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- भाग्य, अवसर और सफलता

'सफलता तो किस्मत की बात है', 'हमारी किस्मत साथ देती तो आज हम भी सफल होते', जैसी सब बातें पूर्णतः सच हैं, विश्वास न हो तो किसी भी असफल व्यक्ति से पूछ कर देख लीजिए। असफल व्यक्ति गिन-गिन कर बता देगा कि फलां सफल व्यक्ति के साथ फलां-फलां लाभदायक स्थितियां थीं, उनके साथ फलां-फलां संयोग घटित हुए जिनके कारण वे सफल हो गए। दूसरी ओर उनके साथ ऐसे संयोग हुए कि उनका बनता काम भी बिगड़ गया। यह सच है कि हमारे जीवन में संयोग बड़ी भूमिका अदा करते हैं। बहुत से संयोग हमें सफलता के नजदीक पहुंचा देते हैं। एक छोटा-सा संयोग घटता है और हमारा रुका काम निकल जाता है। संयोग हमारी सफलता में सहयोगी होते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। इसी प्रकार संयोग बनते काम को बिगाड़ भी सकते हैं, इसमें भी कोई शक नहीं है। सफल और असफल व्यक्ति में ज्यादा अंतर नहीं होता। सफल व्यक्ति संयोगों से लाभ उठाना जानता है, अवसर आने पर वह उन्हें चूकता नहीं। वह अवसर की तलाश में रहता है और उसके लिए पहले से तैयारी करके रखता है। सफल आदमी अपना 'होमवर्क' करके रखता है ताकि अवसर आए तो वह उसका लाभ उठा सके। वह अच्छी और बुरी स्थितियों के लिए पहले से तैयारी करके रखता है। उसकी सफलता का यही राज है। असफल व्यक्ति ऊंघता रह जाता है और अवसर उसके पास से चुपचाप गुजर जाते हैं। बाद में वह अपने आलस्य को दोष देने के बजाय किस्मत को कोसता रह जाता है। सफल और असफल व्यक्तियों में इससे ज्यादा और कोई अंतर नहीं होता। विश्वास न हो तो किसी सफल आदमी से पूछ कर देख लीजिए। पंजाब के मोरिंडा के पास के एक छोटे से गांव की संदीप कौर उत्तर प्रदेश कैडर की वर्ष 2011 की आईएएस अधिकारी हैं। उनके पिता रंजीत सिंह मोरिंडा सब तहसील में चपड़ासी थे। वे सातवीं कक्षा की विद्यार्थी थीं जब उन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक उड़ान को देखना आरंभ किया। वे उसके किरदारों से इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने उस कम उम्र में ही आईएएस बनने का संकल्प लिया, सन् 2002 में चंडीगढ़ की पेक यूनिवर्सिटी आफ टैक्नालाजी से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की, इधर-उधर नौकरी भी की, लेकिन अपनी मंजिल को नहीं भुलाया और अंततः सफलता पाई। पिता चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी, अशिक्षित मां, छोटे से गांव की साधनहीन लड़की की मंजिल क्या आसान रही होगी? क्या उसे किसी ने हतोत्साहित नहीं किया होगा?
