सम्पादकीय

निम्न कार्बन विकास की रणनीति : अर्थव्यवस्था को देश के आकार के अनुपात में विस्तृत करने की कोशिश

Neha Dani
15 Nov 2022 2:26 AM GMT
निम्न कार्बन विकास की रणनीति : अर्थव्यवस्था को देश के आकार के अनुपात में विस्तृत करने की कोशिश
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भारत का एलटी-एलईडीएस बताता है कि हम समता और जलवायु न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के साथ खड़े हैं।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार अर्थव्यवस्था को देश के आकार के अनुपात में विस्तृत करने की कोशिश कर रही है, पर इसमें कई चुनौतियां हैं, जिनमें से एक जलवायु परिवर्तन भी है। वैश्विक तापमान को कम करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को विशिष्ट सीमा के भीतर रखने की जरूरत है, जिसे वैश्विक कार्बन बजट कहा जाता है। वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की 50 फीसदी संभावना और कार्बन डाई ऑक्साइड के 1,350 गीगाटन के शेष कार्बन बजट में वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि तक सीमित करने की 50 फीसदी संभावना के लिए 2020 से दुनिया के पास 500 गीगाटन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर का शेष कार्बन बजट है।
निम्न कार्बन विकास की दिशा में प्रयास करते हुए हमारी दीर्घकालिक निम्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीति (एलटी-एलईडीएस) सात प्रमुख बदलावों पर निर्भर है। पहला, ऊर्जा क्षेत्र में वृद्धि औद्योगिक विस्तार को सक्षम करने, रोजगार सृजन बढ़ाने और आत्मनिर्भर भारत के लिए महत्वपूर्ण है। भारत अक्षय ऊर्जा का विस्तार कर रहा है और ग्रिड को मजबूत कर रहा है। यह अन्य निम्न कार्बन प्रौद्योगिकियों की खोज और/या समर्थन कर रहा है।
यह जीवाश्म ईंधन संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग की ओर बढ़ रहा है। दूसरा, जीडीपी में परिवहन का बड़ा योगदान है। भारत यात्री और माल की गतिशीलता के लिए परिवहन साधनों में आवश्यक विस्तार के संदर्भ में निम्न कार्बन विकल्पों की दिशा में काम कर रहा है। तीसरा, शहरी डिजाइनों में अनुकूलन के उपाय खोजना और उन्हें प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है। भारत पर्यावरण व शहरी प्रणालियों में अनुकूलन उपायों को मुख्यधारा में ला रहा है।
यह शहरी नियोजन दिशानिर्देशों, नीतियों व उपनियमों में संसाधन दक्षता को बढ़ावा दे रहा है, मौजूदा व भावी इमारतों और शहरी प्रणालियों में जलवायु उत्तरदायी और लचीले भवन डिजाइन, निर्माण व संचालन को बढ़ावा दे रहा है और संसाधन दक्षता, ठोस व तरल कचरा प्रबंधन से कम कार्बन उत्सर्जन वाली नगरपालिका सेवा को बढ़ावा दे रहा है। चौथा, जीडीपी में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाने की नीतियों के साथ औद्योगिक विकास प्रमुख उद्देश्य है। इस संदर्भ में निम्न-कार्बन विकल्पों का पता लगाया जा रहा है।
भारत का ध्यान ऊर्जा एवं संसाधन दक्षता में सुधार पर है। पांचवां, कार्बन डाई ऑक्साइड कम करने के लिए नवाचार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, जलवायु-विशिष्ट वित्त और क्षमता निर्माण के जरिये पर्याप्त वैश्विक समर्थन चाहिए। अभी भारत सामाजिक-आर्थिक, आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र में इसका असर कम करने के लिए प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण व योजना का कार्य कर रहा है। छठा, प्राकृतिक संसाधनों की वृद्धि, संसाधन विरासत के संरक्षण और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए हमारी प्रतिबद्धता इस क्षेत्र की प्रमुख रणनीति है।
इसके तहत वन और उसके पौधे, पशु और माइक्रोबियल आनुवंशिक संसाधनों की बहाली, संरक्षण और प्रबंधन, वनों के बाहर पेड़ों की बहाली, संरक्षण और प्रबंधन, नर्सरी के उन्नयन सहित राज्य के वन विभागों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना शामिल है। सातवां, गरीबी उन्मूलन, रोजगार व आय में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन के प्रति बढ़ती सहनशीलता व समृद्धि के एक नए स्तर तक पहुंचने की प्राथमिकताओं को देखते हुए निम्न-कार्बन विकास के उद्देश्यों को पाने के लिए किफायती अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त आवश्यक है।
भारत वित्तीय जरूरतों का आकलन कर जलवायु विशिष्ट वित्त जुटाकर उसे वितरित कर रहा है। भारत ने पृथ्वी को बचाने की दिशा में अपनी जिम्मेदारी से अधिक दायित्व उठाया है और यह जलवायु कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध है। वैश्विक सहयोग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व जलवायु व्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने में भारत सक्रिय रहा है, जिसे हमने संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज के क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के तहत सामूहिक रूप से स्वीकार किया है। भारत का एलटी-एलईडीएस बताता है कि हम समता और जलवायु न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के साथ खड़े हैं।

सोर्स: अमर उजाला

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