपर के दबाव का जिक्र सीधे सरकार से किए?
सवाल नंबर 7: दावा है कि वीडियो के जरिए महंत को ब्लैकमेल किया जा रहा था, तो उन्होंने प्रशासन की मदद क्यों नहीं ली?
सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरि ने आशंका जताई है कि आनंद गिरि उन्हें बदनाम करने की कोशिश करेंगे. किसी लड़की या महिला के साथ उनकी तस्वीर को सामने लाकर अपमानित करने की कोशिश करेंगे. जब नरेंद्र गिरि जानते थे कि उन्हें बदनाम ही किया जाएगा, वो भी जानबूझकर तो फिर एक न एक दिन इस साजिश से पर्दा जरूर उठता. जो महंत बिना डरे हर तूफान से लड़ने का माद्दा रखते हो, जिनके बारे में ये कहा जाता है कि वो बिल्कुल अलग राह पर चलने वाले संत थे. फिर ऐसे संत को किसी की साजिश से कैसा डर. आखिर क्यों नहीं उन्होंने पहले ही प्रशासन या सरकार की मदद से लड़की, वीडियो या फिर फोटो के बारे में जिक्र किया.
सवाल नंबर 8: 25 साल से जो दो रसोइये साये जैसे साथ थे, वो कल से ही कहां गायब हैं?
हमारे संवाददाता अभिषेक उपाध्याय जैसे ही प्रयागराज के बाघंबरी मठ पहुंचे. रसोइये बदरी प्रसाद से बातचीत में उन्हें जो खबर मिली वो सबसे चौंकाने वाली थी. जो दो शिष्य, बीते 25 साल से महंत नरेंद्र गिरि के साथ थे. वहीं दोनों मौत से पहले और मौत के बाद तक गायब हैं. महंत नरेंद्र के उठने बैठने सोने खाने पीने सब का ख्याल यहीं दोनों शिष्य करते थे. अब सवाल है कि ये कहां गायब हैं. और क्यों. जो 25 साल से साये की तरह साथ रहें. वही मौत वाले दिन कहां गायब हो गए.
सवाल नंबर 9: गोशाला को पेट्रोल पंप बनाने को लेकर क्या आनंद और नरेंद्र गिरि में विवाद था?
आनंद गिरि को प्रयागराज के बाघंबरी मठ के गोशाला को पेट्रोल पंप बनाना था. पहले महंत नरेंद्र गिरि इसके लिए तैयार थे. मगर बाद में इनकार कर दिया. इससे आनंद गिरि नाराज हो गए. संवाददाता अभिषेक उपाध्याय ने नरेंद्र गिरि के सेवादार मंगला प्रसाद से बात की, तो उन्होंने पूरी तफ्तीश से बताया कि कैसे आनंद गिरि और महंत नरेंद्र गिरि का आपसी तनाव बढ़ चुका था.
सवाल नंबर 10: जो महंत इतना बड़ा हो, जिसका कद इतना बड़ा हो, वो दिन के वक्त में दो घंटे तक अकेला कैसे रह गया?
महंत नरेंद्र गिरि संतों में बहुत बड़ा नाम थे. उनका कद और पद दोनों बहुत बड़ा था. सियासत से लेकर संत समाज तक में उनकी तूती बोलती थी. उनके इर्द गिर्द हमेशा भक्तों और शिष्यों का जमावड़ा लगा रहता था. जानने वाले कहते हैं कि बाघंबरी मठ के अंदर ऐसा कम वक्त ही था जब वो अकेले रहते हो. ऐसे में महंत का घंटों अकेले रहना, खटकता है. पूर्व आईपीएस शारदा प्रसाद ने भी यही सवाल TV9 भारतवर्ष के साथ साझा किए.
सवाल नंबर 11: क्या महंत नरेंद्र गिरि ने अपनी हैंड राइटिंग में ही सुसाइड नोट लिखा है?
सबसे अंतिम लेकिन सबसे अहम सवाल. कैसे कोई पूरे सात दिन सुसाइड करने की सोच सकता है. कैसे कोई 200 घंटे लगातार एक ही मन:स्थिति में रह सकता है? महंत नरेंद्र गिरि की मौत की जांच 10 सदस्यीय एसआईटी की टीम कर रही है. जांच की शुरुआत इसी एंगल पर होगी कि क्या हैंड राइटिंग नरेंद्र गिरि की है या नहीं. सवाल के जवाब के साथ ही जांच कि दिशा भी तय हो जाएगी.


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