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वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति की बदौलत आज इंसान ने अनेक बीमारियों और महामारियों पर फतह हासिल कर ली
वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति की बदौलत आज इंसान ने अनेक बीमारियों और महामारियों पर फतह हासिल कर ली है, मगर एक ऐसा सूक्ष्म वायरस जिसका 1983 तक अस्तित्व ही नहीं था, ने आज भी दुनिया भर में एक ऐसा आतंक फैला रखा है जैसा कि मध्यकालीन 'प्लेग महामारी' ने फैलाया था. इस सूक्ष्म वायरस का नाम है- एचआईवी यानी ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस. एचआईवी किसी व्यक्ति के प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को विफल करके एक लाइलाज बीमारी एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम) का कारण बनता है.
एड्स की भयानक त्रासदी की मार से दुनिया भर में हर साल लाखों लोग असमय ही काल के ग्रास में समा जाते हैं. फिलहाल एचआईवी-एड्स को रोकने के लिए न तो हमारे पास कोई प्रभावी वैक्सीन (टीका) है और न ही एआरटी ट्रीटमेंट के अलावा कोई खास इलाज. लिहाजा, पिछले तकरीबन चालीस वर्षों से एचआईवी-एड्स प्रगतिशील मानव प्रजाति के सामने एक गंभीर चुनौती बना हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2020 में दुनिया भर में लगभग 37.7 मिलियन लोग एचआईवी-एड्स से संक्रमित थे.
अब तक इस बीमारी की रोकथाम के लिए वैज्ञानिक 30 से ज्यादा वैक्सीन ईजाद करने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उनमें से एक भी कामयाब नहीं रही है. इस असफलता के पीछे एक वजह यह है कि बीते 30-40 वर्षों में एचआईवी कई रूपों में उत्परिवर्तित (म्यूटेट) हो चुका है. लब्बोलुबाब यह है कि यह वायरस बेहद तेजी से रूप बदलता है, जबकि एक परंपरागत वैक्सीन वायरस के एक विशेष रूप पर ही प्रभावी हो सकता है. इसलिए वायरस के भेष बदलते ही वैक्सीन निष्प्रभावी हो जाता है.
कोरोना के बाद वैज्ञानिकों का निशाना एचआईवी पर!
हाल ही में मैसाचुसेट्स स्थित अमेरिकी फर्मास्यूटिकल और बायोटेक कंपनी मॉडर्ना को एचआईवी वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल को मंजूरी मिली है और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कंपनी इसी महीने पहले फेज का ट्रायल शुरू कर सकती है. मॉडर्ना की वैक्सीन में प्रयोग हो रहे प्लेटफॉर्म 'एम-आरएनए' (m-RNA) के चलते इसके सफल होने की ज्यादा संभावनाएं जताई जा रही हैं. गौरतलब है कि महामारी कोविड-19 के साथ एम-आरएनए (मैसेंजर आरएनए) वैक्सीन की सफलता के बाद एचआईवी के लिए किसी एम-आरएनए आधारित वैक्सीन का यह पहला क्लीनिकल ट्रायल होगा.
एचआईवी के परिवर्तनशील संरचनात्मक जटिलताओं की वजह से एक मुकम्मल एचआईवी वैक्सीन विकसित करने की राह आसान नहीं है. अगर वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल का पहला फेज सफल रहता है तो उसे दूसरे और तीसरे फेज से गुजरना होगा. इस दौरान यह देखा जाएगा कि दूसरे और तीसरे फेज के ट्रायल्स में यह वैक्सीन एचआईवी संक्रमण को रोकने में कितना कारगर रहा.
एम-आरएनए आधारित वैक्सीन में खास क्या हैं?
कोई भी वैक्सीन बीमारी पैदा करने वाले वायरस या बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित प्रोटीन को पहचानने और प्रतिक्रिया करने के लिए शरीर को प्रशिक्षित करने का काम करता है. जहां पारंपरिक वैक्सीन बीमारी पैदा करने वाले वायरस या उसके द्वारा उत्पन्न प्रोटीन की छोटी या निष्क्रिय खुराक से बने होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रतिक्रिया देने और उत्तेजित करने के लिए शरीर में डाले जाते हैं. वहीं एम-आरएनए आधारित वैक्सीन शरीर को कुछ वायरल प्रोटीनों को पैदा करने के लिए प्रेरित करते हैं.
