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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी जिला प्रशासन को इस मामले में तत्परता से कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं
अमूमन 'शांति का टापू' रहे मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के सुराना गांव के अल्पसंख्यक हिंदुओं द्वारा बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा कथित रूप से प्रताड़ित किए जाने से परेशान होकर अपने घरों को बेचने के नोटिस और पलायन की चेतावनी कई सवाल खड़े करती है। इस घटना के सामने आने के बाद राज्य के गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने चेतावनी दी कि 'सुराना' को 'कैराना' किसी कीमत पर नहीं बनने दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी जिला प्रशासन को इस मामले में तत्परता से कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में प्रश्न उठ रहा है कि 'सुराना' को 'कैराना' बनाने की साजिश करने वाले कौन लोग हैं? ऐसा करने से किसका फायदा है? क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक चाल है या फिर पड़ोसी उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कोई नया दांव खेला गया है?
इसमें शक नहीं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तीन सतत् कार्यकालों में मप्र में साम्प्रदायिक हिंसा या दंगों की घटनाएं नगण्य हुईं। इक्का-दुक्का हुईं भी तो उन्हें सख्ती से नियंत्रित किया गया। इस मामले में शिवराज सरकार की 'जीरो टालरेंस' नीति रही। लेकिन शिवराज के बतौर मुख्यमंत्री चौथे कार्यकाल में साम्प्रदायिक हिंसा को लेकर वैसी प्रतिबद्धता नहीं दिख रही है, जैसी कि पहले थी।
मप्र और सांप्रदायिक तनाव
इसकी एक वजह यह है कि वर्ष 2020 और 2021 में राज्य में साम्प्रदायिक विवाद की आधा दर्जन घटनाएं हुईं। इनमें प्रशासन ने कार्रवाई भी की, कुछ आरोपी गिरफ्तार हुए, कई मामलों में आरोपियों के घर भी ढहा दिए गए। ये आरोपी ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के ही थे।
साम्प्रदायिक हिंसा की ज्यादातर घटनाएं प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र मालवा-निमाड़ क्षेत्र में और कतिपय बुंदेलखंड इलाके में हुई। मसलन पिछले साल अक्टूबर में निमाड़ के बड़वानी जिले में दो फिरकाई विवाद की दो घटनाएं हुईं। इनमें से सेंधवा में तो साम्प्रदायिक दंगा हो गया और प्रशासन ने शहर में कर्फ्यू लगा दिया।
खुद बड़वानी में पाटीदार समाज की एक युवती और अल्पसंख्यक समुदाय के युवक के विवाह को लेकर तनाव फैला। मालवी संस्कृति के केन्द्र इंदौर में एक मुस्लिम चूड़ी बेचने वाले पर आतंकी होने के शक में भीड़ ने हमला किया तो मालवा के ही नीमच में एक दरगाह को अपवित्र करने का मामला प्रकाश में आया। पिछले ही साल राम मंदिर के लिए विहिप द्वारा आयोजित रैलियों ने कथित भड़काऊ नारों के बाद विवाद के भी चंद मामले हुए।
पीड़ितों का यह भी आरोप है कि मुसलमान गांव में बहुसंख्यक होने की वजह से उन्हें डरा धमका रहे हैं।
इस पृष्ठभूमि में रतलाम जिले के सुराना गांव की घटना वाकई चौंकाने वाली है। इस गांव के हिंदुओं ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर कहा कि उन्हें स्थानीय मुस्लिम समुदाय द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है। वे तीन में अपना घर, खेत, संपत्ति छोड़कर पलायन को तैयार हैं। ज्ञापन के दूसरे ही दिन जिला कलेक्टर ने गांव का दौरा किया।
उधर सरकार ने एसपी से मामले की पूरी रिपोर्ट मांगी। बताया जाता है कि सुराना गांव की कुल आबादी 2200 है। इसमें 60 फीसदी मुस्लिम व 40 फीसदी हिंदू हैं। यह गांव बिलपांक थाना क्षेत्र में आता है। ग्रामीणों में पिछले कुछ समय से तनाव है।
आखिर क्यों हो रहा है तनाव?
