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पिछले हफ्ते मैं एक चाय बागान गया, जहां मेरी मुलाकात झोपड़ी के बाहर बैठी एक महिला से हुई
एन. रघुरामन । पिछले हफ्ते मैं एक चाय बागान गया, जहां मेरी मुलाकात झोपड़ी के बाहर बैठी एक महिला से हुई, जिसकी उम्र 35-40 वर्ष के बीच होगी। उसने मेरा ध्यान खींचा क्योंकि वह अपने रोते हुए बच्चे को गोद लेने से इनकार कर रही थी। वह कुछ उठाने, झुकने और कुछ मीटर चलने में भी संघर्ष कर रही थी। वह दिनभर चाय पत्ती तोड़ने के बाद घर लौटी थी। हालांकि उसकी ममता बच्चे को गोद लेना चाहती थी, लेकिन कमर दर्द ऐसा नहीं करने दे रहा था।
फिर वह सख्त जमीन पर लेट गई, ताकि बच्चा उसकी छाती पर खेल सके। कुछ देर खेलने के बाद महिला रोजमर्रा के कार्यों में लग गई। उसके द्वारा तोड़ी गई चायपत्ती हर सुबह कई लोगों का कप भरती है। वह पीठ पर 20 किग्रा तक पारंपरिक टोकरी लादकर पिछले 14 वर्षों से टी-एस्टेट में काम कर रही है। हाल ही में सरकारी ऑर्थोपीडिक कंसल्टेंट ने उसे बताया कि उसकी कमर को इतना नुकसान हो चुका है कि वह किसी बुजुर्ग महिला जैसी लग रही है।
भारत के चाय बागानों में हजारों लोग काम करते हैं और हर साल लाखों किलो चायपत्ती तोड़ते हैं। इससे मुझे काम की परिस्थितियों से जुड़े दो मामले याद आए, एक ब्रिटेन से और दूसरा मुंबई से। चार वर्ष पहले स्कॉटिश कोर्ट ऑफ सेशन, ब्रिटेन में दायर एक मुकदमे के बारे में पढ़ा था, जो केन्याई चाय बागानों के 1300 कामगारों ने जमीनों की मालिक बिट्रिश चाय कंपनियों के खिलाफ दर्ज किया था। कामगारों का दावा था कि बुरी कार्य परिस्थितियों के कारण उनकी रीढ़ें चोटिल हुई हैं, इसलिए वे मुआवजा चाहते हैं।
ब्रिटिश चाय कंपनियों के लिए यह मुकदमा असहज वास्तविकता थी क्योंकि उन्होंने गरीब देशों में ऐसी बुरी कार्य परिस्थितियां लागू की थीं, जो ब्रिटेन में स्वीकार भी नहीं की जातीं। ब्रिटेन के वकीलों को केन्याई मानव अधिकार संगठन ने केन्या बुलाया, जिसने कामगारों की रीढ़ों में चोट के प्रमाण पाए। मैंने मुकदमे की स्थिति जानने की कोशिश की तो पता चला कि कुछ कंपनियों ने जांच को प्रभावित करने के लिए केन्याई अदालत से संपर्क किया था।
यह फैसला सुनाया गया था कि विदेशी अदालत का आदेश लागू करना असंवैधानिक होगा, जिसके बाद अब मामला केन्या की उच्चतम अदालत में है। पिछले महीने 571 दावेदारों के दस्तावेज दर्ज हुए। मुझे बताया गया कि बाकी भी इस महीने के अंत तक दर्ज करेंगे। मुकदमा अभी जारी है, वही अब ब्रिटिश कंपनियां ऑटोमेशन के जरिए कार्य परिस्थितियां सुधार रही हैं।
मुंबई के गोवंदी, संतोष कल्सेकर, गोविंद चोरोटिया और विश्वजीत देबनाथ का 23 दिसंबर 2019 को एक हाउसिंग सोसायटी का सेप्टिक टैंक साफ करते हुए देहांत हो गया था। उनकी पत्नियां नीता कल्सेकर, विमला चोरोटिया और बानी देबनाथ की दो साल की कानूनी लड़ाई के बाद पिछले हफ्ते बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रत्येक को 10-10 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया।
ऐसा शायद पहली बार है जब महाराष्ट्र सरकार को जवाबदेह ठहराया गया। वकीलों ने कहा कि छुआछूत के अंत से संबंधित अनुच्छेद 17 के तहत हाथ से मैला ढोना गैरकानूनी है। जब किसी चीज पर प्रतिबंध होता है तो उसके उन्मूलन की जिम्मेदारी सरकार की होती है।
दशहरा का नौवां और दसवां दिन, मां सरस्वती और मां दुर्गा को समर्पित होता है, जिन्होंने रावण को मारने में भगवान राम की सहायता की। फंडा यह है कि हमें कलियुग में भी मां शक्ति (पढ़ें हमारे साहस) को सशक्त करने के लिए मां सरस्वती (पढ़ें ज्ञान) की जरूरत है ताकि राक्षसों (पढ़ें दूसरों की गरीबी का लाभ उठाने वाले) से लड़ सकें।
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