एम-आरएनए आधारित वैक्सीनों में कोड मैनुअल या डीएनए निर्देशों की एक शृंखला होती है. इसलिए जब वैक्सीन की डोज हमारे शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करती है तो यह कोशिकाओं को बताती है कि विशिष्ट प्रोटीन को कैसे निर्मित किया जाए. यही प्रोटीन के टुकड़े वायरस के बाहर एक आवरण की तरह बैठ जाते हैं और वायरस को निष्क्रिय कर देते हैं.
एचआईवी के खिलाफ एम-आरएनए वैक्सीन
मॉडर्ना की वैक्सीन mRNA-1644 का 18 से 50 वर्ष की उम्र के 56 लोगों पर ट्रायल होगा. ये सभी लोग पूरी तरह से स्वस्थ होंगे यानी एचआईवी से संक्रमित नहीं होंगे. ट्रायल के दौरान वैक्सीन की सुरक्षा और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में होने वाले परिवर्तनों का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया जाएगा. इस वैक्सीन को विकसित करने के लिए फंडिंग की व्यवस्था बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन द्वारा की गई है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक मॉडर्ना की वैक्सीन mRNA-1644 शरीर की कोशिकाओं को एचआईवी वायरस के स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करने के लिए इम्यून रेस्पोंस को ट्रिगर करके कोविड-19 वैक्सीन के जैसा ही काम करेगा. एम-आरएनए आधारित वैक्सीन हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के बी कोशिकाओं को उत्तेजित करता है. बी कोशिकाओं को उत्तेजित करने का मकसद व्यापक रूप से बेअसर करने वाले न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडिज़ को पैदा करना है जो एचआईवी के बाहरी प्रोटीन से जुड़ते हैं तथा इन्हें निष्क्रिय कर देते हैं. इससे वायरस का प्रभाव कम हो जाता है.
एम-आरएनए आधारित मॉडर्ना और फाइजर कंपनियों के कोविड-19 वैक्सीनों की हालिया सफलता के बाद एचआईवी वैक्सीन के भी सफल होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं.
कम नहीं हैं चुनौतियां
ऐसी एचआईवी वैक्सीन जो सुरक्षित और प्रभावी होने के साथ-साथ आम लोगों की पहुंच में हो यह एक बड़ी चुनौती है. मॉडर्ना' और फाइज़र के वैक्सीनों के अब तक के अनुभवों से यह पता चलता है कि जिन क्षेत्रों में उनकी सबसे अधिक जरूरत है, वहाँ उनकी उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती है. पूरी दुनिया में एचआईवी से संक्रमित दो-तिहाई से ज्यादा आबादी अकेले अफ्रीका में मौजूद हैं. ऐसे में, एचआईवी महामारी को नियंत्रित करने में किसी भी कामयाबी के लिए यह बेहद जरूरी है कि वहाँ संक्रमण की दरों में गिरावट लाया जाए.
एम-आरएनए आधारित वैक्सीन का भंडारण (स्टोरेज) भी विकासशील देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है क्योंकि इन वैक्सीनों को एक निश्चित तापमान पर ही रखना होता है और इस तरह की सुविधाएं मुहैया कराना विकासशील देशों/ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काफी मुश्किल है. जैसा कि लेख के शुरुवात में हम बता चुके हैं कि एचआईवी पिछले करीब 40 सालों से पूरी दुनिया पर कहर बरपा रहा है और इस दौरान एचआईवी कई रूपों में उत्परिवर्तित हो चुका है. ऐसे में, एम-आरएनए आधारित वैक्सीन के जरिए इस वायरस के विभिन्न रूपों को निष्क्रिय करने में कई वर्ष लग सकते हैं. बहरहाल, अगर यह वैक्सीन इस महीने से शुरू हो रहे क्लीनिकल ट्रायल्स में सफल हो जाती है तो यह एचआईवी संक्रमितों के लिए उम्मीद की एक नई किरण बन जाएगी. अस्तु!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
प्रदीप, तकनीक विशेषज्ञ
उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव खलीलपट्टी, जिला-बस्ती में 19 फरवरी 1997 में जन्मे प्रदीप एक साइन्स ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनके लगभग 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.
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