तनाव का मूल कारण क्या है, यह अभी सामने नहीं आया है, लेकिन गांव के कुछ हिंदुओं ने मीडिया से बातचीत में कहा कि गांव में हिंदू-मुसलमान कई पीढ़ियों से साथ रहते आ रहे हैं। लेकिन बीते दो-तीन साल से हिंदू युवाओं के साथ गाली-गलौज, मारपीट व धमकाने की घटनाएं बढ़ गई हैं। हिंदू युवाओं पर ही झूठी एफआइआर दर्ज हो रही है।
पीड़ितों का यह भी आरोप है कि मुसलमान गांव में बहुसंख्यक होने की वजह से उन्हें डरा धमका रहे हैं। पुलिस कार्रवाई के नाम पर दोनों पक्षों को बेवजह परेशान करती है। हालांकि जिले के एसपी गौरव तिवारी ने पिछले दिनों शांति समिति की बैठक लेकर दोनों वर्गों से चर्चा की थी। उनका दावा है कि गांव में स्थिति सामान्य है।
बावजूद इसके कुछ हिंदुओं ने अपने घरों के बाहर लिख दिया है कि 'मकान बेचना है'। ये तस्वीरें मीडिया में खूब वायरल हुईं। इसका आशय यही था कि गांव के हिंदुओं के पास अब और कोई विकल्प नहीं रह गया है। जिला प्रशासन के अनुसार आपसी विवाद के पीछे कुछ स्थानीय समस्याएं जैसे अतिक्रमण, नाली आदि भी हैं। जिन्हें हल किया जा रहा है।
यहां विचारणीय बात यह है कि अगर सुराना में पीढ़ियों से हिंदू-मुसलमान शांति से साथ रहते आए हैं तो फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि लोगों को गांव से पलायन की चेतावनी देनी पड़ी है।
संभव है कि कट्टरपंथी ताकतें अब गांव के युवाओं को बहका रही हों या असामाजिक तत्व अपने स्वार्थों के लिए साम्प्रदायिक तनाव हो हवा दे रहे हों। क्योंकि सुराना गांव का घटनाक्रम साम्प्रदायिक तनाव और हिंसा के दूसरे मामलों से काफी अलग और गंभीर है। इसकी तह में जाना जरूरी है।
अगर सुराना को सचमुच 'कैराना' बनाने की कोशिश है तो यह संजीदा बात है। याद रहे कि पांच साल पहले यूपी के कैराना गांव में इसी तरह से मुस्लिम दबंगों के कारण अल्पसंख्यक हिंदुओं को पलायन करने पर विवश होना पड़ा था। बाद में ऐसी ही घटना मेरठ में भी हुई थी। हालांकि तब स्थानीय लोगों का कहना था कि कुछ अपराधी तत्वों के कारण ऐसा हुआ है। कारण जो भी हो, इसका भरपूर राजनीतिक लाभ भाजपा को 2017 के विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनाव में मिला।
लेकिन मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश नहीं है। यहां मुसलमानों की संख्या भी इतनी नहीं है कि वो चुनावों को यूपी की तरह एक सीमा तक प्रभावित कर सकें। राज्य में बीच का डेढ़ साल का समय छोड़ दिया जाए तो डेढ़ दशक से भारतीय जनता पार्टी ही सत्ता में है। ऐसे में मध्यप्रदेश का फिरकाई माहौल बिगाड़ने की हिम्मत कौन कर सकता है?
इस बात की संभावना भी न्यून है कि 'सुराना' की घटना का यूपी के विधानसभा चुनाव में किसी दल को कोई खास फायदा मिल सकता है। क्योंकि मप्र और यूपी की राजनीति अलग-अलग है। यहां न तो वैसा जातिवाद है और न ही साम्प्रदायिकता।
केवल एक परसेप्शन बनाने के लिए इस घटना का इस्तेमाल किया जा रहा हो तो अलग बात है। जहां तक मप्र की बात है तो शिवराज सरकार को साम्प्रदायिक मामलों में अपनी 'जीरो टॉलरेंस' नीति पर चलना चाहिए। माहौल किसने बिगाड़ा, इस सवाल के साथ साथ यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि सुराना तो क्या, मप्र का कोई भी गांव 'कैराना' नहीं बनना चाहिए।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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